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पटना HC ने प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर लगाई रोक, जानिए

पटना हाई कोर्ट ने प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर रोक लगा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी। बता दें कि राज्य सरकार ने रोक हटा दी थी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 07:40 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 12:22 PM (IST)
पटना HC ने प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर लगाई रोक, जानिए
पटना HC ने प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर लगाई रोक, जानिए

पटना [जेएनएन]। पटना हाई कोर्ट ने प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर रोक लगा दी है, जिससे अब सरकारी कर्मियों के लिए प्रोन्नति का रास्ता खुल गया है। जस्टिस राजेन्द्र मेनन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ये आदेश दिया है। कोर्ट में छह सप्ताह बाद फिर इस मामले की अगली सुनवाई होगी। 

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इससे पहले राज्य सरकार ने सेवकों की प्रोन्नति पर लगी रोक हटा ली थी। सरकार ने कोर्ट के आदेश के आलोक में फैसला किया है कि राज्य सेवकों को प्रोन्नति तो मिलेगी, परन्तु प्रोन्नति में परिणामी वरीयता का लाभ नहीं मिल सकेगा। सामान्य प्रशासन विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया था।

बिहार में रोक के बावजूद एक नई व्यवस्था कर पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने पर पटना हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी है। अदालती आदेश के बाद भी सरकार द्वारा आरक्षण जारी रखने पर बुधवार को हाईकोर्ट ने हैरानी जाहिर की।  

अदालत ने प्रशासनिक सुधार विभाग के पत्रांक संख्या 4800 पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को 6 सप्ताह के अंदर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन एवं न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ ने युगेश्वर प्रसाद पांडेय की इस मामले में दायर अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया।

हाईकोर्ट पहले ही लगा चुका है रोक 

पदोन्नति में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण दिये जाने की व्यवस्था पर पटना हाईकोर्ट की एकल पीठ ने रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने दो सदस्यीय खंडपीठ में अपील की थी, लेकिन दो सदस्यीय खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को सही बताया।

तब राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर हाईकोर्ट के फैसले पर तत्काल रोक लगाने का आग्रह किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया। इस बीच राज्य सरकार ने फिर से नई व्यवस्था कर आरक्षण लागू कर दिया।

85वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा यह प्रावधान किया गया था कि आरक्षित वर्ग के सेवकों को प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरीयता का लाभ भी दिया जाएगा। सरकार के इस फैसले के फलस्वरूप अपेक्षाकृत बाद में प्रोन्नति पाने वाले सामान्य कोटि के सेवक आरक्षण नियम के तहत पहले प्रोन्नति पाने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति के सेवक से जूनियर हो जाएंगे।

सरकार के इस फैसले के खिलाफ कर्मचारी संगठनों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2006 में पटना हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी। साथ ही 2008 में सरकार ने यह आदेश भी निकाला कि वरीयता में आने पर प्रोन्नति के संबंध में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की गणना गैर आरक्षित संवर्ग में की जाएगी, परन्तु 2011 को कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया।

इसके अगले ही वर्ष 21 अगस्त 2012 में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देकर सरकार ने अनुसूचित जाति-जनजाति की प्रोन्नति में आरक्षण की सुविधा और परिणामी वरीयता जारी रखी। इस मामले को लेकर कर्मचारी संगठनों ने एक बार फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने 12 अगस्त 2014 को राज्य सरकार की सभी सेवाओं और संवर्गें में प्रोन्नति समिति की बैठक करने पर रोक लगा दी, जिसके खिलाफ राज्य सरकार एलपीए में गई।

इस पूरे मामले की सुनवाई करते हुए पिछले वर्ष जुलाई महीने में कोर्ट ने राज्य सरकार की एलपीए को खारिज कर दिया। तब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस बीच 15 फरवरी को 2016 को पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में 12 अगस्त 2014 के आदेश को खारिज किया साथ ही अनुसूचित जाति-जनजाति की प्रोन्नति में परिणामी वरीयता पर भी रोक लगा दी।

 कोर्ट से ऑर्डर की प्रति मिलने के साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग ने अब इस संबंध में आदेश जारी कर दिया था। सरकार ने अपने आदेश में साफ किया है कि कोर्ट के आदेश पर उच्चतर पदों पर संवर्गीय प्रोन्नति वरीयता सह योग्यता के आधार पर दी जाएगी। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पदाधिकारियों या कर्मचारियों को आरक्षण एवं परिणामी वरीयता का लाभ अगले आदेश तक देय नहीं होगा। न ही इसके लिए किसी प्रकार के रोस्टर क्लियरेंस की ही आवश्यकता होगी।


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