CoronaVirus Bihar: कोरोना काल में आदमी को मजबूत बनाएगा मखाना, बढ़ाएगा शरीर की इम्युनिटी
कोरोना काल में मखाना बड़े काम की चीज है। इसके सेवन से मानव शरीर के इम्युनिटी सिस्टम को मजबूती मिलेगी। मखाना की खूबियों को जानिए इस खबर में।
पटना/ किशनगंज, जागरण टीम। कोरोना के संक्रमण काल में शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली (इम्युनिटी सिस्टम) को बेहतर बनाने को लेकर जहां तमाम प्रयास किये जा रहे हैं, वहीं एक रिसर्च में एमीनो एसीड से युक्त मखाना को शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिए अच्छा बताया गया है। यह रिसर्च किशनगंज स्थित भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज के मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार ने किया है। खास बात यह है कि बिहार देश में सबसे बड़ा मखाना उत्पादक राज्य है। बिहार के सीमांचल में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। यहां के मिथिलांचल में देश का सर्वाधिक मखाना उत्पादन होता है।
मखाने में काफी मात्रा में पोषक तत्व
मखाने में काफी मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह शरीर के कई तंत्रों को मजबूती प्रदान करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) व संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि मखाना में चावल, गेहूं, सोयाबीन, लाल साग, मां का दूध, गाय का दूध, मछली व मटन से ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। प्रति 100 ग्राम मखाना में 9.7 फीसद प्रोटीन, 75 फीसद कार्बोहाइड्रेट, आयरन और वसा के अलावा 382 किलो कैलोरी मिलती है। इसमें दूध और अंडे के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है।
कई रोगों में मिलता काफी लाभ
किशनगंज स्थित भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज के मखाना वैज्ञानिकों ने मखाना में विद्यमान पोषक व औषधीय गुणों के प्रचार-प्रसार तथा इसकी खेती को बढ़ावा देकर इसके माध्यम से आर्थिक क्रांति लाने की योजना बनाई है। मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल बताते हैं कि पोषक तत्वों एवं औषधीय गुणों का भंडार मखाना पाचन तंत्र, जनन तंत्र समेत अन्य तंत्रों को भी संपुष्टि प्रदान करता है। इसका सेवन करने से हृदय रोग व मधुमेह के रोगियों को काफी लाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि चीन की प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था में मखाना का 'क्यान शी' के नाम से प्रयोग किया जाता है।
कोरोना से लड़ने में भी मददगार
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ आरके सोहाने ने बताया कि केंद्र सरकार के किसानों की आमदनी दोगुनी करने की योजना के साथ-साथ कोविड 19 के लिए उपयुक्त माने जाने वाले मखाना का वैल्यू एडिशन भी किया जाएगा। यह कोरोना से लड़ने में भी मददगार है।
दो लाख हेक्टेयर में होगी खेती
डॉ. अनिल बताते हैं कि दो लाख हेक्टेयर बेकार पड़े वेटलैंड वाले कोसी-सीमांचल के इलाके में किसानों को मखाना में विद्यमान पोषक तत्वों व औषधीय गुणाें की जानकारी दी जाएगी। वे बताते हैं कि एक हेक्टेयर में मखाना की खेती में लगभग एक लाख रुपये का खर्च आता है तथा औसतन उपज 30 क्विंटल गुर्री प्राप्त होती है। इसे बेचने पर लगभग 3.5 लाख रुपये प्राप्त होते हैं। यानी औसतन दो लाख से 2.5 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। अगर लावा उत्पादन करेंगे तो यह मुनाफा और अधिक हो जाता है। मखाना के साथ मत्स्य उत्पादन पर कम से कम लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है।
बिहार में होता सर्वाधिक उत्पादन
मखाना केवल किशनगंज तक सीमित नहीं। दरअसल, इसके उत्पादन का सबसे बड़ा इलाका मिथिलांचल है। देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसद उत्पादन बिहार में होता है और बिहार के कुल उत्पादन में 70 फीसद हिस्सा मिथिलांचल का ही है। इसमें मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, अरिरया, कटिहार और समस्तीपुर जिले आते हैं। लगभग सवा लाख टन बीज मखाने से 40 हजार टन मखाने का लावा प्राप्त होता है। आंकड़ों की बात करें तो देश में मखाने का कारोबार करीब छह सौ करोड़ का है।