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घर लौटे प्रवासी श्रमिकों से देखी न गयी किसानों की बेबसी, श्रमदान से कर दिया 52 गांवों का 'उद्धार'

बिहार के नवादा जिला के 52 गांवों की एक लाख से अधिक आबादी के लिए सकरी नदी का पानी अन्‍नदाता है। इसे खतों पर पहुंचाने में घर आए प्रवासी श्रमिकों ने अहम भूमिका निभाई है।

By Amit AlokEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 08:39 AM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 04:35 PM (IST)
घर लौटे प्रवासी श्रमिकों से देखी न गयी किसानों की बेबसी, श्रमदान से कर दिया 52 गांवों का 'उद्धार'
घर लौटे प्रवासी श्रमिकों से देखी न गयी किसानों की बेबसी, श्रमदान से कर दिया 52 गांवों का 'उद्धार'

पटना, जयशंकर बिहारी। लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासी श्रमिकों से किसानों की बेबसी नहीं देखी गई और उन्‍होंने श्रमदान से कर 52 गांवों का 'उद्धार' कर दिया। नवादा जिले के रोह प्रखंड में स्थानीय किसानों और समाजसेवियों के साथ रोजाना श्रमदान कर उन्‍होंने 15 किलोमीटर लंबे रजाइन पईन (नहर) को नया जीवन दिया है। वैसे तो यहां के किसान सालों से श्रमदान कर पईन की उड़ाही करते आए हैं, लेकिन इस साल दशकों बाद इसमें सकरी नदी का इतना अधिक लाल पानी आया है कि किसान खुश हो गए हैं। इससे अन्य वर्षों की अपेक्षा पैदावार भी अधिक होने की संभावना है। इसका श्रेय प्रवासी श्रमिकाें की मेहनत को दिया जा रहा है। 

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52 गांवों के 26 हजार एकड़ खेतों तक पहुंचता पानी

रजाइन पईन से नवादा की आठ पंचायतों के 52 गांव के 26 हजार एकड़ खेतों तक पानी पहुंचता है। इसपर एक लाख से अधिक आबादी निर्भर है। इस अभियान को 'जनहित विकास समिति', 'रजाइन पईन बचाओ समिति', 'आहर-पईन बचाओ अभियान' आदि से जुड़े किसान व समाजसेवी आगे बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा किसान हर साल सकरी नदी में जंगल से लाए पत्तों, टहनियों, झाड़ी, मिट्टी और बालू से लगभग दो किलोमीटर लंबा बांध भी बनाते रहे हैं।

जीर्णोद्धार के लिए दो दशक से जद्​दोजहद जारी

नवादा जिले की सबसे बड़ी बरसाती नदी सकरी से निकली रजाइन पईन रोह प्रखंड की विभिन्न पंचायतों के 52 गांवों के खेतों की सिंचाई करता है। इसके जीर्णोद्धार के लिए पिछले दो दशक से जद्​दोजहद जारी है, लेकिन इसकी सफाई के लिए सरकारी स्तर से कोई योजना स्वीकृत नहीं हो सकी है। समस्‍या यह है कि जमीेंदारी काल का यह पईन किस विभाग के जिम्मे है, कोई बताने को तैयार नहीं है।

श्रमदान से उड़ाही, प्रवासी श्रमिकों ने बटाया हाथ

कोई जिम्‍मेदारी ले या नहीं, सिंचाई तो इलाकाई गांवों की जरूरत है। इसके लिए पहल स्थानीय किसानों ने की। 'रजाइन पईन विकास समिति' बनी। फिर तो अपने स्‍तर से श्रमदान कर पईन की उड़ाही का काम हर साल चलने लगा। इस साल खास बात यह है कि कोरोना संकट के कारण बड़ी संख्‍या में घर लौटे प्रवासी श्रमिक भी श्रमदान में जुटे। रजाइन पईन विकास समिति के सचिव महेंद्र सिंह ने बताया कि 40-40 के समूह में विभिन्न स्थानों पर पईन की उड़ाही अंतिम चरण में है। इसमें प्रवासी श्रमिकों की भूमिका सराहनीय है।

