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पुस्तकालय की तरह ज्ञान का भंडार होते हैं बुजुर्ग

जेडी वीमेंस कॉलेज में चल रहा दर्शन परिषद् का 41वां वार्षिक अधिवेशन

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 11:45 PM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 11:45 PM (IST)
पुस्तकालय की तरह ज्ञान का भंडार होते हैं बुजुर्ग
पुस्तकालय की तरह ज्ञान का भंडार होते हैं बुजुर्ग

जेडी वीमेंस कॉलेज में चल रहे दर्शन परिषद्, बिहार के 41 वें वार्षिक अधिवेशन के दूसरे दिन बुधवार को कई शैक्षणिक कार्यक्रम संपन्न हुए। इसके तहत मुख्य रूप से व्याख्यान, संगोष्ठी एवं पत्र-वाचन हुए। इसमें देश के कई विद्वानों ने दर्शन के विभिन्न विषयों पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। व्याख्यान में उठे समाजिक शिक्षा पर सवाल

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अधिवेशन में कुल 9 व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। इनमें डॉ. रामजी सिंह ने शिक्षा, समग्र स्वास्थ्य एवं स्वच्छता गांधी दर्शन के संदर्भ में विषय पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि गाधी की शिक्षा पद्धति भारतीय संस्कृति के अनुरूप हैं। इसमें आतरिक एवं बाह्य, दोनों तरह की स्वच्छता की बात निहित है। इसके माध्यम से हम समग्र स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकते हैं। डॉ. आईएन सिन्हा ने 'डॉ. रामनारायण शर्मा बुजुर्ग विमर्श' पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बुजुर्ग ज्ञान के भंडार होते हैं। एक बुजुर्ग का निधन से एक पुस्तकालय का अंत हो जाता है। यही कारण है कि प्राचीन भारत में बुजुर्गो को काफी सम्मान प्राप्त था। लेकिन, वर्तमान काल में बुजुर्गो की स्थिति खराब हुई है। बुजुर्गो के प्रति समाज की वर्तमान धारणा को बदलने की जरूरत है। साथ ही बुजुर्गो को भी चाहिए कि वे निहित स्वार्थो से ऊपर उठकर लोक कल्याणार्थ अपना जीवन समर्पित करें। डॉ. प्रभु नारायण मंडल ने सिया देवी माधवपुर (खगड़िया) स्मृति व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि मूल्यों के संदर्भ में सापेक्षवाद, एकत्ववाद एवं बहुलवाद, ये तीन सिद्धात प्रचलित हैं। इनमें बहुलवाद एक उदारवादी मत है। इसके अनुसार सभी मूल्यों के बीच समन्वय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वर्तमान संदर्भ में यह आवश्यक है कि हम किसी एक मूल्य या मूल्यों के समूह को सभी पर नहीं थोपें। मूल्यों की बहुलता को स्वीकार करें। सभी मूल्यों के बीच समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित करें। डॉ. जटाशकर ने व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि समग्र स्वास्थ्य और समग्र शिक्षा भारतीय चिंतन के मूल में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन में निरंतरता है। यहा मुक्ति का अर्थ लोक से मुक्ति नहीं है, बल्कि संसार में रहते हुए मुक्ति है।

मौके पर मौजूद इन व्यक्तियों ने भी रखी अपनी राय :

डॉ आलोक टंडन, डॉ.नीलिमा सिन्हा, डॉ. सभाजीत मिश्र, डॉ. महेश सिंह संगोष्ठी में दिखी भाषा दर्शन

अधिवेशन में मंडन मिश्र एवं वाचस्पति मिश्र का भाषा दर्शन द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजित की गयी। इसकी अध्यक्षता आइसीपीआर, नई दिल्ली के सदस्य-सचिव डॉ. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। इसमें डॉ. अम्बिका दत्त शर्मा (सागर) ने टिप्पणीकार की भूमिका निभाई। इसमें विभिन्न वक्ताओं ने इन दोनों दार्शनिकों के अवदानों को रेखाकित किया गया। पत्र वाचन में पांच विभागों ने रखी अपनी राय :

अधिवेशन में पाच विभाग धर्म दर्शन, नीति दर्शन, समाज दर्शन, तत्व मीमासा एवं ज्ञान मीमासा में लगभग सौ शोध आलेख प्रस्तुत किए गए। इन विभागों की अध्यक्षता डॉ. राजीव कुमार (दरभंगा), डॉ. सुनील कुमार सिंह हाजीपुर, ईश्वरलाल, (भगवानपुर), डॉ. अविनाश कुमार श्रीवास्तव, (नालंदा) एवं डॉ. नीलिमा कुमारी (भागलपुर) ने की।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से सामान्य अध्यक्ष डॉ. नरेश प्रसाद तिवारी, महाविद्यालय की प्रधानाचार्य डॉ. सुधा ओझा, आयोजन सचिव डॉ. वीणा कुमारी, डॉ. राजकुमारी सिन्हा, डॉ. पूनम सिंह, डॉ. शभु प्रसाद सिंह, डॉ शैलेश कुमार सिंह, डॉ किस्मत कुमार सिंह, डॉ. पूणर्ेंदु शेखर, डॉ. नागेन्द्र मिश्र, डॉ. नंदनी मेहता, डॉ. रेखा मिश्र, डॉ. एमपी चौरसिया, डॉ.निर्मला झा, डॉ.मुकेश कुमार चौरसिया, डॉ. सुधाशु शेखर, डॉ. नीरज प्रकाश आदि उपस्थित थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम ने बांध समां

अधिवेशन के मंच पर संगोष्ठी के बाद शाम में सरोज वादन से रीता दास ने सब की तालियां बटोरीं तो वहीं सूफी गायन और बांसुरी वादन ने सब को अपनी तरफ आकर्षित किया। साथ ही कॉलेज की छात्राओं ने अपने नृत्य और गायन से सब को मंत्रमुग्ध किया।


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