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समान नागरिक संहिता की जरूरत लेकिन सहमति से हो लागू

पटना । समान नागरिक संहिता देश की जरूरत है। इसे जरूर लागू किया जाना चाहिए, लेकिन यह काम सभ्

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Aug 2017 03:12 AM (IST)Updated: Wed, 30 Aug 2017 03:12 AM (IST)
समान नागरिक संहिता की जरूरत लेकिन सहमति से हो लागू
समान नागरिक संहिता की जरूरत लेकिन सहमति से हो लागू

पटना । समान नागरिक संहिता देश की जरूरत है। इसे जरूर लागू किया जाना चाहिए, लेकिन यह काम सभी समुदायों की सहमति से हो। इससे कई अहम समस्याएं हमारे सामने खड़ी हैं। देशभर में, खासकर गावों में भयंकर गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी आदि का निदान सबसे पहले जरूरी है। ये बातें सोमवार को 'जागरण विमर्श' कार्यक्रम के दौरान चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) पटना के शिक्षक डॉ. सैयद अली मोहम्मद ने कहीं। कार्यक्रम का विषय था - क्या तीन तलाक के अंत ने समान नागरिक संहिता की राह खोली है? उन्होंने कहा कि विविधता हमारे देश की सबसे बड़ी खूबसूरती और ताकत है। किसी भी कानून को यहां जबरदस्ती लागू किया जाना राष्ट्रीय एकता के लिए घातक साबित हो सकता है।

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: तीन तलाक और समान नागरिक संहिता में संबंध नहीं :

डॉ. अली ने कहा कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समान नागरिक संहिता से कोई संबंध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उसका निर्णय पूरी तरह कुरान पर आधारित है। अदालत ने कहा कि कुरान में तलाक के दो तरीके हैं। 'एहसन' और 'हसन'। 'एहसन' के मुताबिक पति एक ही बार तलाक कह दे तो वह तलाक मान लिया जाता है, लेकिन इसके साथ इद्दत की शर्त है। तलाक के साथ ही इद्दत का वक्त शुरू हो जाता है। यह तीन महीने का वक्त होता है। अगर इस अवधि में पति और पत्नी के बीच जिस्मानी रिश्ता बन जाता है तो तलाक रद मान लिया जाता है और वे पति-पत्नी बने रहते हैं।

दूसरे तरीके 'हसन' के मुताबिक एक-एक महीने के अंतराल पर तीन बार पति तलाक कह देता है तो उसे तलाक मान लिया जाता है। विवाद का मुद्दा है एक साथ तीन बार तलाक-तलाक कह देने से तलाक मान लिया जाना।

डॉ. अली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पूरे फैसले में बार-बार कुरान का हवाला दिया है। कोर्ट ने कहा कि एक साथ तीन तलाक का जिक्र कुरान में कहीं नहीं है, इसलिए यह अवैध है। अदालत ने कुरान के शुरा के आधार पर फैसला सुनाया। अदालत ने इस पर कोई स्थायी आदेश नहीं दिया है बल्कि संसद को छह महीने में इस पर कानून बनाने को कहा है, अन्यथा उसका फैसला रद मान लिया जाएगा।

: धर्मगुरुओं ने दिया गलत प्रथा को बढ़ावा :

कानून की कई किताबें लिख चुके डॉ. अली ने कहा कि एक साथ तीन तलाक का प्रचलन तब आया, जब मुसलमान सउदी अरब के बाहर दूसरे देशों पर आक्रमण कर रहे थे। वे ऐसी स्थिति में पत्नी को एक साथ तीन तलाक दे देते थे। बाद में मौलवियों ने अपनी दुकान चलाने के लिए इसे बढ़ावा दिया। कुरान इसकी इजाजत कभी नहीं देता।

कार्यक्रम में डॉ. अली ने कहा कि समान नागरिक संहिता कोई कानून नहीं है। संविधान के माध्यम से राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में काम करेगा। इसके लिए सही तरीका यही है कि पहले लोगों को इसके लिए जागरूक किया जाए और फिर इसे सहमति से लागू किया जाए।

डॉ. अली ने सवालों के जवाब देते हुए कहा कि इस्लाम का अर्थ शांति है। कुरान निर्दोषों की हत्या, किसी से नफरत या महिलाओं से दु‌र्व्यवहार की इजाजत कभी नहीं देता। मौलवी अपने स्वार्थ में लोगों को बरगलाते हैं।

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: मंथन का अमृत :

-- तीन तलाक पर रोक का समान नागरिक संहिता से सीधा संबंध नहीं।

-- अदालत ने एक साथ तीन तलाक पर रोक का फैसला सुनाया है।

-- सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के दो अन्य तरीकों एहसन और हसन पर रोक नहीं लगाई।

-- तीन तलाक पर रोक का फैसला पूरी तरह कुरान की रोशनी में दिया गया है।

-- धर्मगुरुओं ने स्वार्थ में दिया एक साथ तीन तलाक को बढ़ावा।

-- देश में कोई भी कानून थोपा नहीं जा सकता, उसके लिए सहमति बनाने की जरूरत।

-- देश की मजबूती और खूबसूरती के लिए विविधता का बने रहना जरूरी।

-- तीन तलाक पर स्थायी रोक के लिए संसद को छह माह के अंदर बनाना होगा कानून।

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: डॉ. सैयद अली मोहम्मद का परिचय :

डॉ. अली चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और 1972 से वहीं अध्यापन करने लगे। वे पटना यूनिवर्सिटी के विधि विभाग के अध्यक्ष और लॉ फैकल्टी के डीन रह चुके हैं। 2008 से सीएनएलयू में पढ़ा रहे हैं। उन्होंने भूमि सुधार पर पीएचडी की। इस विषय पर वे राज्य सरकार को भी सुझाव देते रहे हैं। वे कानून की कई पुस्तकें लिख चुके हैं। डॉ. अली बिहार राज्य विधि आयोग के सदस्य भी हैं।


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