Bihar Election 2020: चुनावी साल में बढ़ रहा मांझी का संशय, अभी से करने लगे हैं 50 सीटों पर दावेदारी
2015 के विधानसभा चुनाव में जिस महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की थी वह फिलहाल एकजुट नहीं दिख रहा। इसे लेकर सबसे अधिक संशय की स्थिति में हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी हैं।
पटना [सुनील राज]। Manjhi doubt is increasing in election year regarding Bihar Assembly Election 2020: बिहार में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के पूर्व राजनीतिक हलचल बढऩे लगी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जिस महागठबंधन (Mahagathbandhan) ने शानदार जीत दर्ज की थी, वह फिलहाल एकजुट नहीं दिख रहा। कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाए गए महागठबंधन में सबसे छोटे दल ज्यादा हताश हैं, जिसमें पहला नाम हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) (HAM) का है। हम प्रमुख जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) कुछ अधिक ही संशय की स्थिति में हैं।
हम (सेक्युलर) की हताशा का आलम यह है कि चुनाव को लेकर महागठबंधन में कोई सहमति बने इसके पूर्व ही उसने सीटों और गठबंधन मे कॉर्डिनेशन कमेटी को लेकर तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। हम (सेक्युलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी को डर है कि यदि जल्द गठबंधन की कॉर्डिनेशन कमेटी नहीं बनती है तो उन्हें सीटों के तालमेल में घाटा उठाना पड़ सकता है। इसी लिए वे लगातार कार्डिनेशन कमेटी का मुद्दा उठा रहे हैं। साथ ही अब उनकी पार्टी की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव में कम से कम 50 सीटों की दावेदारी भी पेश होने लगी है।
ऐसा भी नहीं कि यह पहला मौका है। इसके पूर्व भी मांझी गठबंधन में बगावती तेवर दिखा चुके हैं। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव का मसला हो या फिर बिहार के उपचुनाव का दोनों में मांझी ने गठबंधन की सहमति बगैर उम्मीदवार देने का एलान किया। हालांकि लोकसभा चुनाव में बाद में उन्होंने तीन सीटों पर समझौता कर लिया था। इसके बाद झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन से अलग अपने उम्मीदवार खड़े कर उन्होंने अपनी मंशा जाहिर की।
भले ही झारखंड और दिल्ली में उन्होंने अपनी सहूलियत से उम्मीदवार दिए, लेकिन बिहार में मांझी की किस्मत का फैसला महागठबंधन के दायरे में होना है। मांझी को पता है कि वोट प्रतिशत और पार्टी की संख्या बल के आधार पर उन्हें विशेष तवज्जो नहीं मिलने वाली। इसलिए वे अभी से तेवर में हैं। कभी 35 सीटों का दावा करते हैं तो कभी 50 सीट का। बीच-बीच में वे कॉर्डिनेशन कमेटी का मसला भी उठाते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि कॉर्डिनेशन कमेटी बनी तो गठबंधन के सभी दलों की सहमति से ही सीटों का बंटवारा होगा। वरना कांग्रेस-राजद के फैसले को मानना छोटे दलों की मजबूरी होगी। मांझी फिलहाल इसी संशय में है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मांझी गठबंधन में अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए जो चाल चल रहे हैं उसमें हो पाते हैं या नहीं।