भितिहरवा: यहां से गांधी ने जगाई थी स्वतंत्रता की अलख, अभी तक कम नहीं हुईं इसकी उदासियां
चंपारण के भितिहरवा में गांधी की चंपारण यात्रा की स्मृतियों जीवंत हैं। 1917 में यहीं से महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई थी। यहां के मैजूदा हालात की पड़ताल करती रिपोर्ट।
भितिहरवा, पश्चिम चंपारण से मनोज झा। मोतिहारी के बापूधाम रेलवे स्टेशन से आगे चलकर बेतिया और फिर नरकटियागंज के रास्ते थोड़े-थोड़े अंतराल पर हरे रंग की सरकारी पट्टिकाएं और दिशासूचक साइनबोर्ड गांधी की चंपारण यात्रा और उनके प्रवास से जुड़े स्थलों की अहमियत का अहसास कराने लगते हैं। गन्ने व धान के खेतों और बरसाती नदियों से घिरे विशुद्ध ग्रामीण परिवेश वाले इस इलाके में एक गांव भितिहरवा भी है। संकरी-सी सड़क के किनारे बसा भितिहरवा आज भी गांधी की चंपारण यात्रा की महान स्मृतियों को अपने सीने से संजोए है। आज से 102 साल पहले 1917 में गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन की अलख यहीं से जगाई थी।
गांधी की पहली राजनीतिक सफलता का गवाह यह स्थल
नील खेतिहरों के अंतहीन दुखों का अंत करने आए गांधी की पहली राजनीतिक सफलता का गवाह भी है यह स्थान। यहां के गांधी आश्रम में बापू की कुटी और चित्र दीर्घा की भित्तियों पर स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा के अतुलनीय योगदान को सहेजने का प्रयास दिखाई देता है। बरामदे में बापू और कस्तूरबा की आदमकद मूर्तियां हैं तो दीवारों पर गांधी के भजन और कथन लिखे हुए हैं। हालांकि, आश्रम के बाहर गांव के अंदरूनी हालात देखकर लगता है कि एक सदी के सफर के बाद चंपारण की चिंताएं अभी बनी हुई हैं और गांधी का ग्राम स्वराज का संकल्प पूरा होना अभी बाकी है।
गांधी के आदर्श ग्राम और भितिहरवा के बीच बड़ा फासला
गांधी के आदर्श ग्राम और भितिहरवा के बीच अभी बड़ा फासला दिखाई देता है। चेहरा बदलकर ही सही, कई चिंताएं यहां आज भी बनी हुई हैं। नील की जगह गन्ने ने तो अंग्रेजों की जगह मिल मालिकों ने ले ली है। गन्ना भुगतान लटकने के चलते कई किसान पाई-पाई के मोहताज हैं। धान किसानों को अपनी फसल औने-पौने दाम में बेचनी पड़ती है। गांव में स्वरोजगार भी कहीं नजर नहीं आता और कई परिवार घोर गरीबी की गिरफ्त में हैं। दो जून की रोटी के जुगाड़ में कई लोग गांव-गिरांव से दूर बड़े शहरों में पलायन कर गए हैं। यहां के छह शय्या वाले सरकारी अस्पताल में किसी डॉक्टर की तैनाती ही नहीं है। गांव के अंदर की सड़क नहीं बन पाई है।
पंचायत में तीन स्कूल, पर ठीक नहीं शिक्षा की दशा-दिशा
कभी भितिहरवा के गांधी आश्रम में कस्तूरबा छह माह रही थीं और वहां शिक्षा के अलावा कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वावलंबन की सीख दी थी। बाद में पुंडलीक जी कातगडे उर्फ गुरुजी के प्रयासों से यहां शिक्षा के प्रचार-प्रसार का अतुलनीय अभियान चलाया गया था। आज यहां शिक्षा की दशा-दिशा ठीक दिखाई नहीं देती।
भितिहरवा पंचायत में तीन सरकारी स्कूल हैं। उत्क्रमित हाई स्कूल महज चार प्राइमरी शिक्षकों के भरोसे है। बुनियादी विद्यालय में भी शिक्षकों का भारी टोटा है। गांधी आश्रम के पास कस्तूरबा बालिका उच्च विद्यालय में चहल-पहल तो है, लेकिन इसकी विडंबना यह है कि 1981 में शुरू हुए इस स्कूल को अभी तक सरकारी मान्यता नहीं मिल पाई है। ऐसे में भितिहरवा और श्रीरामपुर गांव के लोग इसे मिलजुल कर चला रहे हैं। विद्यालय प्रबंधन समिति के सचिव दिनेश प्रसाद यादव कहते हैं कि हम बापू के अनुयायी हैं और हमने आस नहीं छोड़ी है।
अभी तक गांधी के ग्राम स्वराज के सपने से दूर खड़ा भितिहरवा
गांधी आश्रम के चलते यहां नेताओं का आना-जाना लगा रहता है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और सीएम नीतीश कुमार के अलावा कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, राहुल गांधी, बाबा रामदेव, यशवंत सिन्हा, एएस आयंगर जैसी हस्तियां यहां समय-समय पर आती रही हैं। इसके चलते आश्रम परिसर में निर्माण कार्य तो दिखाई पड़ता है, लेकिन जहां तक भितिहरवा के भीतर झांकने का सवाल है तो उसकी उदासियां मिटाने का कोई सत्याग्रही संकल्प लिया जाना अभी बाकी है। तब तक भितिहरवा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने से शायद दूर ही खड़ा रहेगा है।
भितिहरवा का साबरमती की तरह विकास का सपना
गांव के ही सेवानिवृत गांधीवादी शिक्षक शिव शंकर चौहान कहते हैं बापू ने भितिहरवा से पूरी दुनिया को सत्याग्रह की ताकत का अहसास कराया था। हम हिम्मत नहीं हारेंगे और यहां के उत्थान के लिए कृतसंकल्प रहेंगे। उनका सपना है कि भितिहरवा का भी साबरमती या गांधी जी से जुड़े अन्य स्थलों की तरह विकास हो। इसे एक तीर्थ की तर्ज पर आदर्श ग्राम की तरह संवारा जाए, ताकि लोग यहां आकर देखें कि गांधी के सपनों का गांव कुछ ऐसा है।