भाजपा-जदयू की एकजुटता से बढ़ेगी महागठबंधन की परेशानी
राज्यसभा की जीत ने जता दिया है कि बिहार में भाजपा-जदयू की गांठ फिर से मजबूत हो गई है, जबकि विपक्ष की एकता कहीं न कहीं भ्रमित दिख रही है। एेसे में महागठबंधन की चिंता बढ़ सकती है।
पटना [अरविंद शर्मा]। उपसभापति पद के चुनाव में जदयू प्रत्याशी हरिवंश के पक्ष में राजग की क्षमता से ज्यादा वोट मिलने से बिहार में महागठबंधन के घटक दलों की परेशानियों में इजाफा तय है। भाजपा-जदयू की दोस्ती जितनी अधिक मजबूत होगी, विरोधी दलों की एकता की उतनी ही कठिन परीक्षा होगी।
राज्यसभा की जीत ने जता दिया है कि बिहार में भाजपा-जदयू की गांठ फिर से पुराने दौर की तरह जुड़ गई है, जबकि विपक्ष की एकता कहीं न कहीं भ्रमित दिख रही है। यहां तक कि राजद कोटे से सांसद बने राम जेठमलानी ने भी पार्टी लाइन से अलग वोट कर दिया। इससे बिहार में राजग ने महागठबंधन पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है।
सृजन घोटाला, अपराध और मुजफ्फरपुर बालिका गृह के मसले पर राज्य सरकार पर लगातार हमले कर रहे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के लिए राज्यसभा में राजग की जीत परेशान करने वाली हो सकती है, क्योंकि जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करके उन्होंने विपक्ष को एक करने की कोशिश की थी। संदर्भ भले ही मुजफ्फरपुर कांड का था, लेकिन चुनाव से महज चार-पांच दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी में आंदोलन को विपक्षी एकता की कवायद ही माना जा रहा था।
ऐसे में राम जेठमलानी के पाला बदलने से राजद हैरत में है। राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा इस मुद्दे पर मुंह भी नहीं खोलना चाहते हैं, किंतु राज्यसभा में राजद के एक नहीं रहने का उन्हें मलाल जरूर है। मनोज के मुताबिक जेठमलानी ने ऐसा क्यों किया, वह समझ नहीं पा रहे हैं। व्याख्या करने के लिए शब्द भी नहीं मिल रहे।
विपक्ष का सारा दारोमदार तेजस्वी पर
राज्यसभा में राजग की जीत ने बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे दलों को गहरे प्रभावित किया है। महागठबंधन के पास बिहार में नेतृत्व के नाम पर कोई बड़ा और अनुभवी चेहरा नहीं है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद बीमार हैं। स्वस्थ होते ही उनका बाहर रहना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में विपक्ष का सारा दारोमदार तेजस्वी पर है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनका अबतक बेहतर प्रदर्शन रहा है, लेकिन सियासी अनुभव में नीतीश कुमार और सुशील मोदी से उनकी तुलना नहीं की जा सकती है।
हरिवंश की जीत ने संकेत कर दिया है कि भाजपा-जदयू की दोस्ती 2005 के स्तर पर आ गई है। दोनों मिलकर चुनाव की साझा रणनीति तय करेंगे। इससे राजद-कांग्र्रेस की परेशानियों में इजाफा तय है।