स्मृति शेष : गोपालदास नीरज संग खुशनसीब थी पटना की वो शाम...
गीतकार नीरज नहीं रहे, लेकिन अपने गीतों में वे हमेशा जिंदा रहेंगे। नीरज दैनिक जागरण के कवि सम्मलन में पटना आए थे। उनके संग खुशनसीब थी पटना की वो शाम।
पटना [कुमार रजत]। मंच मौन था और लोग खड़े होकर तालियां बजा रहे थे। एक लम्हा था जो कह रहा था हमने गोपालदास नीरज को देखा और सुना है। उस नीरज को जो मोहब्बत की बात पर कहते थे- 'शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब/ उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब/होगा फिर नशा जो तैयार, वो प्यार है।' वो नीरज जो गम की बात पर कहते थे- 'दिल आज शायर है/गम आज नगमा है/ शब ये गजल है सनम/ गैरों के शेरो को ओ सुनने वाले/ हो इस तरफ भी करम।' वो नीरज जो जिंदगी की फलसफां यू कहते थे- 'हीरो को जोकर बन जाना पड़ता है। ऐ भाई जरा देख के चलो...।'
वो शाम थी 29 नवंबर 2014 की जब नीरज पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में कविता पाठ कर रहे थे। नीरज की देह भले ही नौवें दशक में सफर कर रही थी, मगर माइक पर उनकी आवाज की खनक वैसी ही थी, जैसी जवानी में रही होगी। मंच पर आते ही उन्होंने कहा था-'आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य/ मानव होना भाग्य है/ कवि होना सौभाग्य।' इस शाम की एक खासियत यह भी थी कि वे अपने पुत्र शशांक प्रभाकर के साथ मंच साझा कर रहे थे।
अंतिम पल है कौन सा, कौन सका है जान
नीरज जिन्होंने पटना को न जाने कितनी हसीन शामें और यादें दीं, अपने संबोधन में मृत्यु के बारे में भी बोलने से नहीं चूके। कहा था - 'हर पल को जिओ, अंतिम पल ही मान/ अंतिम पल है कौन सा/कौन सका है जान।' इसके बाद उन्होंने अपनी लड़खड़ाती जुबां में तरन्नुम में 'मेरा नाम जोकर' फिल्म का लोकप्रिय गीत गाया-
'ऐ भाई, जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी
दाएं ही नहीं, बाएं भी, ऊपर ही नहीं, नीचे भी
ऐ भाई, जरा देख के चलो...
तू जहां आया है, वो तेरा- घर नहीं,
गांव नहीं, गली नहीं, कूचा नहीं,
रस्ता नहीं, बस्ती नहीं, दुनिया है...
और प्यारे, दुनिया एक सर्कस है
और इस सर्कस में...बड़े को भी, छोटे को भी
खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी
नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को
बराबर आना-जाना पड़ता है।
हीरो को जोकर बन जाना पड़ता है।'