श्रमदान करने वालों को दिए मास्क व सैनिटाइजर

महेंद्र सिंह बताते हैं कि पांच सौ से अधिक किसान व श्रमिक हर दिन श्रमदान में शामिल हो रहे हैं। सभी को मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध कराए गए हैं। उड़ाही कार्य में उन्हीं प्रवासी श्रमिकाें का सहयोग लिया जा रहा है जो क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर चुके हैं। स्थानीय किसानों और समाजसेवियों के सहयोग से प्रवासी श्रमिकों व जरूरतमंदों को राशन भी उपलब्ध कराया जा रहा है। अभियान का नेतृत्व करने वाले 'आहर-पईन बचाओ' के संयोजक एमपी सिन्हा ने बताया कि पईन की सफाई होने से 52 गांव के खेतों को नौ माह तक पर्याप्त पानी मिलेगा।

बारिश के बाद खेतों तक आया सकरी का लाल पानी

रजाइन पईन झारखंड-बिहार की सीमा पर बहने वाली सकरी नदी से निकला है। सकरी नदी में झारखंड के पहाड़ों से पानी आता है। पानी के साथ पहाड़ की लाल मिट्टी भी आती है। यह लाल पानी खेतों की उर्वरा बनाए रखने में सहायक होता है। वुधवार की बारिश के बाद सकरी नदी में लाल पानी आया है। यह पानी रजाइन सहित कई अन्य पईन से होकर खेतों तक पहुंच चुका है। स्‍थानीय किसान राज किशोर प्रसाद सिंह व अविनाश निराला के अनुसार यह पईन की सफाई से ही संभव हो सका है।

प्रवासी श्रमिकों व किसानों की चहुंओर हो रही सराहना

सकरी का लाल पानी खेतों की पैदावार बढ़ाने में काफी सहायक होता है। जिन किसानों ने श्रमदान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है, उनके चेहरे की खुशी देखते बन रही है। हर कोई श्रमदान की तारीफ करते नहीं अघा रहा है। स्‍थानीय किसान साधु श्‍ारण सिंह बताते हैं कि कई दशक बाद रजाइन पईन की विभिन्न शाखाओं में सकरी का इतना लाल पानी आया है। इसका श्रेय श्रमदान करने वाले प्रवासी श्रमिकों व किसानों को ही जाता है। इससे अन्य वर्षों की अपेक्षा पैदावार भी अधिक होने की संभावना है।

मुखिया स्‍वीकार करते रजाइन पईन की उपयोगिता

डुमरी ग्राम पंचायत के मुखिया सरोज सिंह इस पईन की उपयोगिता को स्‍वीकर करते हैं। वे श्रमदान करने वाले प्रवासी श्रमिकों व किसानों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए धन्‍वाद व बधाई भी देते हैं, जिसकी वजह से खेतों तक लाल पानी पहुंच गया है। लेकिन लेकिन इस महत्‍वपूर्ण कार्य में सरकार व प्रशासन की कोई भूमिका क्‍यों नहीं रही, इसपर मौन ही रहते हैं।

बीडीओे तो पता नहीं थी समस्‍या, डीएम से संपर्क नहीं

रोह (नवादा) के प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) रामपुकार यादव की बात भी गौर करने लायक है। उन्‍हें पता ही नहीं था कि उनके क्षेत्र में रजाइन पईन की सफाई की कोई समस्‍या भी है। अब मामला संज्ञान में आया है तो वे पहल करेंगे। हालांकि, प्रशासनिक पहल के आश्‍वासन पहले भी मिले हैं। मूल सवाल तो यह है कि जमींदारी काल का यह पइन किस विभाग की जिम्‍मेदारी है? इस बाबत जिलाधिकारी (DM) से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन वे उपलब्‍ध नहीं हाे सके। इसके बाद वॉट्सऐप पर भी उनसे संपर्क की कोशिश नाकम रही।

सरकारी सहयोग की उम्‍मीद, पर भरोसे नहीं ग्रामीण

बहरहाल, किसानों को आगे सरकारी-प्रशासनिक उदासीनता खत्‍म होने की उम्‍मीद तो है, लेकिन वे इसके भरोसे बैठने को तैयार नहीं। आहर पईन बचाओ अभियान के राष्‍ट्रीय संयोजक एमपी सिन्‍हा कहते हैं कि किसान निस्वार्थ भाव से श्रमदान कर खेतों को सिंचित करने में अपनी अहम भूमिका निभाते रहेंगे।


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