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फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन दिखी 'पटना की मानवजनित बाढ़'

हिरावल-जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय प्रतिरोध का सिनेमा पटना फिल्मोत्सव रविवार को संपन्न हो गया

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 01:36 AM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 06:11 AM (IST)
फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन दिखी 'पटना की मानवजनित बाढ़'
फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन दिखी 'पटना की मानवजनित बाढ़'

पटना। हिरावल-जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय 'प्रतिरोध का सिनेमा : पटना फिल्मोत्सव' रविवार को संपन्न हो गया। महोत्सव का आखिरी दिन बच्चों के नाम रहा। सबसे आधिर में विश्वप्रसिद्ध कथाकार और नाटककार अंटोन चेखव की बहुचर्चित कहानी 'वार्ड नंबर-6' पर आधारित 'नया सत्य' नामक नाटक की प्रस्तुति हिरावल द्वारा की गई। बाढ़ के अनुभवों और उसके कारणों को दर्शाया

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राजधानी की नई पीढ़ी के फिल्मकारों की 'दी अननोन सिटी- माय ओन सिटी फ्लेडेड' में पिछली बरसात में पटना की त्रासदी को दिखाया गया है। यह फिल्म प्रियास्वरा भारती, प्रियातरा भारती व अभिनंदन गोपाल के निर्देशन में बनाई गई है। तीनों निर्देशक स्कूल या कॉलेज के छात्र हैं। इस फिल्म में बाढ़ के मानवजनित कारणों को दिखाया गया। दूसरी फिल्म सईं पराजपे की 'सिकंदर' कुत्ते के बच्चे और मनुष्य के बच्चों के बीच के प्यार को दर्शाती है। फेस्टिवल की तीसरी फिल्म 'मेरा राम खो गया' में सामाजिक विषमताओं पर चोट की गई है। नाटक में रविभूषण, अंकित कुमार पाडेय, राजदीप कुमार, गौरव, सौरभ सागर, सुधाशु शाडिल्य, रूबी खातुन, शाति इस्सर, मृत्युंजय प्रसाद, सम्राट शुभम, सौरभ, राजभूमि, सुमन कुमार और राम कुमार ने भूमिकाएं निभाई थीं। इसमें प्रकाश-रौशन कुमार, ध्वनि सहयोग- राजीव राय, रूपसज्जा-जितेंद्र कुमार जीतू और वस्त्र विन्यास- प्रीति प्रभा का था। परिकल्पना और निर्देशन संतोष झा का था। अंत में डीएम दिवाकर ने नाटक के निर्देशक को सम्मानित किया। इसी के साथ 11वा प्रतिरोध का सिनेमा : पटना फिल्मोत्सव संपन्न हुआ।

रंगकर्म के जरिए उठाया प्याज की कीमत का मुद्दा

हर शनिवार नुक्कड़ संवाद श्रृंखला की नई कड़ी में सदा लोक मंच ने उदय कुमार लिखित एवं निर्देशित नाटक 'महंगाई' का प्रदर्शन किया। खगौल स्थित दानापुर रेलवे स्टेशन के पास ऑटो स्टैंड में गीत-'खस्सी का जान जाए, खवैया को स्वाद नहीं, प्रजा को भी भूख लगती राजा को याद नहीं, महंगाई ने छीन लिया थाली से भोजन, राजा डकार मारे, तनिक भी परवाह नहीं..' से नाटक की शुरुआत हुई।

नाटक में बेतहाशा बढ़ी हुई महंगाई से त्रस्त लोगों की पीड़ा को दर्शाया गया। महंगाई की मार से परेशान आम जन की पीड़ा तब और बढ़ जाती है, जब सरकार के जिम्मेदार मंत्री और नेता बेतुके बयान देकर जनता का उपहास उड़ाते हैं। आमजन मंत्री तक महंगाई कम करने की गुहार लगाते हैं तो मंत्री कहते हैं - कीमतें कम करना मेरे वश में नहीं। एक मंत्री तो यहां तक कहते हैं कि मैं प्याज, लहसुन नहीं खाता इसलिए मुझ पर इनकी बढ़ी कीमतों का कोई प्रभाव नहीं है। ऐसी हालत में जनता की सुध कौन लेगा। प्याज, लहसुन खाना अपराध है क्या, जिसकी सजा जनता को दी जा रही है। नाटक में आमजन की पीड़ा और उसके प्रति सरकार की उदासीनता को प्रभावी ढंग से दर्शाने की अच्छी कोशिश की गई। कलाकारों में - उदय कुमार, साधना श्रीवास्तव, राजीव रंजन त्रिपाठी, संजय यादव, पंकज कुमार, भोला सिंह, अशोक, सूरज आदि शामिल थे।


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