विकास की अंधी दौड़ में दफन हो गए कई तालाब, कागज पर हैं 1005 ग्रामीण जलाशय, ढूंढ़े नहीं मिल रहे धरातल पर
राजधानी पटना के तालाबों का यह हाल है कि महज खानापूर्ति के लिए कागज पर तो कई तालाब है कि लेकिन हकीकत है कि ऊंची ऊंची इमारतों के नीचे यह सारे तालाब गुमा हो चले है।
पटना [जितेंद्र कुमार]। जलाशय धरती की प्यास बुझाने के बड़े स्रोत हैं। शहरीकरण की दौड़ में लोग इस कदर आगे बढ़ते चले गए कि हमारे पुरखों की प्यास बुझाने वाले तालाबों पर आज अट्टालिकाएं खड़ी हैं। शहरी विकास की कीमत पर कई तालाबों की बलि दे दी गई। सोन नहर में एलिवेटेड रोड बनकर तैयार हो गई। जिले में मत्स्य विभाग के अधीन 1005 ग्रामीण जलाशय रिकॉर्ड में हैं। हालाकि रखरखाव के बिना लगभग सभी जलाशय धरातल जगह कागजों पर हैं। सोन नहर, जमीदारी बाध और जलाशय प्रखडों में राजस्व एव भूमि सुधार विभाग के अधीन है, लेकिन सरक्षित रखने के लिए कोई ठोस काम नहीं हुआ।
पटना के जिले में 1005 जलाशयों में कोई ऐसा नहीं, जिसमें की गई खुदाई के बाद जल सचित हो सके। आम लोग तो दूर गर्मी के दिनों में पशु-पक्षियों को प्यास बुझाने के लिए इनमें पानी नहीं रहता। आस्था के महापर्व छठ के अवसर पर तालाब, सरोवर और नदी का महत्व सबसे अधिक हो जाता है। बावजूद एक-एक कर तालाबों और जलाशयों का अस्तित्व समाप्त होता गया।
तालाबों पर बन गए कई सरकारी भवन
फुलवारीशरीफ में करीब 35 एकड़ के तालाब को भरकर एम्स का निर्माण करा दिया गया। तारामडल, नेताजी सुभाष पार्क, इको पार्क, दरोगा प्रसाद राय रोड में विधायक आवास, खाद्य निगम कार्यालय, बिस्कोमान कॉलोनी, रेलवे सेंट्रल अस्पताल, सदलपुर सहित कतिपय कॉलोनी शहर के बीच तालाबों को भर कर बस गया।
विकास की आधी में गुम हुई सोन नहर
पटना महानगर प्लान क्षेत्र नौबतपुर से फुलवारीशरीफ और दानापुर प्रखड में सोन नहर से 70 के दशक तक सालभर मासी फसल उपजाई जाती थी। बिहटा और मनेर के खेतों में भी सोन नहर के पानी से खेती होती थी। शहर के विस्तार में खगौल से दीघा तक मुख्य सोन नहर के बीच में दीघा-एम्स एलिवेटेड रोड बन रहा है। दानापुर कैंट से लेकर नरगदा, उसरी, सरारी, जमालुद्दीनचक और कुर्जी महमदपुर तक नहर पर पक्का मकान बन गए। बिहटा प्रखड के जमुनापुर से आगे आइटीआइ सहित कई फैक्ट्रिया बन रही हैं। बिहटा, श्रीरामपुर, गोकुलपुर, कोरहर, आनदपुर कैंट से लेकर मनेर नहर अवैध कब्जे का शिकार हो गया।
अतिक्रमण के कारण सिकुड़ता जा रहा बादशाही नाला
पटना के दक्षिण हिस्से में सबसे बड़े जल स्रोत का अवशेष बादशाही नाला है। फुलवारीशरीफ प्रखड के गोनपुरा गाव से शुरू होकर सपतचक प्रखड के विभिन्न पचायतों से होते फतुहा के पास पुनपुन नदी में जाकर मिलता है। इस बड़े जल स्रोत की उड़ाही के लिए मनरेगा के पैसे खर्च होते आ रहे हैं। पटना नगर निगम 2009 से इसकी उड़ाही कराते आ रहा है। इस नाले की औसत चौड़ाई करीब 120 फीट है। अतिक्रमण के कारण अब कहीं-कहीं 10 से 20 फीट में जल बहाव होता है।
पुराने तालाबों का वजूद सकट में
अगमकुआ में शीतला मदिर के पास कभी राम कटोरा तालाब हुआ करता था। इसी तरह रामपुर तालाब, गोनसागर तालाब, बहादुरपुर, नदलाल छपरा तालाब सहित जो गाव पटना शहरी क्षेत्र में शामिल हुए उस मौजे में अब आहर, पइन, नहर तालाब और जलाशय मिटाकर मकान खड़ा कर दिया गया।
कच्ची तालाब का बुरा हाल
शहर के बीच कुछ तालाब बचे हैं, जो सकट में हैं। कच्ची तालाब, सचिवालय तालाब, मानिकचद तालाब और अदालतगज तालाब हैं, लेकिन विलुप्त होने का सकट बरकरार है।
एक्सपर्ट की बात
मैंने बचपन से पटना को देखा है। कभी यहा मैदान और तालाब अधिक हुआ करते थे। शहरीकरण में वर्टिकल ग्रोथ हुई। कम जगह में अधिक लोग रहने लगे और पानी का खर्च ओवर ड्राफ्ट की तरह हो रहा है। 2030 तक पटना में पानी का सकट विकराल हो जाएगा। कारण, ग्राउंड वाटर रिचार्ज के जो भी माध्यम हैं वह कंक्रीट में तब्दील हो जा रहे हैं। ऐसे ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर विशेष जोर की जरूरत है।
डॉ. अशोक कुमार घोष, अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियत्रण बोर्ड।