Bihar News: पटना आइआइटी के कमाल से देश को होगा लाभ, अब कम समय व मूल्य में निकलेगा ज्यादा ग्राफिन
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के प्लाज्मा स्प्रे कोटिंग लैब में ग्रेफाइट से ग्राफिन निकालने की नई तकनीक विकसित हुई है। भारत में केरल और झारखंड के जमशेदपुर में अभी ग्राफिन का उत्पादन हो रहा है। इससे भारत अपनी आवश्कता के अनुपात में ग्राफिन का उत्पादन कर सकेगा।
नलिनी रंजन, पटना : शोध का लाभ तभी है, जब उससे अधिकतम उपयोग की संभावना हो और वह भी न्यूनतम व्यय में। पटना स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) ने ऐसा कर दिखाया है। इस संस्थान के प्लाज्मा स्प्रे कोटिंग लैब में ग्रेफाइट से ग्राफिन निकालने की नई तकनीक विकसित हुई है। इस तकनीक से अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में और कम मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाले ग्राफिन का उत्पादन संभव होगा। इसका लाभ यह है कि अभी बहुत हद तक आयात पर निर्भर भारत अपनी आवश्कता के अनुपात में ग्राफिन का उत्पादन कर सकेगा।
ग्रेफाइट या अन्य कार्बनिक चीजों से बहुमूल्य ग्राफिन प्राप्त होता है। भारत में केरल और झारखंड के जमशेदपुर में अभी ग्राफिन का उत्पादन हो रहा है। फिर भी इंग्लैंड के मैनचेस्टर सहित कई देशों से इसका आयात हो रहा है। आइआइटी को इसे निकालने में मात्र 88 रुपये प्रति ग्राम का खर्च आया है, जबकि बाजार में इसकी कीमत पांच से सात गुना अधिक है। अगर आगे स्थानीय स्तर पर उत्पादन शुरू होता है तो स्पष्ट है कि ग्राफिन के आयात पर व्यय होने वाले विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
रसायन और विषमुक्त
मेटालर्जिकल व मैटेरियल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अनुप केसरी के नेतृत्व में मो. अमीनुल इस्लाम, विश्वज्योति मुखर्जी और कृष्णकांत पांडेय ने यह शोध किया है। प्रो. अनुप ने बताया कि यह ग्राफिन पूरी तरह से रसायन व विषमुक्त होगा। अंतरराष्ट्रीय जर्नल में इस शोध का प्रकाशन हो चुका है।
प्लाज्मा स्प्रे कोटिंग लैब। सौजन्य : आइआइटी, पटना
दुनिया का सबसे मजबूत पदार्थ, लेकिन मोटाई नहीं
भार में बेहद हल्का ग्राफिन कार्बन का ही एक अवयव है और दुनिया का सर्वाधिक मजबूत पदार्थ है। यह 2-डी मैटेरियल है यानी इसकी कोई मोटाई नहीं। इसकी एक वर्ग मीटर परत का भार बमुश्किल 0.77 ग्राम होता है। मेटल, पालीमर, सीरामिक, ट्रांपैरेंट कंडक्टिव फिल्म के साथ ऊर्जा, आटोमोबाइल और इलेक्ट्रानिक्स आदि क्षेत्र में इसका उपयोग होता है। बुलेट व वाटर प्रूफ, जंगरोधी और जल-शोधन गुणों के कारण इसकी पर्याप्त मांग है। अंतरिक्षयान व वायुयान आदि के निर्माण में भी इसका उपयोग होता है। इससे बने उत्पाद मजबूत होने के साथ अधिक बैकअप वाले होते हैं।
अब मिलीग्राम नहीं, ग्राम में निकाल सकते है ग्राफिन
अब तक केमिकल वेपर डिपोजिशन (सीवीडी) व इलेक्ट्रो केमिकल एक्सफालिएशन (ईसीई) तकनीक से ग्राफिन निकाला जाता था। हालांकि, इसकी मात्रा मिलीग्राम में होती थी, जबकि आइआइटी की नई तकनीक (प्लाज्मा स्प्रे) से अब ज्यादा ग्राफिन प्राप्त होगा। अब उसका उत्पादन ग्राम में संभव हो गया है। स्पष्ट है कि अब अधिक मात्रा में ग्राफिन की परतें बनाई जा सकेंगी।
खर्च भी काफी कम है
आइआइटी पटना के निदेशक प्रो. टीएन सिंह ने बताया कि पहले बाल मिलिंग पद्धति से ग्राफिन निकाला जाता था। यह एक मैकेनिकल एक्सफालिएशन प्रक्रिया है। इसमें समय अधिक लगता है। आइआइटी, पटना में प्लाज्मा स्प्रे पद्धति से ग्राम में ग्राफिन आसानी से निकलता है। इसमें खर्च भी काफी कम है। यह देश भर में शोध व व्यापारिक उपयोग के लिए लाभकारी होगा।
ग्राफिन के गुण
- -ग्राफिन बिजली का सबसे अच्छा संवाहक है। दूर तक बिजली पहुचाने में किया जा सकता है।
- -कार, हवाई जहाज, पानी के जहाज को और मजबूत बनाने में इस्तेमाल।
- -पारदर्शी होने के कारण इसका इस्तेमाल बुलेट प्रूफ कांच, जैकेट में किया जा सकता है।
- -पानी को औरों से अधिक साफ कर सकता है, उसके किसी तत्व को बिना नुकसान पहुचाये।
- -बहुत हल्का होने के कारण इसका उपयोग अंतरिक्ष यान बनाने में कर सकते हैैं।