सोनपुर मेले में अब नहीं दिखते हाथी, बिना चिप लाए गए तो हो जाएंगे जब्त, जानिए
कभी हाथियों के लिए प्रसिद्ध रहे बिहार के सोनपुर पशु मेला में अब हाथी नहीं दिखते। इसके पीदे कारण कड़ा कानून है। पूरा मामला जानिए इस खबर में।
पटना [मृत्युंजय मानी]। गंगा-गंडक के संगम पर सोनपुर में विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र पशु मेला 21 नवंबर को शुरू होने जा रहा है। कभी हाथियों के लिए प्रसिद्ध इस मेले में अब हाथी देखने को नहीं मिलते। बीते साल केवल एक हाथी एक दिन के लिए आया था। इस साल भी बिना चिप वाले (अनिबंधित) हाथी आने पर जब्त कर लिए जाएंगे। साथ ही, पक्षी मेला पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक डीके शुक्ला ने कहा कि सोनपुर पशु मेला में हाथी की खरीद-बिक्री पर रोक है। अवैध तरीके से आने वाले हाथी जब्त कर लिए जाएंगे।
कड़े कानून का पड़ा प्रतिकूल असर
हाथियों के लिए प्रसिद्ध सोनपुर मेला अब हाथी विहीन होता जा रहा है। पिछले वर्ष एक दिन के लिए केवल एक हाथी यहां आया था। इस साल बिना चिप वाले (अनिबंधित) हाथी आने पर जब्त करने का फरमान जारी कर दिया गया है। निबंधन के साथ पर्यावरण, वन एवं जलवायु विभाग हाथियों के शरीर में एक चिप लगा देता है। विभाग के नये फरमान के बाद इस वर्ष हाथी आएगा या नहीं, यह यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है। कड़े कानून के कारण राज्य की सीमा क्षेत्र के हाथियों को मेला में आने के लिए स्थानीय डीएफओ से अनुमति लेनी है।
हाथी देखने आते पर्यटक, होते निराश
सोनपुर मेला में आने वाले विदेशी मेहमान और घरेलू पर्यटक हाथी देखने के लिए आते हैं। पिछले वर्ष मात्र एक हाथी आया, वह भी मात्र पूर्णिमा के दिन। विभाग के आंकड़े पर ध्यान दें तो 1986 में मेले में 155 हाथी आए थे। 2005 तक हाथी की संख्या 100 से अधिक रही। 2007 में यह संख्या गिरकर 70 पर आ गई। दूसरे राज्यों से आने वाले हाथियों पर रोक लग गई।
2012 में हाथियों की संख्या 40 पर आ गई। 2013 में 39 हाथी आए। 2014 में कानूनी शिकंजा इस कदर कसा कि महज 14 हाथी सोनपुर मेले में पहुंचे। 2015 और 16 में भी 14-14 हाथी आए। 2017 में तो महज एक हाथी एक दिन के लिए लाया गया।
वन्य प्राणी अधिनियम के तहत खरीद-बिक्री पर रोक
वन्य प्राणी अधिनियम 2003 के तहत हाथियों की खरीद-बिक्री पर रोक लगाई गई है। हाथियों की घटती संख्या को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु विभाग 2012 में उनकी खरीद बिक्री पर सख्त हो गया। मेला शुरू होने के पहले दबिश बढ़ा दी गई थी। दान की आड़ में होने वाली बिक्री पर स्वामित्व प्रमाणपत्र देने पर रोक लगा दी गई। 2011 में कई हाथी दान देकर स्वामित्व प्रमाणपत्र ले लिए गए थे।
अब बाहर से नहीं आते हाथी
खरीद-बिक्री पर रोक के चलते वर्ष 2012 में असम सहित अन्य राज्यों से हाथी नहीं आए। बिहार के विभिन्न हिस्सों से ही हाथी आए। राज्य में अभी करीब 80 हाथी हैं।