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खामोश हो गई नृत्य कला मंदिर में घुंघरुओं की आवाज

पटना। स्वर लय और ताल से हर दिन गूंजने वाला सभागार इन दिनों अपनी खामोशी की दास्तां सुनाने लगा है। कभी यहां घुंघरुओं की आवाज खनकती थी लेकिन अब सन्नाटे का आलम है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 01:59 AM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2021 01:59 AM (IST)
खामोश हो गई नृत्य कला मंदिर में घुंघरुओं की आवाज
खामोश हो गई नृत्य कला मंदिर में घुंघरुओं की आवाज

पटना। स्वर, लय और ताल से हर दिन गूंजने वाला सभागार इन दिनों अपनी खामोशी की दास्तां सुनाने लगा है। बात हो रही है फ्रेजर रोड स्थित भारतीय नृत्य कला मंदिर की। बिहार कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अधीन चलने वाले भारतीय नृत्य कला मंदिर की स्थापना राज्य में कला व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हुई थी। इसमें पद्मश्री हरि उप्पल ने अपनी भूमिका निभाई थी। जिस उद्देश्य से उन्होंने स्थापना की थी, वो चमक आज फीकी पड़ गई है।

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नृत्य कला मंदिर भवन का शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 25 फरवरी 1956 को किया था। उन दिनों नृत्य कला की विभिन्न विधाओं में नामांकन लेने के लिए छात्रों में होड़ रहती थी। अब आलम यह है कि परिसर में गिने-चुने छात्र-छात्राओं का ही नामांकन होता है। छात्रों की संख्या में हो रही गिरावट का मुख्य कारण कई विभागों का बंद होना भी है। शास्त्रीय नृत्य की होती थी पढ़ाई : आरंभ के दिनों में हरि उप्पल की प्रेरणा से यहां पर मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, ओडिशी नृत्य व कथक की शुरुआत हुई थी। उनके प्रयास से बिहार में शास्त्रीय नृत्य की हवा बहने लगी थी। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रतिभा से सभी को आकर्षित किया है। उनके गुजरने के बाद अब शिक्षकों के अभाव में कई विभाग बंद हो गए हैं। वर्षो से बंद पड़े कई विभाग : नृत्य कला मंदिर में मणिपुरी, कुचीपुड़ी, कथकली, ओडिशी आदि नृत्य का प्रशिक्षण तीन-चार वर्षो से बंद है। शिक्षकों की कमी के कारण कई विभाग बंद हो गए हैं। वहीं, तबला, हारमोनियम सहित अन्य विधाओं में प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों का अभाव है। नामांकन के लिए छात्र-छात्राएं आते हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी होने से वापस लौट जाते हैं। मणिपुरी नृत्य में एच. विनोदिनी देवी, ओडिशी में तमाल पात्रा, कथक में प्रो. शिवजी मिश्र, गिटार में समरजीत मुखर्जी आदि शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने के बाद नई बहाली नहीं हो पाई है। कथक शिक्षक के सेवानिवृत्त होने के बाद तबला वादक बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। वहीं, लोक संगीत में मनोरंजन ओझा, लोकनृत्य में सोमा चक्रवर्ती, शास्त्रीय गायन में डॉ. रेखा दास, भरतनाट्यम में संगीता रमण कुट्टी जैसे शिक्षक प्रशिक्षण दे रहे हैं। लोक संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए 2006 में खुले थे विभाग :

लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नृत्य कला मंदिर में वर्ष 2006 में लोक संगीत व लोकनृत्य का विभाग खुला था। लोकनृत्य की शिक्षिका सोमा चक्रवर्ती बताती हैं, विभाग खोलने का मुख्य उद्देश्य बिहार की लोक परंपरा व संस्कृति को बच्चों से रूबरू कराने के लिए विभाग खोला गया था। लोक संगीत व नृत्य को लेकर आज भी बच्चों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हालांकि, अन्य विभागों में शिक्षकों की कमी है। नृत्य कला मंदिर की कोषाध्यक्ष सुदीपा बोस ने बताया, शिक्षकों की कमी को लेकर विभाग को जानकारी दी गई है। इस दिशा में विभाग को निर्णय लेना होगा, जिससे नृत्य कला मंदिर की गरिमा अक्षुण्ण रहे।


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