पटना के थानों में लागू हुए ग्रेडिंग सिस्टम से अपराध पर लगाम
पिछले एक दशक में पटना पुलिस की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि राजधानी के 76 थानों में अब एक भी थाना ऐसा नहीं बचा जो नक्सल प्रभावित थानों की सूची में शामिल हो। अपहरण अब पटना में बीते दिनों की बात हो चुके हैं।
राजधानी पटना की कानून-व्यवस्था वह आईना है, जिसमें पूरे राज्य की 'कानून –व्यवस्था की तस्वीर दिखती है। यहां होने वाले संगठित व असंगठित अपराधों की प्रकृति भी राज्य के सुदूर जिलों से अलग है। पटना पुलिस के लिए चुनौती केवल अपराधियों को साध लेना भर ही नहीं है। बल्कि अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाने की भी है।
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पिछले एक दशक में पटना पुलिस की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि राजधानी के 76 थानों में अब एक भी थाना ऐसा नहीं बचा जो नक्सल प्रभावित थानों की सूची में शामिल हो। अपहरण अब पटना में बीते दिनों की बात हो चुके हैं।
90 के दशक में अपहरण और रंगदारी का जो खौफ कारोबारियों, डॉक्टरों और अफसरों में था, उसे लगभग खत्म कर दिया गया है। पुलिसिंग में सुधार है, जिसे और बेहतर बनाने का काम लगातार चल रहा है। शहर में जगह-जगह लगाए गए कैमरों से अपराधियों तक पहुंचने में मदद मिली है।
70 के दशक में पटना के सीनियर एसपी की कमान संभालने वाले सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी एसके सिन्हा कहते हैं पटना में होने वाले अपराध का चरित्र राज्य के अन्य स्थानों से बिल्कुल भिन्न है। अपराध को घटित होने से रोकना भले ही पुलिस के वश में न हो, लेकिन बेहतर पुलिसिंग के लिए अपराध करने वाले शख्स को उसके किए की सजा दिलानी सबसे बड़ी शर्त होती है। चाहे अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो।
देर से ही सही, पटना पुलिस ने बेहतर पुलिसिंग की इस चुनौती को स्वीकार किया है। थानों में पदस्थापित पुलिस अधिकारियों को कानून-व्यवस्था और आपराधिक कांडों की जांच के लिए दो अलग-अलग टीमों में बांटा गया, जिसके परिणाम अब दिखने लगे हैं। थानों में दर्ज होने वाले आपराधिक मामलों की जांच ने रफ्तार पकड़ी है।
पटना के जोनल आइजी नैयर हसनैन खान ने थाना स्तर पर लंबित वारंटों की प्रतिदिन समीक्षा शुरू की है। कुर्की-जब्ती के मामलों को विशेष तवज्जो दी जा रही है। झपटमारी जैसे अपराधों की रोकथाम के लिए 100 मोटरसाइकिल सवार गश्ती दल का गठन किया गया है, जिसे राजधानी की संकरी गलियों में गश्त करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। चोरी और गृहभेदन जैसे अपराधों से निपटने के लिए सभी थानेदारों को गहन गश्ती का टास्क दिया गया है। बेहतर पुलिसिंग की इस कवायद के परिणाम ये हैं कि अब देर रात महिलाएं घर से निकलने में परहेज नहीं करतीं।
थानों में पदस्थापित पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को विधि-व्यवस्था और आपराधिक कांडों की जांच के लिए अलग-अलग विभक्त किए जाने के भी सकारात्मक परिणाम मिलने लगे हैं। पटना के जोनल आइजी नैयर हसनैन खां कहते हैं कि पुलिस मुख्यालय की यह तरकीब कारगर साबित हो रही है।
हाल के दिनों में पटना पुलिस ने नए विजन के साथ अपराध नियंत्रण के कई नए तरकीबों पर काम शुरू किया है। इसके तहत थानों को नए टास्क दिए गए हैं। इसमें थानों की उनके परफॉरमेंस के आधार पर गे्रडिंग भी शामिल हैं। पटना सेंट्रल रेंज के डीआइजी राजेश कुमार बताते हैं कि हमने पटना के सभी थानों के कामकाज की ग्रेडिंग शुरू की है। अब थानों में दर्ज होने वाले मामलों में अभियुक्तों की गिरफ्तारी के आधार पर थानों की ग्रेडिंग की जा रही है।
अब यह भी देखा जा रहा है कि थानों में गैर जमानती वारंट एवं कुर्की संबंधी वारंटों की स्थिति क्या है। पटना पुलिस की इस नई कार्यशैली के परिणाम अगले एक महीने से ही दिखने लगेंगे। थानों की इस ग्रेडिंग में थानाध्यक्ष से लेकर सिपाही तक के लिए यदि पुरस्कार के प्रावधान किए गए हैं तो खराब परफॉरमेंस वाले थानों के पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के लिए दंड की भी व्यवस्था है।
खराब प्रदर्शन के आधार पर थानों से हटाए जाने वाले पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को अगले छह महीने तक पुलिस लाइन में रहना होगा। श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों को नकद इनाम के साथ-साथ विशेष अवकाश मिलेगा। पुलिस को पीपुल फ्रेंडली बनाने की योजना पर काम चल रहा है।