सच्ची भक्ति के जरिए ही दुखों का अंत संभव
आज हर मनुष्य सुख की तलाश में निरंतर भागता है।
पटना। आज हर मनुष्य सुख की तलाश में निरंतर भागता है। सुबह से शाम, दिन से रात और फिर जन्म से मृत्यु तक सुख प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है, परंतु वह सुख को नहीं प्राप्त कर पाता है। ये बातें दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के तत्वावधान में नौबतपुर के त्रिभवन उच्च विद्यालय के खेल मैदान में आयोजित पाच दिवसीय श्रीरामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी यादवेंद्रानंद जी ने सत्संग में कहीं।
श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास के दोहा 'श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं। रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।।' को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर की भक्ति के बिना कोई भी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता है। हमारे समस्त धार्मिक ग्रंथों एवं महापुरुषों ने यही बताया है। दूसरी तरफ विडंबना है कि आज लगभग सभी मनुष्य अपने-अपने तरीके से भक्ति करते हुए भी दु:खी है। इसका मूल कारण है कि सभी मन की भक्ति करते हैं। महापुरुषों द्वारा बताई गई शाश्वत भक्ति की वास्तविक विधि को नहीं जानते। उन्होंने कहा कि 'भक्ति' का अर्थ होता है 'जुड़ना या मिलना'। हम परमात्मा से तब मिलेंगे जब परमात्मा को देखेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मुझे इन स्थूल नेत्रों के द्वारा नहीं देख सकते, मैं तुम्हें दिव्य चक्षु प्रदान करता हूं, जिससे तुम मेरे वास्तविक रूप यानी 'प्रकाश' को देख पाओगे और उन्होंने दिखाया। वर्तमान समय में भी अगर पूर्ण सतगुरु का पदार्पण हो तो वह अपनी कृपा से शिष्य के अंदर दिव्य दृष्टि प्रदान कर ईश्वर के वास्तविक रूप (प्रकाश रूप) का साक्षात्कार करा सकते हैं और आपको शाश्वत भक्ति यानी परमानंद से जोड़ सकते हैं। इस दौरान पुष्पा भारती ने दिव्य भजन प्रस्तुत किए और संस्थान के उद्देश्य को बताया।