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बिहार विधान परिषद में अब माले को भी चाहिए भागीदारी, 31 साल तक विरोध के बाद बदली रणनीति

पहली बार विधानसभा की दर्जन भर सीट जीतने वाली भाकपा माले (CPI ML) को अब विधान परिषद में भी भागीदारी चाहिए। पार्टी ने महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद (RJD) को अपनी इच्छा की जानकारी दे दी है।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Thu, 06 Jan 2022 10:55 AM (IST)Updated: Thu, 06 Jan 2022 11:33 PM (IST)
बिहार विधान परिषद में अब माले को भी चाहिए भागीदारी, 31 साल तक विरोध के बाद बदली रणनीति
विधान परिषद चुनाव में माले करेगी भागीदारी। सांकेतिक तस्‍वीर

अरुण अशेष, पटना। पहली बार विधानसभा की दर्जन भर सीट जीतने वाली भाकपा माले (CPI ML) को अब विधान परिषद में भी भागीदारी चाहिए। पार्टी ने महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद (RJD) को अपनी इच्छा की जानकारी दे दी है। राजद ने उसे सकारात्मक परिणाम देने का भरोसा दिया है। गठबंधन के दलों में राज्यसभा या विधान परिषद की सीटों के लिए तोल मोल पुरानी परिपाटी है। लेकिन, माले का कोई सदस्य अगर विधान परिषद में जाता है तो बिहार की राजनीति के लिए बिल्कुल नई परिपाटी की शुरुआत होगी। क्योंकि अब तक विधान परिषद को गैर-जरूरी बताती रही है। यहां तक कि संसदीय राजनीति में आने के बाद माले के किसी विधायक ने विधान परिषद चुनाव के मतदान में हिस्सा नहीं लिया। 

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जुलाई में रिक्‍त हो रहीं विप की सात सीटें 

बिहार विधान परिषद की सात सीटें इस साल जुलाई में रिक्त हो रही हैं। ये विधायकों के वोट से भरी जाएंगी। 2016 के चुनाव में इनमें से दो पर राजद, तीन पर जदयू और दो पर भाजपा की जीत हुई थी। वह चुनाव 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद हुआ था। 2020 के चुनाव में विधानसभा की संरचना बदली। जुलाई के चुनाव में जीत के लिए एक उम्मीदवार को 31 विधायकों का वोट चाहिए। हालांकि चुनाव उसी हालत में होता है, जब रिक्त सीट से अधिक उम्मीदवार मैदान में रहें। आम तौर पर चुनाव की नौबत कम ही आती है। गठबंधन के दल आपस में बातचीत कर क्षमता के हिसाब से इतने ही उम्मीदवार खड़े करते हैं, जिससे बगैर मतदान के निर्वाचन हो जाए।

माले के लिए अपने दम पर संभव नहीं 

भाकपा माले के 12 और भाकपा-माकपा के दो-दो विधायक साथ रहें, फिर भी अपने दम पर वाम दल का कोई सदस्य विधान परिषद में नहीं जा सकता है। असल में परिषद और राज्यसभा के चुनाव में दलों के बीच विधायकों का लेन देन चलता है-इस बार आप हमारी मदद कीजिए, अगली बार हम हिसाब चुका देंगे। माले ने इसी फार्मूला के तहत विधान परिषद की एक सीट की मांग की है। अगर यह संभव हुआ तो माले के विधायक 2022 के राज्यसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार को वोट करेंगे। भाकपा माले अपने छतरी संगठन आइपीएफ के जरिए 1990 में चुनावी राजनीति में उतरी। तब से अब तक माले के विधायकों ने विधान परिषद चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। वैसे, 11 जनवरी को पटना में आयोजित माले की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में ही इस पर अंतिम निर्णय होगा। 

वाम दलों के सदस्य जाते रहे हैं राज्यसभा

1990 में जनता दल की सरकार बनी। वाम दलों ने उसका समर्थन किया। दो पुराने वाम दल भाकपा-माकपा से लालू प्रसाद का दोस्ताना रिश्ता रहा है। इन दोनों दलों के विधायक एकीकृत जनता दल और बाद में राजद के राज्यसभा-विधान परिषद उम्मीदवारों को वोट देते रहे हैं। राज्यसभा में माले के विधायकों का भी साथ मिलता रहा है। एवज में भाकपा के चतुरानन मिश्र, नागेंद्र नाथ ओझा, जलालुद्दीन अंसारी और गया सिंह जद-राजद की मदद से राज्यसभा गए। माकपा के चंडी प्रसाद और सुबोध राय को परिषद में अवसर मिला। 


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