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लालू की नेशनल टीम में राबड़ी का पेच, कोई रुठे नहीं-कोई छूटे नहीं पर हो रहा काम; आरक्षण का भी टेंशन

राजद का संगठन चुनाव करीब एक महीने पहले समाप्त हो गया है किंतु अभी तक न तो राष्ट्रीय पदाधिकारियों की टीम बनी है और न ही जिलाध्यक्षों की घोषणा हो सकी है। पढ़ें पड़ताल करती रिपोर्ट।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 07:02 PM (IST)Updated: Sun, 29 Dec 2019 10:12 PM (IST)
लालू की नेशनल टीम में राबड़ी का पेच, कोई रुठे नहीं-कोई छूटे नहीं पर हो रहा काम; आरक्षण का भी टेंशन
लालू की नेशनल टीम में राबड़ी का पेच, कोई रुठे नहीं-कोई छूटे नहीं पर हो रहा काम; आरक्षण का भी टेंशन

पटना, अरविंद शर्मा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का संगठन चुनाव करीब एक महीने पहले समाप्त हो गया है, किंतु अभी तक न तो राष्ट्रीय पदाधिकारियों की टीम बनी है और न ही जिलाध्यक्षों की घोषणा हो सकी है। राबड़ी देवी ने खरमास के दौरान राजद में किसी तरह के फेरबदल से मना कर दिया है। उनकी सलाह लालू प्रसाद यादव ने मान ली है। राष्ट्रीय पदाधिकारियों से लेकर जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है। दावेदार अंधकार में हैं। पुराने भी आश्वस्त नहीं हैं कि उनकी वापसी हो ही जाएगी। बताया जा रहा लालू यादव की नेशनल टीम का गठन पहले होगा। उसके बाद जिलाध्यक्षों की बारी आएगी। 

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राजद के 50 संगठनात्मक जिले हैं बिहार में

बिहार में राजद के 50 संगठनात्मक जिले हैं। बूथ, पंचायत और प्रखंड स्तर के संगठन चुनाव पिछले महीने ही करा लिए गए हैं। जिलाध्यक्ष समेत पार्टी के राष्ट्रीय एवं प्रदेश पदाधिकारियों के चयन में अभी भी कई तरह की रुकावटें हैं। पहली बाधा तो खरमास है ही, संगठन में आरक्षण का मुद्दा भी कम जटिल नहीं है। चुनावी वर्ष है। दावेदारों ने प्रतिरोध किया तो नेतृत्व की परेशानी बढ़ सकती है। यही कारण है कि लालू यादव सभी प्रमुख दावेदारों को साधकर चलना चाहते हैं। कोई रुठे नहीं। कोई छूटे नहीं। सूत्रों का दावा है कि जिलाध्यक्षों के चयन की अभी से कोई मियाद तय नहीं की जा सकती है।  

कहां आ रही दिक्कत

राजद ने जिलाध्यक्षों के चयन की जिम्मेवारी राष्ट्रीय अध्यक्ष को है। राजद के गठन से अबतक 22 वर्षों के दौरान ऐसा पहली बार होगा कि राजद के जिलाध्यक्षों का चयन, मनोनयन और नियुक्ति राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजद संगठन के विभिन्न पदों पर 45 फीसद आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई है। दिक्कत यहीं पर आ रही है, क्योंकि राजद में अभी तक यादव और मुस्लिम पदाधिकारियों की भरमार होती थी। अबकी पहली बार अन्य समुदायों को भी समुचित प्रतिनिधित्व देना है।


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