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बेमिसाल सुगंध : कभी दूध से सींचे जाते थे आम के पेड़, नाम पड़ा दूधिया मालदह

दीघा का मालदह आम देश दुनिया में अपनी पहचान वर्षो पहले बना चुका है। इसे किसी परिचय का मोहताज होने की जरूरत नहीं है। इय आम की सुगंध ही इसकी खासियत है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 May 2018 01:16 PM (IST)Updated: Mon, 14 May 2018 01:16 PM (IST)
बेमिसाल सुगंध : कभी दूध से सींचे जाते थे आम के पेड़, नाम पड़ा दूधिया मालदह
बेमिसाल सुगंध : कभी दूध से सींचे जाते थे आम के पेड़, नाम पड़ा दूधिया मालदह

पटना [नीरज/प्रभात रंजन]। दीघा के दूधिया मालदह आम के पेड़ आज भी सुगध से अपने पास पहुंचने का रास्ता बता देते हैं। ऐसा ही एक ठिकाना है, दीघा-आशियाना रोड स्थित सत जेवियर कॉलेज परिसर जहा बड़ी सख्या में आम के पेड़ हैं। पेड़ों की रखवाली करने वाले अशोक बताते हैं कि इन्हें अपने बच्चों की तरह पालता हूं तभी तो ये आज खिलखिला रहे हैं। अशोक बूढ़े-बुजुर्गो से सुनी बातों के सहारे बताते हैं कि इलाके में गगा की धारा पास से होकर गुजरती थी जिसके कारण जमीन उर्वर होने के साथ नरम भी थी। किवदतियों की मानें तो इस्लामाबाद के शाह फैसल मस्जिद इलाके से लखनऊ के नबाव फिदा हुसैन आम के पेड़ अपने साथ पटना प्रवास के दौरान लाए थे। दीघा की रेलवे क्रॉसिग तथा इसके आसपास की जमीनों पर आम के पेड़ लगाए गए जो आगे चलकर बाग के रूप में बदल गए।

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अशोक बताते हैं, साहब पेड़-पौधे के प्रेमी होने के साथ पशु प्रेमी भी थे। जिसके कारण उनके पास गायों की सख्या थी। गाय के बचे दूध को नवाबा आम की जड़ों में डालते। कुछ महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा। आम के पेड़ बड़े होने के साथ उसमें फल भी आए जिसमें से दूध जैसा तरल निकला। इसके बाद आम की इस प्रजाति को 'दूधिया मालदह' कहा जाने लगा।

मई-जून का महीना होता है खास

दीघा के दूधिया मालदह के बगीचे में दूर-दूर से लोग आम की खरीदारी करने आते हैं। बगीचों की रखवाली करने वाला अशोक ने कहा कि मई-जून का महीना आम के सबसे खास होता है। इस दौरान बाजार में आमों की अन्य प्रजाति भी आती है। इसकी भी खरीदारी जमकर होती है।

रंग, सुगध और स्वाद ही ब्राडिंग

दीघा के पूर्व मुखिया एव स्थानीय किसान चद्रवशी सिह जीवनभर दूधिया मालदह के सरक्षण में जुटे रहे। उनका कहना है कि 70 वर्ष की उम्र में काफी आम खाया, लेकिन दूधिया मालदह की कोई तुलना नहीं। दूधिया मालदह अपने रंग, सुगध एव स्वाद के लिए सभी आमों पर भारी है। उनका कहना है कि आज से लगभग 500 वर्ष पहले दीघा में सोन एव गगा का सगम हुआ करता था। इसी सगम की मिट्टी पर पैदा हुआ दूधिया मालदह। विशेषज्ञों का कहना एक तरफ गगा के पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा होती है, वहीं सोन का पानी में कैल्सियम भरपूर होता है। कैल्सियम एव आयरन के मिश्रण के कारण दीघा की मिट्टी आम के लिए काफी अनुकूल मानी जाती है। यही कारण है कि अन्य आमों की प्रजाति से दीघा के दूधिया मालदह आम का स्वाद अलग होता है।

पतला छिलका व छोटी गुठली है इसकी पहचान

दूधिया मालदह की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसका छिलका काफी पतला होता है। गुठली भी बहुत पतली होती है। सबसे ज्यादा गूदा होता है। आम का औसत वजन 250 ग्राम होता है। इसका सुवास काफी अच्छा होता है। अगर एक पक्का आम किसी कमरे में रख दिया जाए तो पूरा कमरा सुवासित हो उठेगा।

