नई तकनीक से जैविक खेती को और बनाया जाएगा सशक्त, लागत कम, मुनाफा ज्यादा
देश व दुनिया में पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। अब तरुण मित्र ने भी ऑगेनिक खेती के लिए नई तकनीक का प्रयोग कर इसे कम लागत पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा देने के लिए खेती करने पर जोर दिया है।
पटना [नीरज कुमार]। देश व दुनिया में पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। लोगों में भी पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे के प्रति जागरूकता आ रही है। राजधानी पटना के तरुमित्र आश्रम में भी पर्यावरण संरक्षण एवं आर्थिक विकास के मुद्दे पर साथ-साथ काम हो रहा है। इसमें मुख्य भूमिका निभा रही हैं आश्रम की संयोजिका मारग्रेट।
तीन एकड़ में जैविक खेती
तरुमित्र आश्रम में वर्तमान में तीन एकड़ में जैविक खेती हो रही है। पिछले दस वर्षो से खेत में किसी प्रकार के खाद का उपयोग नहीं किया गया है। न ही कीटों को मारने के लिए किसी तरह के दवाओं का उपयोग होता है। यहां पर पूरी तरह से परंपरागत तरीके से खेती की जाती है।
स्प्रींकलर से होती है सिंचाई
तरुमित्र आश्रम के खेतों में स्प्रींकलर से सिंचाई होती है। इससे पानी की लगभग 30 फीसद की बचत होती है। नई तकनीक से जल संरक्षण होता है। साथ ही इससे ऊर्जा की भी बचत होती है। इससे लागत में कम से कम 25 फीसद की कमी आती है और पैदावार में वृद्धि होती है।
पक्षी करते कीटों से फसलों की रक्षा
ऐसा नहीं कि यहां पर लगाई जाने वाली फसलों में कीट नहीं लगते हैं। यहां पर भी कीट लगते हैं, लेकिन उनसे निपटने के लिए प्राकृतिक तरीके अपनाए जाते हैं। कीटों से फसलों को बचाने में पक्षियों की मदद ली जाती है। यहां पर खेत में जगह-जगह लकड़ी के खंभे गाड़ दिये जाते हैं। उन खंभों पर बराबर पक्षी बैठे रहते हैं। जैसे ही कोई कीट फसलों को काटने के लिए बाहर निकलता है, पक्षी उस पर झपट पड़ते हैं और कीट को पकड़ कर उड़ जाते हैं।
लागत में 40 फीसद की बचत
तरुमित्र आश्रम के निदेशक फादर राबर्ट अर्थिकल का कहना है कि कृषि में परंपरागत तरीकों का उपयोग करने से लगभग 40 फीसद की बचत हो रही है और पैदावार भी स्वास्थ्यवर्द्धक पैदा हो रहा है।
आश्रम में तैयार होता है वर्मी कंपोस्ट
खेतों में डालने के लिए यहां पर वर्मी कंपोस्ट बनाया जाता है। यहां पेड़ों की पत्तियों एवं गोबर के मिश्रण से वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है। इसके लिए एक यूनिट की तैयार की गई है। यहां पर सालोभर वर्मी कंपोस्ट तैयार होते रहता है। उसी कंपोस्ट का उपयोग खेतों में किया जाता है। इससे पैदावार में लगभग 30 फीसद की वृद्धि हो गई है।
धान व चना की खेती एक-दूसरे का पूरक
आश्रम के खेतों में खरीफ के मौसम में धान की फसल लगाई जाती है। धान की फसल कटने के बाद, उसी खेत में चना की खेती की जाती है। चना की खेती करने से खेत में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। इसका लाभ धान की फसल को भी मिलता है। चना की फसल कटने के बाद उसी खेत में मूंग की फसल लगाई जाती है। उससे भी खेत में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है।