Bihar Chunav 2020 Govrenment Formation: अब सबको साधने की रहेगी चुनौती
Bihar Chunav 2020 Govrenment Formation बिहार के मतदाताओं ने राजनेताओं को अगले पांच वर्षों के लिए राज्य में विकास की नई रेखा खींचने का जो अधिकार दिया है वह अग्निपरीक्षा भी है। स्पष्ट बहुमत के बाद भी राजग की चुनौतियां कम नहीं हैं।
रासबिहारी प्रसाद सिंह। Bihar Chunav 2020 Govrenment Formation सही अर्थों में वर्षों बाद चुनाव में बेरोजगारी एक असरदार पक्ष के रूप में दिखी। इसने युवा मतदाताओं को लुभाया भी है। इस चुनाव में सर्वाधिक सभा तेजस्वी यादव ने की और उनकी सभाओं में भीड़ भी थी। तेजस्वी युवा हैं। उम्र उनके साथ है। 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त लगभग 35-40 लाख ऐसे मतदाता होंगे, जिनका जन्म सुशासन काल में हुआ है और जंगलराज उनके लिए कथा-कहानी से अधिक नहीं होगा। यह जानना आवश्यक है कि 2024 के चुनाव में वर्तमान बिहार यानी साल 2000 के बाद जन्म लेने वाले मतदाताओं की संख्या लगभग 20 प्रतिशत होगी। ये 21वीं सदी के मतदाता होंगे और जंगलराज के अनुभवों से मुक्त होंगे।
यदि तेजस्वी यादव बेरोजगारी जैसे मुद्दों को आधार बनाकर लंबी राजनीति की तैयारी करते हैं तो 2024 में एनडीए के लिए सिरदर्द हो सकते हैं। लेकिन उन्हें लंबी राजनीति के लिए राजनीतिक धैर्य का विकास करना होगा। इस चुनाव परिणाम ने नीतीश कुमार को निराश जरूर किया है, लेकिन प्रेस काफ्रेंस में उनके बयान बहुत
ही नपे-तुले और परिपक्व थे। एनडीए ने यह चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे को आगे कर लड़ा था।
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो भाजपा एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद भी स्पीकर पद की दावेदारी, प्रथम चरण में मंत्रिमंडल में बराबरी की हिस्सेदारी, प्रशासनिक निर्णयों में पूर्व की तरह हस्तक्षेप नहीं की नीति आदि को लेकर कुछ हद तक विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद नीतीश कुमार के लिए सम्मानजनक स्थिति हो सकती है। यह भाजपा के लिए राजनीतिक मजबूरी भी है। बिहार की राजनीति की त्रासदी यह है कि यहां कोई भी दल अपने बूते स्पष्ट बहुमत नहीं ला सकता है। भाजपा, जदयू एवं राजद में दो को एक साथ मिलने पर ही सत्ता की कुंजी हाथ आती है। भाजपा और राजद बिहार की राजनीति में दो धुरी बन चुके हैं।
जदयू का महत्व दोनों के लिए बराबर है। यह साबित भी हो चुका है। आज की राजनीति में नीतीश कुमार की सीटें भले कम हों, पर वे केंद्रीय एवं निर्णायक स्थिति में हैं। भाजपा के कई सहयोगी कई राज्यों में उन्हें छोड़कर चले गए हैं। बिहार में जदयू उसका सबसे बड़ा सहयोगी है। अत: फिलहाल यहां की सियासत में कोई बड़ा उलटफेर नहीं दिखाई दे रहा। संभव है कि सरकार बनने के बाद चिराग पासवान के मामले में नीतीश कुमार का रुख भी ठंडा हो जाए। दूर की राजनीति के लिए यह उचित भी होगा। इतना निश्चित है कि आज की तारीख में एनडीए का सर्वाधिक सफल नेतृत्व सिर्फ नीतीश कुमार ही कर सकते हैं। उन्होंने विकास के अनेक र्कीितमान भी स्थापित किए हैं। एनडीए का बहुमत नीतीश कुमार के नाम पर है।
15 वर्षों तक शासन के बाद स्वत: कुछ सत्ता विरोधी लहर, चिराग पासवान फैक्टर एवं वामपंथियों के महागठबंधन में जाने के बावजूद बहुमत प्राप्त करना नीतीश कुमार पर जनता की स्पष्ट मुहर है। अत: आवश्यक है कि नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व मिलकर ऐसी सरकार बनाए, जिसमें विधायकों को आनुपातिक साझेदारी मिले, अन्यथा असंतोष की संभावना हो सकती है। ऐसी कोई भी स्थिति महागठबंधन को सत्ता के नजदीक ला सकता है।
[पूर्व कुलपति, पटना विश्वविद्यालय]
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