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गुड न्‍यूज: बिहार में अब नहीं चलेगी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, सरकार बना रही ये कानून

बिहार के निजी स्‍कूलों में अब अभिभावकों का शोषण शायद बंद हो जाए। इसे लेकर सरकार एक काननू बनाने जा रही है। कानून के प्रस्‍तावित प्रावधान क्‍या हैं, जानिए इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 05:42 PM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 10:56 PM (IST)
गुड न्‍यूज: बिहार में अब नहीं चलेगी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, सरकार बना रही ये कानून
गुड न्‍यूज: बिहार में अब नहीं चलेगी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, सरकार बना रही ये कानून

पटना [सुनील राज]। प्राइवेट स्कूलों की मनमर्जी कतई रहस्य का विषय नहीं। अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखने वाले अभिभावकों को आज प्राइवेट स्कूल किस कदर परेशान कर रहे हैं, यह बात जगजाहिर है। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा। इसके लिए सरकार प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट बना रही है। विधानमंडल के आगामी सत्र में इस कानून को पारित कराया जाएगा।

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परेशानी से होता एडमिशन

प्राइवेट सकूल कदम-कदम पर शोषण करते हैं। पहले स्कूल का फॉर्म लेने के लिए लंबी कतार, फॉर्म मिलने के बाद उसे जमा करने की कतार। इसके बाद बच्चे के नाम पर अभिभावकों को स्कूल प्रशासन के सामने इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुजरना होता है। तब कहीं जाकर बच्चे का स्कूल में एडमिशन हो पाता है।

फिर आरंभ होती शोषण की प्रक्रिया

एडमिशन के बाद भी अभिभावक निश्चिंत नहीं हो सकते हैं। इसके बाद शुरू होती है शोषण की प्रक्रिया। स्कूल यूनिफार्म कहां से लेनी है, किताबों के लिए किस दुकान में जाना है, बस या कार से बच्चे को स्कूल तक लाना है, तो इसकी परेशानी अभिभावकों को खुद उठानी होगी, स्कूल जिम्मेदार नहीं। बच्चा पास कर गया तो नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराने के बाद एक बार फिर उसी यूनिफार्म, किताब के चक्कर से गुजरना होता है।

चलता रहता अंतहीन सिलसिला

यह सिलसिला अंतहीन है। जो साल दर साल चलता ही रहता है, लेकिन 'बेचारा' अभिभावक इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठा सकता। पर अब और नहीं। प्राइवेट स्कूलों की 'मनमर्जी' पर 'अंकुश' के लिए सरकार प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट बना रही है। विधानमंडल के आगामी सत्र में इस कानून को पारित कराया जाएगा। पीआइएल के बाद जागी सरकार

प्राइवेट स्कूलों की मनमर्जी कोई नई बात नहीं, लेकिन प्रदेश प्रशासन या सरकार ने अभिभावकों के शोषण और स्कूलों की मनमानी पर नियंत्रण के लिए कभी कोई पहल नहीं की। प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों की फीस मनमानी के खिलाफ पहली बार 2016 में मांग उठी थी। अधिवक्ता राम संदेश राय ने पटना हाईकोर्ट में एक पीआइएल दायर कर फीस नियंत्रण की अपील की थी। जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार से उसका पक्ष मांगा था।

बनाई राज्यों के अध्ययन की टीम

हाईकोर्ट में किए गए वायदे के मुताबिक तकरीबन साल भर बाद 2017 फरवरी में सरकार ने महधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट को जानकारी दी कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों में प्राइवेट स्कूलों के फीस नियंत्रण का कानून लागू है, जिसका अध्ययन किया जा रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की टीम दो राज्यों में लागू कानून के अध्ययन के लिए भेजी गई है।

अब स्कूलों पर नियंत्रण को बन रहा कानून

उत्तर प्रदेश और दिल्ली में लागू प्राइवेट स्कूल फीस नियंत्रण कानून का अध्ययन करने के बाद राज्य सरकार प्रदेश में लागू करने के लिए भी एक कानून बना रही है। इसका नाम प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट 2018 दिया गया है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कानून का प्रारूप तैयार कर लिया है और फिलहाल इसे विधि विभाग की रजामंदी के लिए भेजा गया है। साथ ही सरकार ने कोर्ट को भी जानकारी दे दी है कि विधानमंडल के आगामी सत्र में बिहार प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट को पारित करा लिया जाएगा।

