पटना को मिलेगी औद्योगिक पहचान अगर इन बातों को रखा जाए ध्यान
दूसरे राज्यों की राजधानियों की तुलना में पटना की औद्योगिक उन्नति न्यूनतम है।
आठवीं बार बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष बने पीके अग्रवाल चार्टर्ड अकाउंटेंट होने के साथ एक सफल उद्यमी भी हैं। बतौर उद्यमी उन्होंने ब्रेड-बिस्किट फैक्ट्री और टिन कंटेनर फैक्ट्री स्थापित कर सफल संचालन किया। बाद में दोनों फैक्ट्रियों को बंद कर ब्रांडेड बिस्किट की फ्रेंचाइजी लेकर परिजनों को सौंप दी और खुद चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रोफेशन में लौट आए। वर्ष 1975 में वे बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज से जुड़े। एक्जीक्यूटिव मेंबर, उपाध्यक्ष के बाद वर्ष 1993 में पहली बार अध्यक्ष बने। अब तक वे आठ बार चैंबर के अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। आयकर से जुड़े नियम-कानून के विशेषज्ञ भी माने जाते हैं।
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पीके अग्रवाल कहते हैं, दूसरे राज्यों की राजधानियों की तुलना में पटना की औद्योगिक उन्नति न्यूनतम है। अभी इस दिशा में बहुत कुछ करना शेष है। यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है। ऐसा उद्योग भी नहीं है, जिसे उदाहरण के रूप में पेश किया जा सके। फुलवारीशरीफ में बिहार कॉटन, पटनासिटी में प्रदीप लैंप जैसी कुछ महत्वपूर्ण यूनिटें थीं, जो बंद हो चुकी हैं। दीघा मोहल्ले में बाटा का कारोबार ऊंचाई पर था पर अब वैसी स्थिति नहीं है। सब कुछ के बावजूद स्वरोजगार एवं सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देने जैसी कुछ नई पहल से पटना का औद्योगिक चेहरा गढ़ा जा सकता है।
सेवा-स्वरोजगार पर हो जोर
राजधानी होने की वजह से पटना में जमीन की किल्लत है। बड़ी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने में परेशानी आ सकती है। इस वजह से यहां सर्विस सेक्टर को बढ़ावा देना मुफीद साबित हो सकता है। इसमें सूचना प्रोद्यौगिकी भी शामिल है। साथ ही मांग के अनुरूप छोटी-छोटी स्वरोजगार इकाइयां भी स्थापित करने की जरूरत है। इससे उत्पादन के साथ ही रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
इंफ्रास्ट्रक्चर को मिले बढ़ावा
पटना गंगा नदी के किनारे पर बसा है। गंगा से निकली जमीन (दियारा) का बड़ा भू भाग हमारे पास है। अभी इसका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका व्यावसायिक इस्तेमाल संभव है। इस इलाके में नया औद्योगिक सुरक्षित क्षेत्र भी बनाया जा सकता है। उद्योगों के लिए कम पड़ रही जमीन की मांग पूरा करने में यह इलाका पूरी तरह से सक्षम है। गंगा की धारा को नियंत्रित कर इस जमीन का उपयोग संभव है।
लाइसेंस-परमिट-परमिशन आसानी से मिले
उद्योगों के लिए लाइसेंस, परमिट, परमिशन जैसी प्रक्रियाओं में परिवर्तन कर 'ईज ऑफ डूइंग' बिजनेस को बढ़ावा देने की जरूरत है। यानी कारोबारी सरलता पर जोर होना चाहिए। इससे उद्यमी, विशेष कर युवा कारोबार के प्रति आकर्षित होंगे और उद्योग का माहौल उर्वरक होगा।
नीति-व्यवस्था और व्यवस्थापक
नीति, व्यवस्था और व्यवस्थापक उद्योग के लिए महत्वपूर्ण हैं। उद्योगों के लिए अनुकूल नीति जरूरी है। व्यवस्था यानी सिस्टम पेचीदा नहीं हो। व्यवस्थापक यानी कार्यान्वयन भी फ्रेंडली होना चाहिए। महत्वपूर्ण यह भी कि इन तीनों चीजों में स्थायित्व के साथ लक्ष्य का होना भी अनिवार्य है।
मूलभूत सुविधाओं पर हो ध्यान
व्यवसाय छोटा हो या बड़ा, ट्रेडिंग का हो या मैन्यूफैक्चरिंग का, मूलभूत सुविधाओं का होना जरूरी है। लिहाजा बैंकों का सहयोग, गुणवत्तापूर्ण बिजली, दक्ष कारीगर, परिवहन जैसी सुविधाएं भी पटना का औद्योगिक चेहरा गढऩे के लिए जरूरी हैं।
- पीके अग्रवाल
( बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष हैं )
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