पढ़ाई के लिए बाहर जा रहे बच्चों को रोकने से पटना में बनेगा शिक्षा का माहौल
सूबे से इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए हर साल हजारों विद्यार्थी कोटा, दिल्ली आदि शहरों में पलायन करते हैं।
बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद की पहचान एक मेंटर के रूप में भी है। ऐसा मेंटर जो जरूरतमंद विद्यार्थियों के आइआइटी में प्रवेश का सपना पूरा कर रहा है। अभयानंद ने 2000 में आनंद कुमार के साथ सुपर-30 की शुरुआत की। 2007 में दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। 2008 में उन्होंने रहमानी सुपर-30 और मगध सुपर-30 को प्रारंभ कराया। मेंटर के तौर पर वे दोनों संस्थानों से आज भी जुड़े हैं।
2014 में भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद अभयानंद ने सुपर-30 की स्थापना की। इसके साथ ओएनजीसी, इंडियन ऑयल और विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा कॉरपोरेट सोशल रिस्पांस्बिलिटी के लिए संचालित एक दर्जन से अधिक निशुल्क सेंटरों में मेंटर के तौर पर भी जुड़े हैं। अभयानंद की बेटी ऋचा और बेटा श्वेतांक दोनों आइआइटीयन हैं।
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अभयानंद के शब्दों में पढ़ने और पढ़ाने का शौक प्रारंभ से रहा है। बच्चों को प्रारंभ से ही गाइड करते थे। इसके लिए नियमित रूप से अध्ययन जारी रखा। बेटे ने सीबीएसई 10वीं में इलाहाबाद जोन टॉप किया तो आगे की पढ़ाई के लिए और जिम्मेवारी बढ़ गई। दोनों को पढ़ाने के लिए फिजिक्स और मैथ का दोबारा अध्ययन किया।
उन्होंने बताया कि 90 के दशक में बीएमपी, वायरलेस आदि में पोस्टिंग के कारण पढ़ाई का पूरा अवसर मिला। बच्चों ने जब आइआइटी में नामांकन ले लिया तो पढ़ाई का लाभ गरीब बच्चों तक पहुंचाने की इच्छा हुई, और इसी दौरान सुपर-30 का विचार आया। अभयानंद कहते हैं, जीवन के लिए पेंशन की राशि काफी है। मगध-30, रहमानी सुपर-30, अभयानंद सुपर-30 को दूसरे लोग भी वित्तीय सहायता देते हैं। सहयोग इस शर्त पर लिया जाता है कि पढ़ाई-लिखाई में उनका किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं रहेगा।
'क्यों' वाली पीढ़ी के लिए करनी होगी व्यवस्था
वर्तमान पीढ़ी किसी भी मसले पर 'क्यों' पूछने वाली है। यह अच्छी बात है। हमारी पीढ़ी शिक्षक से सवाल करने में डरती थी। आज की पीढ़ी जवाब नहीं समझने पर 'क्यों' पूछने से हिचकती नहीं है। 'क्यों' का जवाब देने वाले शिक्षक ही अब चलेंगे। यही क्यों, आज की पीढ़ी को इनोवेटिव बना रही है। इस पर शिक्षक और अभिभावक के साथ-साथ व्यवस्था को भी संजीदगी से विचार करना होगा।
पढ़ाई में पारदर्शिता है अनिवार्य
पटना में जेईई, नीट, क्लैट आदि प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल लाखों विद्यार्थी पटना आते हैं। विज्ञापन की चकाचौंध से प्रभावित होकर उन संस्थानों में दाखिला ले लेते हैं, जहां तैयारी के लिए अनुभवी शिक्षक, व्यवस्था और माहौल नहीं होता है।
बच्चे जब तक असलियत को समझ पाते हैं, उनके पास से पैसा जा चुका होता है। चाहकर भी विकल्प की तलाश नहीं कर पाते। इस पर सरकार और समाज को संजीदगी से विचार करना होगा। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भी इसमें अहम भूमिका है। हम सभी अपनी-अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करेंगे तभी किसान-मजदूर का अपने बेटे को आइआइटी और मेडिकल में पढ़ाने का सपना पूरा होगा।
ग्रुप और सेल्फ स्टडी है मूलमंत्र
अभयानंद कहते हैं, विषम परिस्थितियों में रहकर भी गरीब घर के बच्चे आइआइटी जैसी प्रवेश परीक्षा में बेहतर रैंक लाते हैं। इसका बड़ा कारण उनकी सेल्फ और ग्रुप स्टडी है। कोचिंग के दौरान बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सेल्फ स्टडी और ग्रुप स्टडी के लिए प्रेरित किया जाता है। ग्रुप स्टडी के दौरान बच्चे एक-दूसरे की अच्छाइयों से सीखते हैं।
पलायन रोकने के लिए करनी होगी माकूल व्यवस्था
सूबे से इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए हर साल हजारों विद्यार्थी कोटा, दिल्ली आदि शहरों में पलायन करते हैं। इन्हें रोकने के लिए सूबे में अभी माकूल व्यवस्था नहीं है। फैकल्टी को उनकी योग्यता के अनुरूप पेमेंट नहीं मिलने के कारण ही दूसरे शहरों में पलायन करते हैं। आश्चर्य की बात है कि कोटा में पढ़ने वाले और पढ़ाने वाले अधिसंख्य बिहार के होते हैं। पलायन रोकने से करोड़ों रुपये बाहर जाने से बच जाएंगे। साथ ही कम आय वाले बच्चों को भी माहौल का लाभ मिलेगा।
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