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भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी मनायी जाती है मकर संक्रांति, जानिए परंपरा

मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। देश में ही नहीं, विदेशों में भी इस त्योहार को मनाने की परंपरा है इसका नाम अलग औऱ मनाने का तरीका अलग है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 12:30 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jan 2018 09:51 PM (IST)
भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी मनायी जाती है मकर संक्रांति, जानिए परंपरा
भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी मनायी जाती है मकर संक्रांति, जानिए परंपरा

पटना [काजल]। मकर संक्रान्ति का त्योहार देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। भारत में इसे कई नामों से जानते हैं तो वहीं विदेशों में भी इसके अलग-अलग नाम प्रचलित हैं। इसे मनाने का तरीका भी भिन्न-भिन्न है। इसे फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।

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भारत  में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य त्योहार के लिए नहीं। यह पर्व वस्तुत: कृषि से जुड़ा त्योहार है जिसमें किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद मांगते हैं। 

सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने पर वसंत का आगमन होता है

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। पौष मास में जब सूर्य देवता धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं और मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की किरणें धीरे-धीरे ऊ्ष्ण होने लगती हैं।

संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि बारह राशियों में दसवीं राशि होती है। संक्रांति उस काल को या तिथि को कहते हैं, जिस दिन सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है और संक्रमण काल के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।

मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़े होने लगते हैं और इसी के साथ वसंत ऋतु का आगमन होता है। सूर्य के उत्तरायण होने से व्यक्ति में नई ऊर्जा का संचार होता है और रोग, दोष, संताप से मुक्ति मिलती है। 

तमिलनाडु में पोंगल और असम में बीहू कहते हैं

यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है और मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।

मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

भारत में मकर संक्रांति के नाम

तमिलनाडु में-ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल  

गुजरात, उत्तराखण्ड में-उत्तरायण 

 हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में-माघी 

असम में-भोगाली बिहु  

कश्मीर घाटी में- शिशुर सेंक्रात  

उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में-खिचड़ी 

पश्चिम बंगाल में-पौष संक्रान्ति 

कर्नाटक में-मकर संक्रमण 

विदेशों में 

बांग्लादेश में- शक्रायण/ पौष संक्रान्ति

नेपाल में- माघे सङ्क्रान्ति/ 'माघी सङ्क्रान्ति/'खिचड़ी सङ्क्रान्ति'

थाईलैण्ड में- सोङ्गकरन

लाओस में- पि मा लाओ

म्यांमार में- थिङ्यान

कम्बोडिया में- मोहा संगक्रान

श्री लंका में- पोंगल, उझवर तिरुनल

नेपाल में धूमधाम से मनाई जाती है संक्रांति

नेपाल के सभी प्रान्तों में मकर संक्रांति अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनायी जाती है। 

नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है।

नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

भारत में मकर संक्रान्ति 

हरियाणा-पंजाब में लोहड़ी

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व यानि तेरह जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है।

इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियाँ मनाते हैं। बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है

उत्तर प्रदेश में दान पर्व

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है।

14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है।

माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं।

इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

बिहार में खिचड़ी

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। इस दिन हर घर में खिचड़ी बनाई जाती है, जिसमें उड़द की दाल का प्रयोग जरूर किया जाता है। इसके साथ ही मौसमी सब्जियों का इस्तेमाल भी होता है। कुछ इलाकों में इस दिन दही चूड़ा गुड़ तिलकुट खाने का प्रचलन भी है। बिहार में राजनीतिक पार्टियों की दही चूड़ा की दावत तो मशहूर है।

महाराष्ट्र में तिलगुड़

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।

बंगाल में तिल दान

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"

तमिलनाडु में पोंगल 

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है।

पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू 

राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

मकर संक्रांति पर गुजरात में होती है पतंगबाजी

मकर संक्रांति के अवसर पर गुजरात में होने वाली पतंगबाजी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति (उत्तरायण) के अवसर पर यहां अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें  नीला आसमान इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो जाता है। गुजरात की ही तरह देश के अन्य हिस्सों में भी पतंगबाजी के आयोजन किए जाते हैं। 

मकर संक्रान्ति का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। 

मकर संक्रांति के बाद ही शुरू होते हैं शुभ कार्य

सूर्य के दक्षिणायन होने के बाद ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 जनवरी को खरमास समाप्त होने के बाद 15 जनवरी से ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। 14 जनवरी को रात दो बजकर 49 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसी के अगले दिन यानी 15 जनवरी को मकर संक्रांति होगी। 15 जनवरी को ही पहला मांगलिक मुहूर्त होगा।


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