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Lockdown भविष्य को नई दिशा देगा ये समय, व्यवहार में लाएं बदलाव- बच्चों पर रखें नजर

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सरिता शिवांगी कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान चिड़चिड़ेपन से खुद को दूर रखें और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाएं। ये आपके भविष्य को नई दिशा देने का भी काम करेगा।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 28 Mar 2020 10:49 AM (IST)Updated: Sat, 28 Mar 2020 10:49 AM (IST)
Lockdown भविष्य को नई दिशा देगा ये समय, व्यवहार में लाएं बदलाव- बच्चों पर रखें नजर
Lockdown भविष्य को नई दिशा देगा ये समय, व्यवहार में लाएं बदलाव- बच्चों पर रखें नजर

प्रशांत कुमार, पटना। लॉकडाउन को सजा नहीं, बल्कि परिवार के साथ मजा करने वाला समय समझकर बिताएं। ऐसा न समझें कि जबरन 21 दिन के लिए घर में बंद कर दिया गया है, क्योंकि इससे आपका व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाएगा। बेहतर है कि चिड़चिड़ेपन से खुद को दूर रखें और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाएं। ये आपके भविष्य को नई दिशा देने का भी काम करेगा। अगर परिवार के सदस्य एक-दूसरे के कार्यों में शामिल हो तो आपस में अच्छा समन्वय स्थापित हो सकता है, जो जीवन को खुशहाल बनाने में भी कारगर साबित होगा। यह कहना है मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सरिता शिवांगी का।

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बच्चों के व्यवहार में बदलाव पर रहे नजर

डॉ. शिवांगी कहती हैं, 12 साल तक के बच्चों के व्यवहार पर विशेष नजर रखने की जरूरत है। अभिभावकों को संयम से काम लेना होगा। इस आयु वर्ग के बच्चों की प्रवृत्ति होती है कि वे अभिभावकों का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करते हैं। ऐसी सूरत में अभिभावकों को घर में बच्चों के सामने अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। चूंकि स्कूल की छुट्टियों के बाद बच्चों के मन में था कि वे नए क्लास/स्कूल में जाएंगे। उन्हें नई किताबें पढ़ने को मिलेंगी। नए दोस्त बनेंगे पर एक तरह से समझें तो अचानक उनका सपना टूट गया। इससे उनके व्यवहार में बदलाव देखा जाना स्वभाविक है। वहीं, माता-पिता उन्हें मोबाइल देकर छोड़ देते हैं। इससे वे अकेलापन महसूस करते हैं। चिड़चिड़ापन भी होने लगता है। भाई-बहनों से झगड़ने लगते हैं। बेहतर होगा कि उन्हें मोबाइल के विभिन्न एप से दूर रखें। अभिभावक अपने सामने मोबाइल पर उन्हें ऑनलाइन किताबें पढ़ाएं। इनडोर गेम्स जैसे, लूडो, सांप-सीढ़ी, कैरम, चेस आदि बच्चों के साथ खेलें।

 
किशोर व युवा रहें मोबाइल से दूर
 

14 से 22 वर्ष तक के लड़के/लड़कियां पारिवारिक गतिविधियों से दूर रहना चाहते हैं। इस वर्ग के युवा खुद को परिपक्व समझने लगते हैं। परिवार के बीच रहकर भी वे मोबाइल लेकर अलग बैठ जाते हैं। लंबी छुट्टियों में अभिभावकों का ध्यान उनकी ओर से हट जाता है, जो कि गलत है। अभिभावकों को कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें मोबाइल से दूर रखा जाए। अपने काम के बारे में उन्हें बताएं। उनकी योग्यता की प्रशंसा करें। उनके साथ बैठकर फिल्म भी देख सकते हैं। उन्हें बताएं कि पहले के जमाने में लोग किस तरह घर में अधिक समय बिताते थे। उनसे हंसी-मजाक करते रहें।

 
महिलाओं को अधिक समस्याएं
 

लॉकडाउन की अवधि में सबसे अधिक समस्याएं महिलाओं को हो रही हैं। नौकरानी भी नहीं आ रही हैं। परिवार के सभी सदस्य घर में ही हैं, तो उन्हें ज्यादा काम करना पड़ रहा है। पहले वो पति और बच्चों के जाने के बाद मोबाइल से लंबी बातें करती थीं। टीवी में मन लगाती थीं। सोने के लिए भी वक्त मिल जाता था। दिनचर्या बिगड़ने से महिलाएं चिड़चिड़ीं होने लगती हैं। इससे बचने के लिए उन्हें अपने कार्यो को परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ बांटना चाहिए। वर्क फ्रॉर्म होम करने वाले पुरुष भी काम से समय निकालकर पत्नियों के रचनात्मक कार्य जैसे खाना बनाना आदि में रुचि लें।

 
बच्चों के साथ मन लगाएं बुजुर्ग
 
इन दिनों देखा गया है कि बुजुर्ग ज्यादा दहशत में है। उन्हें लग रहा है कि अपने जीवन में ऐसा वक्त पहले नहीं देखा और अब वे नहीं बचेंगे। उन्हें अवसाद से दूर रखने के लिए बच्चों के साथ मन लगाना चाहिए। अब उनके बेटे भी घर में हैं, तो उन्हें हर तरह की बात उनके साथ साझा करनी चाहिए। वे बच्चों को पुरानी कहानियां सुनाएं। पूजा-पाठ में भी बच्चों को शामिल करें। जरूरी नहीं कि जोर-जबरदस्ती कर अपनी बातों को दूसरे के ऊपर थोपें।

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