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गांधी जयंती: जब बापू का हाथ थाम मौलाना हक उन्हें ले गए थे अपने घर...

महात्मा गांधी से जुड़ी बातें याद करते हुए बिहार के गांधी विचारक रजी अहमद बताते हैं कि बापू और मौलाना मजहरूल हक का एेसा संबंध था कि दोनों की दोस्ती ने नए आयाम लिखे थे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 02 Oct 2018 09:27 AM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2018 08:42 PM (IST)
गांधी जयंती: जब बापू का हाथ थाम मौलाना हक उन्हें ले गए थे अपने घर...
गांधी जयंती: जब बापू का हाथ थाम मौलाना हक उन्हें ले गए थे अपने घर...

पटना [सुनील राज]। बापू की बिहार यात्रा के सौ से भी ज्यादा साल बीत गए लेकिन, उनकी स्मृतियां आज भी बिहार के कोने-कोने में बिखरी हैं। बापू पहली बार 10 अप्रैल 1917 को कोलकाता से पटना पहुंचे थे। साथ में थे पंडित राजकुमार शुक्ल। शुक्ल जी के साथ बापू को चंपारण जाना था और वहां के किसानों की समस्या और निहले साहबों के कारनामे सुनने थे। इसी काम के लिए शुक्ल बापू को पटना तक लेकर आए थे। 

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पटना पहुंचने के बाद बापू तरोताजा होकर कुछ देर आराम करना चाहते थे। शुक्ल जी की सलाह पर वे उनके साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद के घर की ओर चल पड़े। राजेंद्र बाबू उन दिनों पटना में नहीं थे। वह पुरी गए हुए थे। घर पर एक नौकर था। उसे बापू के आने का प्रयोजन बताया गया।

मगर नौकर ने बापू के पहरावे को देखते हुए उनकी आव-भगत कुछ सलीके से की नहीं। बापू शौच कर्म को जाना चाहते थे, लेकिन नौकर ने उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी और बाहर की ओर बने शौचालय का रास्ता दिखा दिया। 

बापू इस बात से बेहद आहत हुए। उन्होंने इस बात का जिक्र अपने बेटे मगनलाल को लिखे एक पत्र में भी किया। बापू समझ नहीं पा रहे थे कि बिहार तो आए गए दिनभर का वक्त कहां और कैसे बिताया जाए। एक ख्याल आया था कि क्या लौट जाऊं। फिर उन्हें लगा नहीं राजकुमार शुक्ल ने उनकी बड़ी चिरौरी-विनती की है। रास्ता कुछ सूझ नहीं रहा था।  इतने में उन्हें अपने एक मित्र का ख्याल आया। मित्र थे मौलाना मजहरूल हक। 

गांधी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि मौलाना और मैं (गांधी जी) एक समय लंदन में साथ ही पढ़ते थे। लंदन के बाद मौलाना से उनकी मुलाकात 1915 में कांग्रेस के एक कार्यक्रम के दौरान मुम्बई में भी हुई। इस मुलाकात और इसके पहले भी मौलाना कई बार अपने मित्र मोहनदास करमचंद गांधी से कह चुके थे कि 'कभी पटना आएं तो मेरे घर अवश्य आएं'। 

बहरहाल मौलाना मजहरूल हक का नाम याद आते ही उन्होंने संदेशा भिजवा दिया कि मैं पटना में हूं और आपसे मुलाकात चाहता हूं। मौलाना उन दिनों डाकबंगला चौराहे के थोड़ा आगे बने अपने किराए के मकान में ले जाए। यह सड़क अब सिन्हा लाइब्रेरी रोड के नाम से जानी जाती है।

बापू ने मौलाना से वचन लिया था कि शाम तक वह उन्हें मुजफ्फरपुर जाने वाली गाड़ी पर बिठा देंगे, रुकने का आग्रह नहीं करेंगे। मौलाना मजहरूल हक ने उनकी दिल से खातिरदारी की और शाम को उन्हें मुजफ्फरपुर के लिए रवाना भी कर दिया। 

छह फरवरी 1921 को बिहार विश्वविद्यालय पटना के उद्घाटन सत्र में भी बापू शरीक हुए थे। यहां उन्होंने ज्ञान की तमाम बातों के बीच मौलाना मजहरूल हक से अपनी मित्रता की जानकारी भी उपस्थित जनसमूह को दी। बापू ने इस सभा में कहा था कि मैं और हक साहब इंग्लैंड में साथ-साथ रहे। भारत वापसी के दौरान भी हम जहाज में साथ ही थे। इसी सभा में बापू ने कहा था मैं पटना में यदि किसी जगह को अपना घर मानता हूं तो वह है मौलाना हक का घर। 

रजी अहमद कहते हैं कि मौलाना हक अपनी शान शौकत वाली जिन्दगी के जाने जाते थे, लेकिन बापू की शख्सियत का ही प्रभाव था कि मौलाना जैसा व्यक्ति भी पूरी तरह से गांधीवादी बन गया। वे कहते हैं कि बाद के दिनों में बापू का बिहार से गहरा संबंध रहा और वे तब तक बिहार आते रहे जब तक जीवित रहे।

रजी साहब कहते हैं कि बापू मौलाना के साथ जिस घर में ठहरे थे अब उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहा। वैसे भी वह किराए का था। जहां शायद अब किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी का ऑफिस चलता है। 


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