उत्‍तर प्रदेश के कानून जैसा है प्रस्तावित प्रारूप

शिक्षा विभाग की मानें तो प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों में फीस नियंत्रण के लिए बनाया जा रहा कानून कुछ-कुछ उत्तर प्रदेश के कानून जैसा होगा। कानून के दायरे में प्राइमरी से लेकर दसवीं तक के स्कूलों को शामिल किया जाएगा। जिन स्कूलों को शिक्षा विभाग ने अनापत्ति प्रमाणपत्र दिया होगा भले ही वह किसी भी परीक्षा बोर्ड से संबद्ध हो इसके दायरे में आएंगे। स्कूलों को अपनी आधारभूत संरचना से लेकर वार्षिक आय-व्यय का लेखा जोखा और छात्र-शिक्षक से जुड़ी तमाम जानकारियां स्कूल की वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। स्कूलों को फीस निर्धारण के अधिकार तो होंगे, लेकिन इसमें मनमर्जी नहीं चलेगी। स्कूल वर्ष में पांच से 12 फीसद तक ही फीस वृद्धि कर सकेंगे। लेकिन, इस वृद्धि के पूर्व उन्हें जिला स्तर पर गठित कमेटी को तकरीबन दो महीने पूर्व वृद्धि से संबंधित जानकारी देकर अनुमति लेनी होगी।

स्कूलों को देना होगा आय-व्यय का ब्यौरा

कानून में किए जा रहे प्रावधानों के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों को प्रत्येक वर्ष अपनी आय-व्यय का ब्यौरा सरकार को शपथ पत्र के साथ देना होगा। स्कूल प्रबंधन को सरकार को यह जानकारी भी देनी होगी कि वह अपने यहां कार्यरत शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के वेतन में कितनी वृद्धि प्रस्तावित कर रहे हैं। स्कूल की संपूर्ण आय का अधिकतम 15-20 फीसद हिस्सा ही विकास कोष के रूप में उपयोग की अनुमति स्कूलों को होगी।

किए जा रहे दंड के भी प्रावधान

नए कानून में दंड के प्रावधान भी सुनिश्चित किए जा रहे हैं। यदि कोई स्कूल अपनी वेबसाइट पर झूठी जानकारी देते हैं, सरकार द्वारा तय मानकों का उल्लंघन कर फीस वृद्धि करते हैं या फिर स्कूल यूनिफार्म या किताबों के लिए किसी विशेष दुकान की पैरवी करते हैं या अभिभावकों को निर्देश देते हैं तो अभिभावक की शिकायत पर ऐसे स्कूलों की जांच के बाद कार्रवाई करने का अधिकार सरकार को होगा। दो लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक का आर्थिक दंड और स्कूल को जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र स्थगित करने तक की कार्रवाई हो सकेगी। अनापत्ति प्रमाणपत्र निरस्त होने के बाद सरकार संबंधित बोर्ड से उक्त स्कूल की मान्यता समाप्त करने को कह सकती है।

स्कूलों की जांच, शिकायत निष्पादन को कमेटी

कानून में किए जा रहे प्रावधानों के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों की गतिविधियों पर नजर रखने, इनकी शिकायतों के साथ ही अभिभावकों की शिकायतें सुनने के लिए जिला स्तर पर कमेटी होगी। प्रस्तावित कानून के मुताबिक जिलाधिकारी इस कमेटी के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। कमेटी में शिक्षा विभाग के अधिकारी भी शामिल होंगे। कमेटी को तीन महीने में कम से कम एक बार स्कूल निरीक्षण का अधिकार होगा। निरीक्षण में स्कूल में पठन-पाठन का आकलन से लेकर बच्चों के बैठने की व्यवस्था, शौचालय, पेयजल, मनोरंजन के साधन, लड़कियां के लिए कॉमन रूम, टीचर, स्टॉफ के लिए कॉमन रूम जैसे संसाधनों का आकलन होगा। कमेटी यदि संतुष्ट नहीं होती है, तो नोटिस जारी कर स्कूल प्रबंधन से स्पष्टीकरण ले सकेगी। हालांकि, इसमें कुछ और संशोधन प्रस्तावित हैं।

