पटना विश्वविद्यालय में पढि़ए लैला-मजनूं की 'असली' किताब
पटना । देश की सातवीं सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी 'पटना विश्वविद्यालय' पिछले 100 सालों से राज्य में श्ि
पटना । देश की सातवीं सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी 'पटना विश्वविद्यालय' पिछले 100 सालों से राज्य में शिक्षा का केंद्र रहा है। यहां तमाम विषयों की पढ़ाई और शोध होते हैं। ढेर सारे गौरवशाली पल इस विश्वविद्यालय के साथ जुड़े हुए हैं। एक यह भी है कि मोहब्बत के सबसे बड़े प्रतीक 'लैला और मजनूं' की यहां असली किताब है। असली मतलब पांडुलिपि। उसके अलावा भी यहां कई प्रसिद्ध प्राचीन पांडुलिपियां हैं। ये यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी में सुरक्षित हैं। माना जाता है कि यहां रखी लैला-मजनूं की पांडुलिपि 17वीं सदी की है।
: 14वीं सदी की किताबें भी हैं संरक्षित :
पटना विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी में लैला-मजनूं से भी अधिक पुरानी किताबों का संग्रह है। यहां 14वीं सदी की 'सरोज कलिका' और 'मालती माधवन', 15वीं सदी की 'तोलीनामा' और 'रिसाला सिफत जरूरिया', 16वीं सदी की 'जहांगीरनामा', 'वृहद जातक' और 'खतमाये फरहांशे जहांगीरी' तथा 17वीं सदी की 'मसनवी सीन खुसरो' और 'लैला मजनूं' जैसी दुर्लभ पांडुलिपियां यहां सुरक्षित हैं। इस लाइब्रेरी में मैथिली, बांग्ला, तिब्बती, ब्रजभाषा, तमिल, उड़िया, संस्कृत, ¨हदी, नेपाली, अरबी, फारसी और उर्दू में लिखीं पांडुलिपियां मौजूद हैं।
: पशुओं के चमड़े पर लेखन का गवाह :
पुस्तकालय में रखीं पुरानी किताबें सभ्यता के विकास को भी दर्शाती हैं। पढ़ने-लिखने की भूख इंसानों में आदिम है। इसी भूख ने इसे सबसे अनूठा जीव बना दिया। यहां की किताबें दिखाती हैं कि जब तकनीक बहुत विकसित नहीं थी, तब चमड़े, लकड़ी आदि पर लेखन होता था। यहां ताड़ पत्र, पशु चर्म, लकड़ी आदि की पांडुलिपियां भी मौजूद हैं।
: आधुनिक पुस्तकों का भी समृद्ध भंडार :
98 साल पुराने हो चुके इस पुस्तकालय में आधुनिक युग की किताबें भी खूब हैं। समाज विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी, विज्ञान, इंजीनिय¨रग, चिकित्सा सहित तमाम विषयों की किताबों का संग्रह यहां मौजूद है। जीर्णोद्धार के लिए इस लाइब्रेरी को लंबे समय तक बंद रखे जाने के बाद हाल ही में राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने इसका पुनरोद्घाटन किया है। अब यहां कंप्यूटर और इंटरनेट आदि के साथ बेहतरीन वाचनालय का भी निर्माण किया गया है। सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना 1919 में हुई थी, लेकिन अभी जिस भवन में यह स्थापित है वह 1965 में बनकर तैयार हुआ था।