बिहार में महज 50 पैसे के पोस्टकार्ड को मंजिल तक पहुंचाने में खर्च हो रहे नौ रुपये
डाकिया डाक लाया वाला जमाना आज भी प्रदेश में बना हुआ है। एक साल में बिहार के करीब तीन करोड़ लोगों ने पोस्टकार्ड का इस्तेमाल किया।
By Edited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 01:21 AM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 08:42 AM (IST)
जितेंद्र कुमार, पटना। डाकिया डाक लाया। एक जमाना था कि अपनों के संदेश लेकर आने वाले डाकिया बाबू का इंतजार हर घर में होता था। अब जमाना डिजिटल हो गया और चिट्ठियां आने-जाने का सिलसिला भी लगभग खत्म होने लगा है। लेकिन, दिलचस्प है कि प्रदेश में अभी भी पोस्टकार्ड लिखने वालों की तादाद ठीक-ठाक है। बिहार में बीते एक साल में करीब तीन करोड़ से अधिक लोगों ने 50 पैसे के पोस्टकार्ड पर संदेश भेजा है। इससे भी ज्यादा दिलचस्प है कि डाक विभाग को 50 पैसे के पोस्टकार्ड को मंजिल तक पहुंचाने में करीब नौ रुपये से अधिक खर्च करना पड़ रहा है।
डाक विभाग को योजना पर केवल नुकसान
बाजार में एक रुपये से कम में शायद ही कोई चीजें मिलती है, लेकिन इंडिया पोस्ट का मेघदूत पोस्टकार्ड आज भी 25 पैसे और सामान्य पोस्टकार्ड 50 पैसे में आपको अपनों तक संदेश पहुंचाने के लिए सुलभ है। इस सेवा पर इंडिया पोस्ट को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। एक पोस्टकार्ड को पहुंचाने पर करीब नौ रुपये खर्च करना पड़ता है। यह खर्च वित्त मंत्रालय कल्याणकारी योजना के रूप में वहन करता है। 150 साल पुरानी हो चुकी डाक विभाग की सेवा भारतीय डाक और चिट्ठी लेखन का इतिहास काफी पुराना हो चुका है। डाक विभाग की सेवा के 150 साल पूरे हो चुके हैं।
करोड़ों में है पोस्टकार्ड की मांग
गोपनीय संदेश के लिए लोग अंतर्देशीय पत्र या लिफाफे का उपयोग करते थे। अंतर्देशीय पत्र में लिखा संदेश उसे विशेष तौर मोड़ने के बाद अंदर तक ढक जाता है। इससे गोपनीय संदेश कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं पढ़ सकता है। बदलते समय के साथ लिफाफा, रजिस्ट्री पोस्ट और अन्य माध्यमों का विस्तार हुआ, लेकिन पोस्टकार्ड की मांग अब भी करोड़ों लोगों के बीच है।
कई योजनाओं में हुआ इस्तेमाल
प्रचार का माध्यम भी पोस्टकार्ड किसी भी व्यक्ति, संस्था या सरकार की योजना को गांव-गांव तक पहुंचाने में पोस्टकार्ड एक बड़ा माध्यम बन गया है। रेल टिकट की तरह पोस्टकार्ड पर प्रिंटेड विज्ञापन आने लगा है। ज्यादा विज्ञापन सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का ही होता है। रक्तदान, एड्स नियंत्रण, स्वच्छ भारत, सर्व शिक्षा अभियान जैसी जन कल्याणकारी योजनाओं के विज्ञापन वाले पोस्टकार्ड आ रहे हैं।
पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार कहते हैं कि भारतीय डाक की कल्याणकारी सेवा में चिट्ठी प्रभाग शामिल है। पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और लिफाफा नागरिक सेवा के रूप में सुलभ कराया जाता है। पोस्टकार्ड पहुंचाने में हर साल खर्च में वृद्धि हो रही है। विभाग जन हित में इस योजना को जारी रखे हुए है।
डाक विभाग को योजना पर केवल नुकसान
बाजार में एक रुपये से कम में शायद ही कोई चीजें मिलती है, लेकिन इंडिया पोस्ट का मेघदूत पोस्टकार्ड आज भी 25 पैसे और सामान्य पोस्टकार्ड 50 पैसे में आपको अपनों तक संदेश पहुंचाने के लिए सुलभ है। इस सेवा पर इंडिया पोस्ट को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। एक पोस्टकार्ड को पहुंचाने पर करीब नौ रुपये खर्च करना पड़ता है। यह खर्च वित्त मंत्रालय कल्याणकारी योजना के रूप में वहन करता है। 150 साल पुरानी हो चुकी डाक विभाग की सेवा भारतीय डाक और चिट्ठी लेखन का इतिहास काफी पुराना हो चुका है। डाक विभाग की सेवा के 150 साल पूरे हो चुके हैं।
करोड़ों में है पोस्टकार्ड की मांग
गोपनीय संदेश के लिए लोग अंतर्देशीय पत्र या लिफाफे का उपयोग करते थे। अंतर्देशीय पत्र में लिखा संदेश उसे विशेष तौर मोड़ने के बाद अंदर तक ढक जाता है। इससे गोपनीय संदेश कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं पढ़ सकता है। बदलते समय के साथ लिफाफा, रजिस्ट्री पोस्ट और अन्य माध्यमों का विस्तार हुआ, लेकिन पोस्टकार्ड की मांग अब भी करोड़ों लोगों के बीच है।
कई योजनाओं में हुआ इस्तेमाल
प्रचार का माध्यम भी पोस्टकार्ड किसी भी व्यक्ति, संस्था या सरकार की योजना को गांव-गांव तक पहुंचाने में पोस्टकार्ड एक बड़ा माध्यम बन गया है। रेल टिकट की तरह पोस्टकार्ड पर प्रिंटेड विज्ञापन आने लगा है। ज्यादा विज्ञापन सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का ही होता है। रक्तदान, एड्स नियंत्रण, स्वच्छ भारत, सर्व शिक्षा अभियान जैसी जन कल्याणकारी योजनाओं के विज्ञापन वाले पोस्टकार्ड आ रहे हैं।
पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार कहते हैं कि भारतीय डाक की कल्याणकारी सेवा में चिट्ठी प्रभाग शामिल है। पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और लिफाफा नागरिक सेवा के रूप में सुलभ कराया जाता है। पोस्टकार्ड पहुंचाने में हर साल खर्च में वृद्धि हो रही है। विभाग जन हित में इस योजना को जारी रखे हुए है।
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