विधि विभाग की सहमति के बाद कैबिनेट जाएगा प्रारूप

शिक्षा विभाग ने प्राइवेट स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट के प्रारूप को विधि विभाग की सहमति के लिए भेजा है। विधि विभाग की सहमति के बाद कानून को हाईकोर्ट को जानकारी देकर मंत्रिमंडल के विचारार्थ लाया जाएगा। मंत्रिमंडल की सहमति मिलने के बाद इस विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में सदन पटल पर रखा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने पर कानून को राज्य में प्रभावी बनाने का काम शुरू होगा। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने शिक्षक दिवस के मौके पर एलान भी किया है कि कानून का प्रारूप तैयार किया जा रहा है जिसे आगामी सत्र में विधानमंडल से पारित किया जाएगा। इसके बाद निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

प्राइवेट स्कूल फीस कानून लागू होने के बाद बदलेगी स्थिति

- प्राइवेट स्कूल यूनिफार्म के लिए नकद राशि नहीं ले सकेंगे

- स्कूल अभिभावकों को किताब, यूनिफार्म के लिए किसी खास दुकान के निर्देश नहीं देंगे

- बच्चों की स्कूल फीस स्कूल प्रबंधन बैंक के माध्यम से लेंगे

- नया सत्र प्रारंभ होने के 60 दिन पूर्व फीस विवरण स्कूल की वेबसाइट पर प्रदर्शित करेंगे

- नियमों का उल्लंघन करने पर पहली बार एक लाख दूसरी बार में पांच लाख का आर्थिक जुर्माना प्रस्तावित

- तीसरी बार शिकायत होने पर स्कूल को जारी अनापत्ति प्रमाणपत्र रद होगा

- स्कूल को लेकर अभिभावक जिलास्तर पर गठित कमेटी में शिकायत कर सकेंगे

- कमेटी के फैसले के विरोध में स्कूल प्रबंधन फीस रेगुलेटरी अथॉरिटी में शिकायत कर सकेंगे

- जिलास्तर पर गठित कमेटी को होगा स्कूलों के औचक निरीक्षण का अधिकार

कुछ ऐसा है उत्तर प्रदेश का कानून

- विद्यालयों को प्रत्येक शैक्षणिक सत्र में में प्रवेश प्रारंभ होने के 60 दिन पहले स्कूल सूचना पट्ट या वेबसाइट स्कूल मान्यता, प्रवेश नीति, छात्रावास, खेल पाठ्यचर्चा और अतिरिक्त गतिविधियों की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।

- पूर्ववर्ती वर्ष, चालू वर्ष और आगामी वर्ष के लिए शुल्क एवं निधि का विवरण

- विद्यार्थी स्थान अनुपात, विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात के साथ अध्यापकों की अहर्ताओं का विवरण

- मान्यता प्राप्त विद्यालयों द्वारा छात्रों के लिए तैयार संपूर्ण शैक्षणिक कैलेंडर का विवरण

- मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा अध्यापक प्रशिक्षण और कर्मचारी वर्ग के विकास के लिए शैक्षणिक सत्र के दौरान आयोजित किए जाने वाले प्रमुख कार्यक्रमों का विवरण

- छात्रों से वसूले गए किसी भी शुल्क के लिए रसीद देने की अनिवार्यता

- किसी छात्र को पुस्तकें, जूते-मोजे व यूनिफार्म विशिष्ट दुकान से खरीदने के लिए बाध्य नहीं करेंगे

- पांच वर्षों तक स्कूल यूनिफार्म में बदलाव नहीं किया जा सकेगा

- एडमिशन लेने वाले छात्र-अभिभावकों को साल भर में लिए जाने वाले शुल्क का विवरण देना होगा

- शुल्क नियामक समिति के अनुमति के बिना फीस में वृद्धि संभव नहीं

- सरकारी आदेश नियमों की अवहेलना पर एक से पांच लाख रुपये तक के दंड के प्रावधान


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