जागरण संवाददाता, पटना सिटी: पटना साहिब रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर दक्षिण किसी जमाने में गंगा नदी में मिलनेवाली पुनपुन नदी की धारा के किनारे स्थित है जल्ला हनुमान मंदिर। इतिहासकार बताते हैं कि प्राचीन काल में मंदिर के दक्षिण की ओर एक नहर थी, जो गंगा और पुनपुन नदी को आपस में जोड़ती थी। अब पुनपुन कई किलोमीटर दक्षिण खिसक गई और गंगा की धारा इधर आती ही नहीं। यहां नदी का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
कभी दो झोपड़ियों में एक ओर विराजमान हनुमान जी तो दूसरी ओर सामने देवाधिदेव महादेव वाला यह मंदिर आज पक्की और भव्य इमारत में स्थित है। जीर्णोद्धार के बाद मंदिर के चारों ओर विकास दिख रहा है और चौड़ी सड़क बन जाने से भक्तों के आवागमन में भी सुविधा हो गई है। यह नयनाभिराम मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।
15 करोड़ की लागत से हुआ जीर्णोद्धार
लगभग 15 करोड़ के व्यय से निर्मित भव्य मंदिर में न केवल पवनसुत हनुमान और देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं, बल्कि विघ्नविनाशक गणेश जी और मां भगवती भी हैं। साथ में सजा है श्री राम दरबार व यज्ञ मंडप। मंदिर परिसर में शीशे की कारीगरी देखते ही बनती है। कोलकाता व पटना सिटी के एक दर्जन से अधिक कलाकारों ने रंग-बिरंगे शीशों से भगवान का आकर्षक स्वरूप निखारा है। महज 18 वर्षों के अंदर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। बताया जाता है कि बाजार से कोई चंदा नहीं हुआ है।
बेगमपुर स्थित जल्ला हनुमान मंदिर
संत की प्रेरणा से मंदिर के लिए दान दी जमीन
बताया जाता है कि वर्ष 1705 में इस सुनसान क्षेत्र में गुलालदास महाराज नामक एक संत अचानक प्रकट हुए और स्थानीय निवासी ठाकुरदीन तिवारी के पास पहुंचे। उनके श्रीमुख से निकला, '
तिवारी, तुम्हारे बगीचे के नीचे दक्षिण की ओर गंगा बह रही है और उत्तर में विशाल वट वृक्ष लहरा रहा है। भविष्य पुराण के कथनानुसार यहां मंदिर स्थापना का उपक्रम दिखता है। इस कारण इस जमीन में कुछ हिस्सा महावीर मंदिर के लिए निकाल दो।'
इतना सुनना था कि तिवारी जी ने उसी समय अपने आम्रकुंज में से दस कठ्ठा जमीन अलग कर दिया और देवाधिदेव महादेव व महावीर जी के लिए आमने-सामने दो कोठरियां बनवा दीं। किंवदंती है कि गुलालदास जी छह माह तक यहां रहे। इस दौरान यहां एक बड़ा यज्ञ भी किया। इसके बाद वह अचानक लुप्त हो गए।
1999 में संपत्ति को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दिया
पहले बेगमपुर का यह भाग पानी से लबालब भरा रहता था, इस कारण इसे जल्ला के नाम से ही जाना जाता था। इसके पश्चात पंडित ठाकुरदीन तिवारी के वंशजों पंडित संकटादीन तिवारी, पंडित शंकरादीन तिवारी, पंडित मातादीन तिवारी, पंडित मदनमोहन तिवारी तथा पंडित रामावतार तिवारी द्वारा पूजा-अर्चना का कार्य निरंतर चलता रहा। 26 जनवरी 1997 को आचार्य किशोर कुणाल की मौजुदगी में जल्ला के ग्रामीणों ने इस मंदिर के उद्धार का निर्णय लिया। छठी पीढ़ी के पंडित रामावतार तिवारी ने 22 अगस्त 1999 को ग्रामवासियों की सभा में इस संपत्ति को पूर्ण रूप से मंदिर के लिए बनी समिति के हवाले कर दिया।
श्रद्धालुओं के सहयोग से करोड़ों की लागत से विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ। पूरे वर्ष प्रत्येक मंगलवार तथा शनिवार को यहां श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ती है। संध्या आरती में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के संरक्षण में मंदिर का कामकाज होता है।
रामनवमी पर दो लाख से अधिक श्रद्धालु लगाते हैं अर्जी
मंदिर प्रांगण में हनुमान जी की दक्षिणाभिमुख आदमकद प्रतिमा स्थापित है, जिनके दाहिने हाथ में संजीवनी बूटी का पहाड़ तथा बाएं हाथ में वज्र सुशोभित है। दाहिनी ओर श्री यंत्र है। महावीरजी के ठीक सामने पूरब की ओर शिव मंदिर है, जिसमें काले पत्थर से निर्मित गौरी-शंकर की मूर्ति स्थापित है।
श्री राम जन्मोत्सव के मौके पर रामनवमी के दिन यहां पवनसुत के दरबार में अर्जी लगाने दो लाख भक्तों की भीड़ उमड़ती है। नयनाभिराम मंदिर के तीनों गुंबदों पर सूर्यास्त के पश्चात यहां जब रंगीन प्रकाश की छवि निखरती है, तो इसकी छटा देखते ही बनती है। रथयात्रा के दौरान भी यहां खास आयोजन होता है और भगवान जगन्नाथ स्वामी एक पखवारे लिए मंदिर में ही विराजते हैं।
आठ वर्ष पूर्व यहां श्री राम दरबार, विघ्नविनाशक गणेश जी और मां भगवती की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। देवाधिदेव महादेव को पूरी तरह चांदी से ढंका गया है।