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सत्ता संग्राम: खगडिय़ा में आसान नहीं राह, यहां लागू 'एक नेता-एक मौका' का सिद्धांत

आगामी लोक सभा चुनाव के सत्ता संग्राम में खगडिय़ा की राह आसान नहीं है। यहां 1967 के बाद किसी सांसद को दोबारा जीत नहीं मिली। इस लोकसभा क्षेत्र पर डालते हैं एक नजर।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 10:47 AM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 07:21 PM (IST)
सत्ता संग्राम: खगडिय़ा में आसान नहीं राह, यहां लागू 'एक नेता-एक मौका' का सिद्धांत
सत्ता संग्राम: खगडिय़ा में आसान नहीं राह, यहां लागू 'एक नेता-एक मौका' का सिद्धांत

पटना [अरविंद शर्मा]। खगडिय़ा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा जाने की राह आड़ी-तिरछी है। 60 के दशक में कांग्रेस के टिकट पर लगातार दो चुनाव जीतने वाले जिया लाल मंडल को अगर अपवाद मान लिया जाए तो यहां के मतदाताओं ने दोबारा किसी पर भरोसा नहीं जताया है। पहली बार जो भी आया, खगडिय़ा ने उसे अपनाया। पांच साल आजमाया। पसंद नहीं आया तो अगली बार नमस्ते कर लिया। एक नेता-एक मौका का सिद्धांत 1967 से ही लागू है।

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सांसद को हवा का अहसास

लोजपा के वर्तमान सांसद महबूब अली कैसर को खगडिय़ा की हवा का अहसास है। शायद यही कारण है कि एक बार जीतने के साथ ही उन्होंने दूसरी डाल की तलाश शुरू कर दी। वे रामविलास पासवान और उनकी पार्टी से खुद को अलग मानने लगे हैं। अगली पारी के लिए कहीं और चक्कर चला रहे हैं। कांग्रेस में बात बढ़ी भी है। बनी कि नहीं, यह वक्त बताएगा।

कैसर के पिता सलाउद्दीन कैसर कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। खुद भी कभी कांग्रेस के साथ थे। बिहार की कमान संभाल रहे थे। 2009 में कांग्रेस ने खगडिय़ा से टिकट भी दिया था, किंतु तीसरे स्थान से ऊपर नहीं उठ सके थे। लोजपा से वर्ष 2014 में टिकट मिल गया और मोदी लहर में जीतने की उम्मीद दिख गई तो पलटी मारकर पासवान के साथ चले गए।

राजग में प्रत्‍याशी की तलाश

बहरहाल, लोजपा में बड़ा सवाल है कि कैसर नहीं तो कौन? प्रत्याशी की तलाश जारी है। वैसे यहां की सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में से पांच पर जदयू का कब्जा है। महागठबंधन के खिलाफ राजग में अगर दमदारी से लडऩे का प्लान बना तो मजबूत प्रत्याशी के अभाव में पासवान को यह सीट छोडऩा पड़ सकता है। ऐसे में जदयू के पास दो दावेदार हैं। मंत्री दिनेशचंद्र यादव और खगडिय़ा विधायक पूनम देवी।

दिनेश ने जदयू के लिए 2009 में इसे जीता है। राजनीतिक परिवार से आने वाली पूनम का अपना प्रताप है। पति रणवीर यादव विधायक रह चुके हैं। भाजपा का दावा भी कमजोर नहीं है। कई दलों से अनुभव लेकर सम्राट चौधरी भाजपा के हो गए हैं। उनके पिता शकुनी चौधरी का बड़ा नाम है। एक बार इसी क्षेत्र से लोकसभा भी पहुंच चुके हैं।

महागठबंधन में इन्‍हें मिल सकता टिकट

अब महागठबंधन की बात। पिछले चुनाव में कैसर से हार चुकी राजद की कृष्णा कुमारी यादव इस बार भी रफ्तार में हैं। विधायक पूनम देवी की सगी बहन कृष्णा जिला परिषद अध्यक्ष रह चुकी हैं। हालांकि दोनों में अभी तालमेल नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि जरूरतों के वक्त पूरा परिवार-रिश्तेदार एक हो जाते हैं। कृष्णा को कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव से परेशानी हो सकती है, क्योंकि चंदन का कद कांग्रेस में अचानक बढ़ गया है।

चौथम (अभी बेलदौर) से दो बार विधायक रह चुके भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने भी दावा कर रखा है। पप्पू यादव की पार्टी जाप से मनोहर यादव भी दावा जता रहे हैं।

अतीत की राजनीति

कांग्रेस के टिकट पर जिया लाल मंडल 1957 एवं 1962 में लगातार दो बार सांसद चुने गए। उसके बाद कांग्रेस की जड़ उखड़ गई। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के के. सिंह एमपी बने। कांग्र्रेस की दोबारा वापसी 1980 में सतीश प्रसाद सिंह ने कराई। चारा घोटाले के आरोपी आरके राणा भी एक बार लोकसभा पहुंच चुके हैं। यहां से शिव शंकर प्रसाद यादव, ज्ञानेश्वर यादव, चंद्रशेखर प्रसाद वर्मा, राम शरण यादव, अनिल यादव, शकुनी चौधरी, रेणु कुमारी, दिनेश चंद्र यादव एवं महबूब अली कैसर चुने जाते रहे हैं।

2014 के महारथी और वोट

महबूब अली कैसर : लोजपा : 313806

कृष्णा कुमारी यादव : राजद : 237803

दिनेश चंद्र यादव : जदयू : 220316

जगदीश चंद्र वसु : माकपा : 24490

विधानसभा क्षेत्र

सिमरी बख्तियारपुर (जदयू), हसनपुर (जदयू), अलौली (राजद), खगडिय़ा (जदयू), बेलदौर (जदयू), परबत्ता (जदयू)


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