रास के श्रवण में दिमाग से अधिक हृदय की आवश्यकता : देवकीनंदन
रास को श्रवण करने के लिए दिमाग की नहीं हृदय की आवश्यकता पड़ती है।
पटना। रास को श्रवण करने के लिए दिमाग की नहीं हृदय की आवश्यकता पड़ती है। अगर भगवान के इस रास में अकेले दिमाग का इस्तेमाल करेंगे सुनने में तो आपको इस रास में भगवान पर संदेह हो जाएगा और अगर आपको भगवान पर संदेह हो गया तो आपको नरकगामी बनना पड़ेगा। उक्त श्रीवचन भागवत कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने गर्दनीबाग में आयोजित कथा के दौरान श्रद्धालुओं के बीच व्यक्त किए।
स्थानीय स्टेडियम में आयोजित कथा के छठे दिन महाराज जी ने कहा कि भगवान की ये रासलीला बड़ी उत्तम है, श्रेष्ठ है। बडे बड़े ऋषि भी इस रास को सुनकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। पं. देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कथा का वृतात सुनाते हुए कहा कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता है, उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होते हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता है। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से तीन प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। एक व्यक्ति वो है जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता है। दूसरा व्यक्ति वो है जो सबसे प्रेम करता है, चाहे उससे कोई करे या न करे। तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई संबंध नहीं रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध है ही नहीं। आप इन तीनों में कौन से व्यक्ति की श्रेणी में आते हो? भगवान ने कहा कि गोपियों जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता है, वहा प्रेम नही हैं वहा स्वार्थ झलकता है। केवल व्यापार हैं वहा। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया, ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान में भले ही अपने माता-पिता के, गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो, लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती है। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा कि ये किसी से प्रेम नहीं करते तो इनके चार लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहा पर तुम्हें अवश्य याद किया जायेगा। पहले तो भगवान ने रास किया था, लेकिन अब महारास में प्रवेश करने जा रहे हैं। तीन तरह से भगवान श्रीकृष्ण ने रास किया है। एक गोपी और एक कृष्ण, दो गोपी और एक कृष्ण, अनेक गोपी और एक कृष्ण। इस महारास में कामदेव ने गोपियों को माध्यम बनाकर पांच तीर छोड़े थे। श्रीमद भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर जी महाराज ने कहा कि हमारी इच्छाएं ही सारे पापों की जड़ हैं। इसलिए इन इच्छाओं को ही छोड़ दें। दुनिया की सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। हर भक्त के मन में यह भाव होना चाहिए कि हमें श्रीकृष्ण मिले, भले ही मेरे जीवन के अंतिम सांस से पहले ही क्यों ना मिले। उन्होंने कहा कि सद्कमरें से आत्मा खुश होती है। इसका प्रमाण देखना हो तो कभी किसी का छीन करके खाओ, देखना आत्मा खुश नहीं होगी। फिर किसी जरूरतमंद को कुछ खिलाकर देखना कि आत्मा कितनी खुश होती है। भागवत कथा में आज :
श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस द्वारिका लीला, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष, व्यास पूजन पूर्णाहुति का वृतात सुनाया जाएगा।