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अच्छी कविताएं ही अच्छे इंसान रचती हैं

बिहार दूसरों राज्यों से काफी अलग है। यहां की साहित्यिक चेतना सबसे उन्नत है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 02:27 AM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 06:11 AM (IST)
अच्छी कविताएं ही अच्छे इंसान रचती हैं
अच्छी कविताएं ही अच्छे इंसान रचती हैं

पटना। बिहार दूसरों राज्यों से काफी अलग है। यहां की साहित्यिक चेतना सबसे उन्नत है। साहित्य में सबसे अधिक प्रतिक्रिया बिहार से ही मिलती है। पटना में व्याख्यान की पुरानी परंपरा रही है, जिसमें बाहर से लोगों को बुलाया जाता रहा है। ये बातें शनिवार को बिहार संग्रहालय में लखनऊ से आए इंजीनियर व कवि नरेश सक्सेना ने कहीं। नई धारा की ओर से आयोजित उदयराज स्मृति सम्मान एवं नई धारा सम्मान कार्यक्रम के दौरान गोरखपुर के कवि व समालोचक एवं भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गाजियाबाद से दलित साहित्य के लेखक डॉ. श्यौराज सिंह 'बेचैन' दिल्ली से मिथिला और हिदी के लेखक डॉ. देवशंकर नवीन, गाजियाबाद से आए कहानीकार राजकमल आदि मौजूद थे। समारोह के दौरान वर्ष 2019 के लिए उदयराज सिंह स्मृति सम्मान से नरेश सक्सेना को अंग वस्त्र, प्रतीक चिह्न व एक लाख का पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। वही नई धारा रचना सम्मान से डॉ. श्यौराज सिंह 'बेचैन' डॉ. देवशंकर नवीन, कहानीकार राजकमल को अंग वस्त्र, प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया। समारोह के दौरान 'हमारे समय की कविता और भारतीय समाज' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया। व्याख्यान की अध्यक्षता प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की एवं मुख्य वक्ता के रूप में नरेश सक्सेना ने अपने विचार दिए। सक्सेना ने कहा कि वे तो साहित्य का विद्यार्थी रहे नहीं फिर भी साहित्य के प्रति रूचि थी। साहित्य को समझने का बहुत प्रयास किया फिर तो लगा कि उनके वश की बात नहीं। उन्होंने कहा कि साहित्य आनंद के लिए होता है। ज्ञान के लिए तो लाइब्रेरी है। अच्छी कविताएं ही अच्छे इंसान रचती हैं, जिससे अच्छा समाज बनता है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के अनियंत्रित शोर के जमाने में आज अच्छी कविताएं बहुत कम सामने आ रही हैं। इसकी वजह से संवेदनहीनता एवं असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। इसका प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ रहा है। नरेश सक्सेना ने कहा कि कोई भी कला हो अगर आनंदित नहीं करती तो वह कला नहीं है। कला अज्ञान से नहीं उपजती। अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था पर उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया में अंग्रेजी का वातावरण है ऐसे में हिदी साहित्य कहां तक बच पाएगा। हमारे जीवन और समाज में कोई साहित्य नहीं है। आजादी के 72 साल होने पर भी एक भी विश्व स्तरीय अनुसंधान नहीं है। आजादी के पहले भाषाएं गुलाम नहीं थीं, लेकिन आजादी के बाद भाषाएं गुलाम हो गई। ध ंध में छिप गई है अच्छी कविता -

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लखनऊ से आए नरेश सक्सेना ने कहा कि आज के समय में कविता रचना में बहुत समय लगता है। सोशल मीडिया के माध्यम से कविता का बहुत बड़ा मंच हासिल हो गया है। ऐसे धुंध में अच्छी कविता छिप गई है। अच्छी कविता की पहचान का संकट हर काल में रहा है। आज आलोचकों के सामने बड़ी समस्या है। वह अच्छी कविता को सामने लाकर देश और समाज की सेवा करें। स्वागत भाषण के दौरान नई धारा के प्रधान संपादक डॉ. प्रथमराज सिन्हा ने कहा कि नई धारा केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं बल्कि हमारे लिए रचनात्मक अभियान है। जहां साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहता है। अध्यक्षीय भाषण में प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि आजा देश की साहित्यिक पत्रिकाओं में नई धारा अकेली पत्रिका है, जो न केवल बीते 70 सालों से निरंतर प्रकाशित हो रही है। बल्कि अपने संसाधनों से पिछले 13 सालों से साहित्यकारों को सम्मानित भी करती आ रही है। उन्होंने कहा कि जो समाज साहित्य का आदर नही करता वे अपनी विरासत से कटकर जड़ हो जाता है। डॉ. श्यौराज सिंह 'बेचैन' ने कहाकि जनोन्मुखी लेखन को बढ़ावा देने वाली पत्रिकाओं में नई धारा आगे रही है। डॉ. देवशंकर नवीन ने कहा कि साहित्य कर्म मेरे लिए देश समाज की सेवा का व्रत है। कथाकार राजकमल ने कहा कि कथाकार रेणु-नागार्जुन की धरती पर नई धारा के सम्मान से अभिभूत हूं। नई धारा के संपादक डॉ. शिवनारायण ने कहा कि किसी लेखक के जीवन की सार्थकता उसकी निजी उपलब्धियों में नहीं बल्कि उसे समाज सापेक्ष संघर्ष में है। उन्होंने कहा कि 70 वर्षो से लगातार नई धारा प्रकाशित हो रही है। नई धारा बिहार के सूर्यपुरा राज परिवार की पांच पीढि़यों की हिदी सेवा का व्रत है। समारोह का समापन कथाकार शंभु पी सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन से किया।


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