1 साल की उम्र में मां को खोया, 8 साल बाद छोड़ा घर; अब खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहा सुजीत
एक व्यक्ति, जिसने बचपन में अपनी माँ को खो दिया और घर छोड़ दिया था, 33 साल बाद अपने जीवित होने का प्रमाण दे रहा है। बचपन की कठिनाइयों के बाद, वह अब अपन ...और पढ़ें

अपने परिवार के साथ सुजीत। फोटो जागरण
संवाद सूत्र, मोकामा। मात्र एक साल की उम्र में ही मां की ममता से महरूम मासूम आज अपने जिंदा होने का सबूत दे रहा है। 9 साल की उम्र में ट्रक के पीछे लटककर देवघर पहुंचना, कोलकाता और असम में दर-दर की ठोकरें खाने वाले मासूम चूसना की दर्दभरी कहानी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है।
14 साल की उम्र में देवताओं की नगरी उत्तराखंड में बेल्डिंग की दुकान में लोहा पीटने वाला किशोर अब सुजीत सिंह बनकर 33 साल बाद गांव पहुंचा तो ग्रामीणों की बात तो दूर रही, खुद मासूम के माता-पिता ने भी पहचानने से इंकार कर दिये।
खुद के जिंदा होने का सबूत देकर सुजीत जब हार गया, तब चूसना की बेटी ने दादा अवधेश सिंह को यकीन दिलाने में सफलता पाई। चूसना अर्थात सुजीत सिंह की यह मार्मिक कहानी आज हाथीदह गांव में घर-घर चर्चा का विषय बन गई है।
मोकामा प्रखंड के हाथीदह गांव निवासी अवधेश सिंह का नौ साल का चूसना देहरादून के नत्थू लाल का सुजीत बनकर 33 साल तक माता-पिता की यादों को दिल में संजोये रहा।
पांच दिन पहले जब एक मित्र की बेटी की शादी में भाग लेने बेगूसराय जा रहा था, तब हाथीदह स्टेशन पहुंचते ही चूसना के दिलों में दबी यादों के लम्हे परत दर परत उभरते चले गए।
मां की मौत के बाद बदल गई जिंदगी
ग्रामीणों ने बताया कि मां उषा देवी की मौत के बाद मासूम चूसना के दिल में सौतेली माता इंदु देवी के खिलाफ लोगों ने नफरत का बीज बो दिया। पिता अवधेश सिंह की गृहस्थी चलाने की विवशता में मासूम के दिल में सौतेली मां के खिलाफ बोई हुई नफरती बीज पौधे का आकार ग्रहण करने लगा।
जब मासूम नौ साल का हुआ, तब इसी नफरती मानसिकता में ट्रक के पीछे लटककर वह देवघर जा पहुंचा। देवघर से बनारस और बनारस से कोलकाता पहुंचकर मासूम चूसना बंजारों की तरह दर-दर भटकता रहा।

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