देश-विदेश में मिला पहला स्थान

एक समय पूरा इलाका इरफान के बगीचे के नाम से जाना जाता था। मोहम्मद इरफान की देखरेख में दूधिया मालदह ने राष्ट्रीय एव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली अखिल भारतीय आम प्रदर्शनी में प्रथम स्थान पाकर अपना नाम रोशन किया। वर्ष 1997 में सिगापुर में हुई आम प्रदर्शनी में पटना के दूधिया मालदह आम ने पहला स्थान प्राप्त किया था। साथ ही कई राज्यों में होने वाली प्रतियोगिता में दीघा के मालदह आम अपनी पहचान को बरकरार रखने में अपनी भूमिका निभाता आ रहा है।

पेड़ों को सरक्षण की जरूरत

प्रदूषण और प्राकृतिक सतुलन बिगड़ने के कारण दूधिया मालदह के पेड़ों पर भी सकट छाया है। तरुमित्र की देवप्रिया दत्ता बताती हैं, इन धरोहरों को बचाने के लिए वन विभाग एव आम आदमी को आगे आने की जरूरत है। दीघा की मिट्टी उर्वरक होने के साथ उपजाऊ भी है। ऐसे में आम की खेती करना आसान है लेकिन प्रदूषित वातावरण और प्राकृतिक आपदा का खामियाजा पेड़ों को भी भुगतना पड़ता है। इसके लिए कुछ काम जरूर करना होगा। तभी हम इसे आगे भी बचा सकेंगे।

लदन तक जाता था दीघा का आम

इस आम के दीवाने सिर्फ पटना में ही नहीं बल्कि विदेशों तक हैं। आम की खेप विभिन्न राज्यों के साथ विदेशों में भी भेजी जाती रही है। देश के प्रथम राष्ट्रपति से लेकर इंदिरा गाधी और कई फिल्मी सितारों के घर भी आम अपनी मिठास फैलाता रहा है। दूधिया मालदाह के दीवाने आम से खास तक रहे। दूधिया मालदह के स्वाद को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ज्ञानी जैल सिह, नेहरू आदि शख्सियतों ने चखा था। कहा जाता है कि 1952 में मशहूर फिल्म अभिनेता एव निर्माता राजकपूर एव गायिका सुरैया ने भी दीघा के आम का स्वाद लिया था। दीघा का दूधिया मालदह न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध रहा। अंग्रेजी शासन के दौरान यहा से बड़े पैमाने पर दीघा का दूधिया मालदह लदन जाता था। आजादी के बाद भी देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सदाकत आश्रम से बड़े पैमाने पर दूधिया मालदह दिल्ली भेजा जाता था। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित कई मत्रियों को आम का उपहार भेजते थे। पूर्व प्रधानमत्री इंदिरा गाधी तो दीघा के दूधिया मालदह को विशेष रूप से पसद करती थीं।

पेड़ों में अधिक मंजर आने के लिए करते है दुआ

दीघा स्थित सत जेवियर कॉलेज में दूधिया मालदह के पेड़ हैं, जिस पर आम के गुच्छे लदे दिखते हैं। कॉलेज परिसर में आम की रखवाली करने वाले अशोक बताते हैं कि हर साल काफी सख्या में पेड़ों पर मजर आए इसके लिए दुआ करते हैं। पेड़ पर मजर आने के बाद उनकी देखरेख अच्छे से की जाती है। मजर आने से पहले दवाओं का छिड़काव करना होता है। आम को मौसम की मार भी झेलनी पड़ती है। आधी-तूफान और ओले पड़ने के बाद फसल का काफी नुकसान होता है। ऐसे में फसल को बचाने के लिए हर सभव प्रयास किया जाता है।

याद आते है आम के वो पुराने दिन

दीघा की नई पीढ़ी को भले ही दूधिया मालदह का स्वाद कम मिल हो मगर पुरानी पीढ़ी आज भी पुराने दिनों को शिद्दत से याद करती है। राजीवनगर के एसके भारद्वाज बताते हैं, साठ और सत्तर के दशक में आम किलो के भाव नहीं गिनती से बेचे जाते थे। हम बच्चे तो यूं ही आम के बगानों में घुसकर चोरी-छिपे मन भर आम तोड़ लाते थे। उस समय एक रुपए में बारह से पद्रह आम तक मिल जाते थे। दीघा के रामपुकार सिह कहते हैं, गर्मी की छुट्टियों में हम चचेरे भाई-बहन सब दूधिया मालदह के फलने का इंतजार करते थे। अप्रैल से ही कच्चे आम तोड़ने लगते थे। मई तक आम की सुगध से पूरा इलाका महकने लगता था। तब दूर दराज से लोग दीघा के बगान में सिर्फ दूधिया मालदह लेने आते थे।


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