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असहजता पर बेझिझक टूट रहे रिश्ते, पटना में 365 दिन नहीं टिक पा रही शादी

सात जन्मों का बंधन माने वाले जाने विवाह की उम्र दिन-ब-दिन घटती जा रही है। बिहार की राजधानी पटना में तो तालाक के काफी मामले सामने आ रहे हैं।

By Edited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 10:00 AM (IST)
असहजता पर बेझिझक टूट रहे रिश्ते, पटना में 365 दिन नहीं टिक पा रही शादी
असहजता पर बेझिझक टूट रहे रिश्ते, पटना में 365 दिन नहीं टिक पा रही शादी
प्रशांत कुमार, पटना। शादी जन्म की नहीं अब चंद दिनों की मोहताज हो गई है। अब अग्नि को साक्षी मानकर मरते दम तक साथ निभाने की कसमें खाने वाले जोड़ों का 365 दिन साथ रहना मुश्किल हो जा रहा है। शादी के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है, उन्हें लगता है कि वह एक-दूसरे के लिए नहीं बने। अब कोई संकोच भी नहीं, बेझिझक रिश्ते तोड़ दिए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरों में रहने वाले लोग तलाक लेने के लिए अधिक आतुर नजर आ रहे हैं।
वर्ष 2018 में आए 1460 मामले
वर्ष 2018 में पटना फैमिली कोर्ट में तलाक के कुल 1460 मामले दर्ज हुए। इनमें अधिसंख्य वाद आपसी सहमति से तलाक के सामने आए हैं। इस तरह के मुकदमे ज्यादातर लड़के पक्ष की तरफ से दायर हुए हैं। इस साल 15 जनवरी तक परिवार न्यायालय में तलाक के 64 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं, जो पिछले साल के अनुपात में लगभग दोगुना है।
समझौते की पहल पर नहीं बनी बात
चौंकाने वाली बात है कि तलाक लेने के इच्छुक ज्यादातर जोड़ों की शादी दो से पांच साल के बीच हुई है और उन्होंने अपनी अर्जी में लिखा है कि वे शादी के कुछ महीने बाद से ही अलग रह रहे हैं। कई बार उन्होंने समझौते के लिए पहल की, लेकिन बात नहीं बनी तो अब अलगाव चाहते हैं। इसमें 11 मामले ऐसे हैं, जिसमें वर पक्ष ने शादी को बरकरार रखने के लिए अर्जी दी है, जबकि लड़की पक्ष द्वारा तलाक लेने के लिए लड़के पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पटना व्यवहार न्यायालय के आंकड़ों के मुताबिक, तलाक लेने के लिए अर्जी दायर करने वाले जोड़े 25 से 35 वर्ष की आयु के बीच हैं। केवल एक मामला ऐसा है, जिसमें पति की ओर से बच्चे को साथ रखने के लिए गार्जियनशिप का मुकदमा दायर किया गया है।
कोर्ट की अनुमति लेकर हो रहे अलग
नौ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जब दंपती शादी के छह-सात महीने बाद ही ज्युडिशियल सेपरेशन (न्यायिक पृथक्करण) यानी कोर्ट की अनुमति से अलग रहना चाहते हैं। इसकी वजह यह है कि उनकी शादी को अभी 18 महीने पूरे नहीं हुए हैं, इसलिए वे तलाक नहीं ले सकते। अधिसंख्य मामलों में महिलाओं ने परवरिश के लिए पति से खर्च भी मांगा है। नवंबर 2018 से 15 जनवरी 2019 तक इस तरह के 1614 वाद दायर हुए। वहीं, तलाक, गार्जियनशिप और मेंटेनेंस के लगभग पांच हजार मामलों में सुनवाई चल रही है।
सिंगल मदर होना कलंक नहीं
अधिवक्ता किरण कुमारी कहती हैं, अब सिंगल मदर होना कलंक नहीं आजकल के युवा शादी को सुविधाजनक रिश्ता मानते हैं। जब उन्हें असहजता महसूस होती है तो वे दूसरे की भावना को समझने के बजाय बेझिझक रिश्ता तोड़ने का फैसला ले लेते हैं। महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं। अब वे तलाकशुदा या सिंगल मदर होने को कलंक नहीं मानतीं। उनके अभिभावक भी इस बात की परवाह नहीं करते कि नाते-रिश्तेदार ताने मारेंगे।
ईगो रिश्ता कर रहा खत्म
महिला थाना अध्यक्ष कुमारी स्मिता कहती हैं, पति-पत्नी के बीच 'ईगो' बड़ी वजह कम समय में तलाक के पीछे बड़ा कारण पति-पत्नी के रिश्तों में 'ईगो' यानी अहंकार होता है। इससे दरारें बढ़ती चली जाती हैं। स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहिए, लेकिन अभिमान की बुनियाद पर रिश्ते नहीं बनाए जाते। अगर पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर तकरार होती है तो परिवार के बड़े सदस्यों का फर्ज है कि किसी एक का पक्ष लेने के बजाय विवाद को दूर करें।
चाहत बन जा रही अवसाद का कारण
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डा. सरिता शिवांगी कहती हैं, बवेजह की चाहत बन जाती है अवसाद आज के भौतिक युग में शादी से पहले लड़के और लड़कियां होने वाले वर-वधू को लेकर कई तरह की चाहत पाल लेते हैं। जब उनकी चाहत पूरी नहीं हो पाती तो वह अवसाद का रूप लेने लगता है। ऐसा लव और अरेंज मैरिज दोनों में ही होता है। आज के समय में लोगों का खान-पान सही नहीं है और व्यवहारिक ज्ञान की भी कमी है, जिसके कारण उनमें गुस्सैल प्रवृति बढ़ जाती है।

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