मनोज वाजपेयी ने बतायी संघर्ष की दास्तां- पॉकेट में रखता गया रिजेक्शन, एक्टिंग की लत है मुझे
मनोज वाजपेयी कहते हैं कि दूसरों को खुद को डिफाइन करने का मौका नहीं दें। ठीक है, उसने मुझे रिजेक्ट कर दिया लेकिन मैं क्यों खुद को रिजेक्ट मानूं।
पटना [जेएनएन]। फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी को सुनने किसी मोटिवेशनल किताब को पढऩे जैसा है। उन्हें सुनकर लगता है कि उनका इरादा फौलाद सा है। जो बार-बार असफल होने के बावजूद हार स्वीकार नहीं करता। फिल्म में जितनी शानदार उनकी एक्टिंग है, उतना ही दमदार उनका व्यक्तित्व। वे बुधवार को नृत्य कला मंदिर में थियेटर ओलंपिक्स के इंटरफेस कार्यक्रम के तहत पटना के दर्शकों से रूबरू थे।
कार्यक्रम में उन्होंने जीवन के कुछ रोचक पन्ने खोले। बताया कि किस तरह लंबे दिनों के संघर्ष के बाद टीवी सीरियल में काम करने का ब्रेक मिला मगर पहले ही टेक में उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। उसी दिन एक कॉमर्शियल फिल्म में काम करने पहुंचे। जहां एक छोटे से रोल के लिए उनका चयन हुआ था, पता चला कि यहां उनकी जगह किसी दूसरे को रख लिया गया। थक हार के वे घर पहुंचे। एक फिल्म डायरेक्टर को फोन मिलाया जिन्होंने एक फिल्म में काम देने का वादा किया था। उधर से जवाब मिला कि उस फिल्म का प्रस्ताव फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
मनोज वाजपेयी कहते हैं कि एक दिन में दो रिजेक्शन और तीसरी जगह से भी निराशा ही हाथ लगी। रात को मेरा दोस्त सौरव शुक्ला मेरे बेड पर सोने आया। उसने कहा कि आज रात तू अपना हाथ मेरी छाती पर रख के सो जाओ। मैंने पूछा क्यों? उसने कहा, अरे मुझे डर लगा रहा है कि कहीं तू सुसाइड न कर ले। पूरे हॉल में तालियां गूंज जाती हैं।
पॉकेट में रखता हूं रिजेक्शन
उन्होंने कहा कि मैं जब दिल्ली से एक्टर बनने निकला तो रिजेक्शन को पॉकेट में रख लिया था। मैंने सोच रखा था ज्यादा से ज्यादा क्या करेंगे, मुझे गांव भेज देंगे। उसमें क्या है। मैं तैयार हूं। उन्होंने युवा कलाकारों को सलाह दी कि दूसरों को खुद को डिफाइन करने का मौका नहीं दें। ठीक है, उसने मुझे रिजेक्ट कर दिया लेकिन मैं क्यों खुद को रिजेक्ट मानूं। मैं हमेशा लूज करने के लिए तैयार था। आप यदि कहीं से रिजेक्ट भी होते हैं, तो वहां से भी कुछ न कुछ सीखते ही हैं।
22 साल के युवा से अधिक करता हूं मेहनत
मनोज वाजपेयी ने कहा कि मैं आज भी शायद 22 या 23 साल के युवा से अधिक मेहनत करता हूं। एक्टिंग मेरा जुनून है। मेरी लत है। मुझे एक्टिंग से ज्यादा किसी चीज में मजा नहीं आता है। न ही रेस्त्रां में खाना खाने में, न ही घूमने में। शुरुआत से जो मेहनत करने की आदत पड़ी है, वह आज तक जारी है। मैं खुद ही अपना सबसे बड़ा क्रिटिक हूं। हमेशा 100 फीसद तक पहुंचने की चाहत मुझे जिंदा रखती है।
पटना में एनएसडी की तर्ज पर खुले नाट्य स्कूल
मेरा मानना है कि पटना में रंगमंच का माहौल तैयार करने के लिए नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) की तर्ज पर नाट्य विद्यालय खुले। आज के युवा सिनेमा की दुनिया में आने से पहले रंगमंच को कम से चार से पांच साल का समय दें। रंगमंच पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है। रंगमंच आपको लिखना, पढऩा और चीजों को समझना सिखाता है। मैंने दस साल रंगमंच को देने के बाद मुंबई का रुख किया। मेरा तो मानना है कि रंगमंच को स्कूल के सिलेबस का हिस्सा होना चाहिए।
सबको धोखे में रखा डॉक्टर बनूंगा
मनोज वाजपेयी ने कहा कि शुरुआत के दिनों में अभिभावक को यह दिलासा देता रहा कि मैं डॉक्टर बनने की तैयारी कर रहा हूं। इधर मैं रंगमंच की दुनिया से जुडऩे के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन लेन पहुंच गया। पिताजी ने पूछा कि तेरे डॉक्टर बनने का क्या हुआ। मैंने कहा कि अब कलेक्टर बनूंगा। हालांकि बाद में मैंने पत्र लिखकर घर वालों को बताया कि मेरी दिलचस्पी रंगमंच की दुनिया में है। पिताजी का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे मेरे मन का करने दिया।
रोजाना आठ किमी लगाता हूं दौड़
फिटनेस का राज पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि रोजाना सुबह आठ से नौ किमी दौड़ लगाता हूं। मैं जब मोटा होने लगा तो मैंने अपने दादा जी की डाइट चार्ट फॉलो की। आज मैं स्लिम हो गया हूं। स्लिम होने के लिए चावल एकदम नहीं खाता। नॉन वेज कभी-कभार लेता हूं। हार्ड लिकर नहीं लेता। रात को पपीता खाता हूं। इसके अलावा रोजाना प्राणायाम व ध्यान करता हूं। मनोज ने कहा कि शॉर्ट फिल्म में काम करना पसंद है। आने वाले दिनों में शॉर्ट फिल्म का भविष्य उज्ज्वल है।