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जिंदगी गुरबत में कटी, चिता को मयस्सर न हो सकी आग, सुनें गरीब परिवार की दास्तां

गरीबी कितनी हो सकती है? इतनी कि चिता को आग देने के लिए लकड़ी तक न खरीदी जा सके? एेसा है। इस खबर में पटना की एेसी ही एक घटना का जिक्र।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 02:39 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 02:39 PM (IST)
जिंदगी गुरबत में कटी, चिता को मयस्सर न हो सकी आग, सुनें गरीब परिवार की दास्तां
जिंदगी गुरबत में कटी, चिता को मयस्सर न हो सकी आग, सुनें गरीब परिवार की दास्तां

डॉ. कौशलेंद्र कुमार, पटना। आदमी जीते जी अपने लिए कितना भी बेहतर कर ले पर मौत के बाद का प्लान तो ऊपर वाला ही बनाता है। कई कहानियां आपने सुनी होंगी पर चिता को आग तक न नसीब हो सके एेसा सुना है? एेसा भी होता है। पटना के एक मजबूर बेटे ने चंदा कर पैसे जमा किए मगर फिर भी इतनी लकड़ी नहीं खरीद सका जिससे पिता का शव ठीक से जल पाता। नतीजा, अंबिका पासवान की आधी लाश ही जल सकी। राजेंद्र मांझी तो अंबिका से भी बदनसीब रहे।

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उन्हें तो आग ही नसीब नहीं हो पाई। मजबूरी में बेटे को शव घाट से ही थोड़ी दूर मिट्टी में दफनाना पड़ा। राजधानी के बांसघाट पर ये कहानी हर उस परिवार की है, जो पैसे की तंगी से गुजर रहा है। बांसघाट स्थित विद्युत शवदाह बंद होने से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार में भी परेशानी आ रही है।

चार हजार खर्च किए फिर भी कम पड़ गई लकड़ी

इसके पहले रविवार को परसा बाजार के टरवां के रहने वाले अंबिका पासवान का शव दाह संस्कार के लिए आया था। पीएमसीएच में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी। बेटे प्रदीप ने विद्युत शवदाह गृह बंद होने के बाद संबंधियों से पैसे मांग किसी तरह तीन -चार हजार रुपये इकट्ठा किये। इससे चिता के लिए लकड़ी खरीदी मगर शव अधजला ही रह गया।

दियारा में दफन हो गए राजेंद्र मांझी

सोमवार को पटना जिले के परसा बाजार थाने के रबदुल्लाह चक निवासी 60 वर्षीय राजेन्द्र मांझी का शव दाह संस्कार करने के लिए बांसघाट आया। विद्युत शवदाह गृह बंद होने के कारण बेटा फेंकन अपने पिता की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर सका। फेंकन के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह लकड़ी खरीद पाता और शव को जला पाता। लाचार बेटे ने सिस्टम को कोसते हुए अपने बाप के पार्थिव शरीर को बांसघाट दियारा की जमीन में दफन कर दिया।

300 लाशें आती हैं हर माह

विद्युत शवदाह गृह में निगम के पांच कर्मी तैनात हैं। औसतन महीने में 300 लाशें आती हैं। प्रति शव तीन सौ रुपये लिए जाते हैं, जबकि लावारिश लाशों के लिए 100 रुपये ही शुल्क तय है।

तीन महीने से बंद शवदाह गृह

दरअसल, बांसघाट स्थित विद्युत शवदाह गृह पिछले तीन महीने से बंद पड़ा है। यहां दो मशीनें हैं। एक मशीन दो साल से खराब थी। ऐसी स्थिति में एक मशीन से ही काम चल रहा था, मगर वह भी तीन महीने पहले खराब हो गई। विद्युत शवदाह गृह में महज 300 रुपये में शव का अंतिम संस्कार हो जाता है, जबकि लकड़ियों से शव जलाने में आठ हजार रुपये खर्च आता है। लिहाजा, यहां शवदाह करने पहुंचने वाले गरीबों को अंतिम संस्कार के लिए बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

तकनीकी खराबी के कारण है बंद

अपर नगर आयुक्त (योजना) देवेंद्र प्रसाद तिवारी कहते हैं, बांसघाट स्थित विद्युत शवदाह गृह तकनीकी खराबी की वजह से बंद पड़ा है। इंजीनियर को गड़बड़ी की पहचान कर अतिशीघ्र दुरुस्त करने का निर्देश दिया गया है। जल्द शवदाह गृह का संचालन शुरू हो जाने की उम्मीद है।

जल्द दूर कर ली जाएंगी खामियां

जिलाधिकारी कुमार रवि कहते हैं, विद्युत शवदाह गृह के मुतल्लिक नगर निगम के अधिकारियों से बात कर उन्हें निर्देशित किया गया है। जल्द उसकी तकनीकी खामियों को दूर कराकर विद्युत शवदाह गृह को चालू करा दिया जाएगा।


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