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मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कैसे बनी कोरोना की क्वीन, जानिए दिलचस्प कहानी

hydroxychloroquine for covid मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन दवा कोराना वायरस के कारण चर्चा में है। कैसे ये दवा कोरोना क्वीन बनी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 25 Apr 2020 12:08 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 02:48 PM (IST)
मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कैसे बनी कोरोना की क्वीन, जानिए दिलचस्प कहानी
मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कैसे बनी कोरोना की क्वीन, जानिए दिलचस्प कहानी

पटना, जेएनएन। hydroxychloroquine for covid: यूं तो हर वर्ष 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है, इस पर तरह-तरह की खबरें छपती हैं, लेकिन इस वर्ष मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन दवा कोराना वायरस के कारण चर्चा में है। आलम यह कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल होने वाली कुनैनक्राइन दवा के घातक दुष्प्रभाव के बाद 1955 में बनी इस दवा को आज अमेरिका समेत विश्व के 30 देश भारत से मांग रहे हैं। कोरोना उपचार की सटीक दवा के अभाव में अमेरिका ने तो इसके लिए भारत को धमकी तक दे दी थी।

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) द्वारा कोरोना आशंकितों का इलाज करने वाले डॉक्टरों व अस्पतालकर्मियोंको इस दवा के लेने के परामर्श के बाद आमजन इसके घातक दुष्प्रभावों को जाने बिना खुद इसका सेवन करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। लोगों की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए अब लम्प्स (गांठ), रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस के मरीजों को भी यह दवा अब बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के नहीं मिल रही है।  

58 वर्ष तक फ्रांस का आधिपत्य, आज भारत का बोलबाला 

इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) में फार्माकोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. हरिहर दीक्षित ने बताया कि 1938 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सैनिकों को जानलेवा मलेरिया से बचाने के लिए बनाई गई कुनैनक्राइन दवा की विषाक्तता को कम करने के लिए शोध शुरू हुए।

1955 में इसके उप उत्पाद के रूप में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन को मान्यता दी। 1955 से 2013 तक फ्रांसीसी कंपनी सनोफी  'प्लेक्यूनिल' ब्रांड नाम से इसकी बिक्री करती  थी। 2013 के बाद जब यह जेनरिक श्रेणी में आई तो भारत की इपका, जाइडस कैडिला समेत तमाम कंपनियों ने इसका उत्पादन शुरू किया। 

फ्रांस के अध्ययन से बढ़ी दवा की मांग  

फ्रांस के मॉर्शिली स्थित लैब में हुए हालिया अध्ययन में  पाया गया कि ऑटो इम्यून डिजीज में काम आने वाली हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन और एजिथ्रोमाइसिन देने से कोरोना संक्रमित जल्दी ठीक हो रहे हैं। वहीं चीन के अध्ययन में पाया गया कि इस दवा को लेने वाले लोग नहीं लेने वालों से जल्दी ठीक होते हैं। 

भारत दोगुनी करेगा उत्पादन क्षमता

कोरोना के पहले भारत 200 मिलीग्राम की 20 करोड़ टैबलेट का उत्पादन प्रतिमाह करता था। अब इसे दोगुना यानी 40 करोड़ टैबलेट से अधिक करने की कवायद चल रही है। हालांकि, भारत में सामान्यत: साल भर में 2.5 करोड़ टैबलेट की ही जरूरत है। 


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