शक्तिहीन है निगम, अतिक्रमण से निपटने में फूल जाता है दम
पटना । दरअसल, अतिक्रमण भी व्यवस्था-जनित समस्या है। पटना के लिए एक लाइलाज रोग जैसे। बहरहाल नग
पटना । दरअसल, अतिक्रमण भी व्यवस्था-जनित समस्या है। पटना के लिए एक लाइलाज रोग जैसे। बहरहाल नगर निगम के पास इससे निजात की न तो कोई योजना है और ना ही संसाधन। कोई कवायद परवान ही नहीं चढ़ती। एक उदाहरण विशेष पुलिस बल की तैनाती का प्रस्ताव है, जिसका इस्तेमाल शहर को अतिक्रमण-मुक्त करने के लिए होना था। साल भर से अधिक समय गुजर गया, लेकिन संबंधित प्रस्ताव फाइलों से आगे नहीं बढ़ा।
पटना कैपिटल रीजन मैनेजमेंट कमेटी (पीसीआरएमसी) की बैठक में तय हुआ था कि शहरों को अतिक्रमण-मुक्त कराने के लिए खास पुलिस बल की तैनाती होगी। उस पुलिस बल को नगरपालिका कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। पीसीआरएमसी के दायरे में तत्काल व्यवस्था सुनिश्चित की जानी थी। शुरुआत पटना नगर निगम से होनी थी, लेकिन योजना खटाई में पड़ गई।
शहरों के व्यवस्थित विकास में आर्थिक और तकनीकी संसाधनों के साथ मानव संसाधन की कमी भी रोड़ा है। अतिक्रमण के खिलाफ अभियान में अक्सर पुलिस बल और दंडाधिकारी की समस्या खड़ी हो जाती है। नगर निगम को जिला प्रशासन और जिला पुलिस से गुहार लगानी पड़ती है। इस आयातित मानव संसाधन की मदद से तात्कालिक तौर पर अतिक्रमण तो हटा लिया जाता है, लेकिन स्थायी राहत नहीं मिलती। अतिक्रमणकारी पुन: काबिज हो जाते हैं, क्योंकि उन पर निगरानी के लिए निगम के पास पुलिस बल ही नहीं होता। विशेष पुलिस बल की तैनाती इसी मद्देनजर की जानी थी।
स्थायी बनाम अस्थायी व्यवस्था : नगर निकाय प्रशासन की सीमा में विशेष पुलिस बल को कार्य करना था। एक यूनिट में 10 से 15 सशस्त्र पुलिसकर्मियों की तैनाती होनी थी। इस पुलिस बल की स्थायी रूप से व्यवस्था होने तक अस्थायी व्यवस्था की बात थी। संबंधित जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक द्वारा जिला नियंत्रण कक्ष से पुलिस बल मुहैया कराए जाने का निर्णय था। उस पुलिस बल के साथ एक मजिस्ट्रेट की प्रतिनियुक्ति भी होती। वे सभी नगर आयुक्त के निर्देश पर निगम के दायरे में काम करते। विशेष पुलिस बल की व्यवस्था हो जाने पर मजिस्ट्रेट सहित अस्थायी पुलिस बल की जिला नियंत्रण कक्ष में वापसी हो जाती। नगर निगम के बाद पटना जिला के शेष नगर निकायों में भी वैसी ही व्यवस्था की जानी थी।
शक्तिहीन कार्यपालक पदाधिकारी : फिलहाल जो नियम-कानून है, उसे अमल में लाने के लिए नगर निगम को दंडाधिकारी का मुंह ताकना पड़ता है। इस मद्देनजर तय हुआ था कि निगम के कार्यपालक पदाधिकारियों को दंडाधिकारी की शक्तियों से लैस किया जाएगा। उसके बाद अतिक्रमण-मुक्ति अभियान के समय वे त्वरित निर्देश और कार्रवाई के लिए सक्षम होते। पटना नगर निगम में चार अंचल हैं और चारों के चारों में जबरदस्त अतिक्रमण।