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गंगा एक्सप्रेस-वे से पटना पाएगा रफ्तार

सबसे महत्वाकांक्षी योजना 23.5 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेस वे की है। इसे अगले दो सालों में पूरा किया जाना है और इसके बन जाने से शहरवासियों को गंगा किनारे एक बेहतर सड़क उपलब्ध हो जाएगी और इसके बन जाने पर पटना के रिंग-रोड का भी सपना पूरा हो जाएगा।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Wed, 04 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 04 Jul 2018 06:00 AM (IST)
गंगा एक्सप्रेस-वे से पटना पाएगा रफ्तार

पूर्वी भारत के महत्वपूर्ण शहर पटना के खाते में अभी एक और उपलब्धि दर्ज हो जाएगी। अक्टूबर में पटना में सीएनजी से गाड़ियां चलने लगेंगी। पटना सदियों पहले भी सुविधाओं और आधारभूत संरचना के मामले में अन्य शहरों से पीछे नहीं था, भले ही बाद में शहरवासियों के लिए गर्व करने के लिए बहुत कुछ नहीं रहा।

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फ्रांकोइस बर्नर ने 1658 में अपनी पुस्तक, 'ट्रैवल इन द मुगल एम्पायर' में पटना के संबंध में लिखा था- 'गंगा के आसपास पर्याप्त सुविधाएं हैं, डच और अंग्रेज यहां से देश के हर कोने के साथ-साथ यूरोप में बड़ी आसानी से अपना माल भेजते हैं। तब 1620 में ईस्ट इंडिया कंपनी यहां अपनी व्यापारिक गतिविधियां आरंभ कर चुकी थी। पीटर मंडी ने 1632 में अपनी यात्रा वृतांत में पटना को पूर्वी क्षेत्र का सबसे बड़ा 'मार्ट' करार दिया था।

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">आजादी के बाद से अबतक पटना फिर से अपने पुराने गौरव को पाने की कोशिश में लगातार लगा है। सिटी मेयर्स फाउंडेशन द्वारा 2016 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक पटना विश्व में सबसे अधिक ग्रोथ वाले शहरों में 21वें नंबर पर है, जबकि देश में इसका स्थान पांचवां है।

देखा जाए तो आजादी के बाद 1961 से 1981 तक पटना का योजनाबद्ध तरीके से विकास हुआ, क्योंकि बीस सालों के लिए पटना का पहला मास्टर प्लान बना था। परन्तु आपातकाल के बाद आरंभ हुए फेज में पटना ने हर मोर्चे पर नियंत्रण खो दिया। 1981 से पहले ही प्लान बिखरने लगे। अनियंत्रित विकास का दौर आरंभ हुआ जिसे रोक पाने में भी काफी समय लगा।

अब पटना का नया मास्टर प्लान तैयार है। हर काम सही दिशा में बढ़ाने की तैयारी है। बिजली, पानी एवं सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए पहले से बेहतर संरचना उपलब्ध है। बिजली के मामले में तो स्थिति पहले से बहुत बेहतर हो चुकी है। 2005 में प्रति व्यक्ति बिजली का उपयोग मात्र 70 यूनिट था जो अभी बढ़कर 258 हो गया है।

हालांकि राष्ट्रीय औसत से अभी भी पटना बहुत पीछे है। कमी अंडरग्राउंड वायरिंग की है, जिसके लिए करीब छह वर्ष पहले प्रयास शुरू हुआ था। मगर काम बीच में ही रूक गया। करीब 20 लाख की आबादी के साथ पटना देश के कुछ बड़े शहरों में से एक है। इतनी बड़ी आबादी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना एक बड़ा टास्क है। पहले यह काम पटना म्यूनिसिपैलिटी और पटना ओल्ड ज्वाइंट वाटर वर्क्स मिलकर करते थे, परन्तु 1952 से यह जिम्मेदारी पटना म्यूनिसपल कॉरपोरेशन ने संभाल रखी है।

दिल्ली स्थित सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए शहर में सप्लाई किए जा रहे जल की शुद्धता पर विशेष फोकस है। सीएसई ने कहा था कि पटना में सप्लाई हो रहे जल में से 50 प्रतिशत ही शुद्ध है। शुद्ध जल की हर घर उपलब्धता के लिए सिस्टम को सजग करना होगा।

पानी की पाइपलाइन में नाले के पानी का रिसाव और आर्सेनिक एवं आयरन की अधिक मात्रा मुख्य कारण है। सभी घर में 'टैप वॉटर' पहुंचाने की मुहिम सरकार ने आरंभ कर रखी है, जरूरत है कि समय पर यह काम पूरा हो जाए। सड़क के मोर्चे पर पटना ने पिछले दस वर्षों में काफी विकास देखा है। मुख्य मार्गों के अलावा अंदर आवासीय कॉलोनियों तक गई सड़कें बनीं हैं। परन्तु दो समस्याओं ने इन चौड़ी सड़कों के लाभ से पटनावासियों को कुछ हद तक वंचित कर रखा है।

पहली समस्या तो बेतरतीब पार्किंग की है और दूसरी सड़क किनारे अतिक्रमण की। शहर की ट्रैफिक व्यवस्था बेहतर बनाने की कवायद जारी है। कई फ्लाईओवर बन चुके हैं और कई बन रहे हैं। समस्या यह है कि निर्माण की गति बहुत धीमी हैं। राजवंशी नगर से पटना हाइकोर्ट और अनीसाबाद से फुलवारीशरीफ तक दो नए फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं।

सबसे महत्वाकांक्षी योजना 23.5 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेस वे की है। इसे अगले दो सालों में पूरा किया जाना है और इसके बन जाने से शहरवासियों को गंगा किनारे एक बेहतर सड़क उपलब्ध हो जाएगी और इसके बन जाने पर पटना के रिंग-रोड का भी सपना पूरा हो जाएगा, जिसका निर्माण नए मास्टर प्लान के तहत होना है। आधारभूत संरचना को लेकर जो प्रयास हो रहे हैं, वह नए पटना की बेहतर तस्वीर उभार रहे हैं।


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