मिशन 2019: बिहार में प्रशांत किशोर की पिच पर ही बैटिंग करेगा महागठबंधन, जानिए
आगामी लोकसभा चुनाव में सभी दल अपनी रण्ानीति बना रहे हैं। लेकिन, विपक्षी महागठबंधन के घटक दलों की रणनीति जदयू के प्रशांत किशोर के कदमों से प्रभावित दिख रही है।
By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 09:51 AM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 10:50 PM (IST)
पटना [अरविंद शर्मा]। लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में महागठबंधन जदयू के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पिच पर ही बैटिंग करने जा रहा है। सभी घटक दलों के स्वर, पैतरे और रास्ते अलग-अलग होंगे। कांग्रेस सवर्णों का सहारा लेगी और राजद की रणनीति कांग्रेस कार्ड से भिन्न होगी। पिछले हफ्ते की गतिविधियां बता रही हैं कि दोनों दलों ने रास्ते तय कर लिए हैं। तीसरे सहयोगी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) ने मध्यम मार्ग अपनाया है।
तीन साल पहले की राह पर हीं महागठबंधन के घटक दल
महागठबंधन के तीनों दलों की कोशिश उसी रास्ते पर जा रही है, जिसे तीन साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने राजद-जदयू और कांग्रेस के लिए तय किया था। जदयू के पास नीतीश कुमार के रूप में विकास पुरुष का चेहरा था। टिकट बंटवारे में कांग्रेस ने सवर्णों को तरजीह दी थी तो राजद ने कांग्रेस-जदयू से उल्टी राह पकड़ी थी। राजद ने अपने हिस्से की 101 सीटों में से 48 पर यादव और 16 पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। सबसे ज्यादा चर्चा लालू की उस रणनीति की हुई थी, जिसके तहत उन्होंने अगड़ी जाति को टिकट से लगभग वंचित रखा था। राजद में अगड़ी जाति के वरिष्ठ नेताओं के कोटे में सिर्फ दो राजपूत और एक ब्राह्मïण को प्रत्याशी बनाया गया था।
तब विपक्षी महागठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर जदयू, राजद व कांग्रेस ने राजग के खिलाफ जबरदस्त मोर्चाबंदी की थी। जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी खुद कमान संभालनी पड़ी थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जुबानी जंग लोगों की जुबान पर चढ़ गई थी। आज राजनीति ने करवट बदली है। जदयू अब राजग में है तो तब राजग में शामिल जीतनराम मांझी महागठबंधन का हिस्सा हैं। राजनीतिक दलों की परिस्थितियां बदलीं, लेकिन वे प्रशांत किशोर की रणनीति के अनुसार ही चलते दिख रहे हैं।
माय समीकरण के सहारे राजद
काफी जद्दोजहद और इंतजार के बाद प्रदेश कांग्रेस की नई बनी टीम को राजद की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। संकेत है कि राजद इस बार लोकसभा में भी माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे ही आगे बढ़ेगा। कांग्रेस ने अपनी नई टीम को राजद की सियासी तासीर के हिसाब से गढ़ा है और वोट बैंक के लिहाज से प्रभावी बनाने की कोशिश की है। माय समीकरण के जरिए लालू प्रसाद अपने बुरे दौर में भी राजद प्रत्याशियों को करीब 30 फीसद वोट के लिए आश्वस्त करते आए हैं।
सवर्ण मतदाताओं पर कांग्रेस की नजर
कांग्रेस की कोशिश सवर्ण मतदाताओं को राजग खेमे में जाने से रोकने की होगी। बिहार में 90 के दशक तक इस वर्ग का समर्थन कांग्रेस को प्राप्त था, किंतु पिछले तीन दशकों की राजनीति के चलते सवर्ण की नई पीढ़ी कांग्र्रेस से कतराने लगी है। अब दोबारा भरोसा जीतने की कोशिश है।
तेजस्वी ने राजद को दुविधा से निकाला
आरक्षण के सवाल पर देश भर में आंदोलन, बंद और बवाल को देखते हुए राजद नेतृत्व का निष्कर्ष है कि इस मुद्दे ने केंद्र सरकार और भाजपा की खासी फजीहत कराई है। ऐसे में कभी उच्च जातियों के गरीबों के लिए 10 फीसद आरक्षण की आवाज बुलंद करने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक वारिस तेजस्वी यादव ने पिता के वादे को ठंडे बस्ते में डालकर आगे बढऩे का निर्णय लिया है।
यही कारण है कि पिछले हफ्ते पार्टी की बैठक में शीर्ष नेताओं को दुविधा से निकालते हुए तेजस्वी ने संविधान के प्रावधानों का सहारा लिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरक्षण के मुद्दे पर राजद संवैधानिक प्रावधानों से बाहर नहीं जाएगा। मतलब साफ कि लोकसभा चुनाव में राजद पिछड़ा कार्ड ही खेलेगा।
तीन साल पहले की राह पर हीं महागठबंधन के घटक दल
महागठबंधन के तीनों दलों की कोशिश उसी रास्ते पर जा रही है, जिसे तीन साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने राजद-जदयू और कांग्रेस के लिए तय किया था। जदयू के पास नीतीश कुमार के रूप में विकास पुरुष का चेहरा था। टिकट बंटवारे में कांग्रेस ने सवर्णों को तरजीह दी थी तो राजद ने कांग्रेस-जदयू से उल्टी राह पकड़ी थी। राजद ने अपने हिस्से की 101 सीटों में से 48 पर यादव और 16 पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। सबसे ज्यादा चर्चा लालू की उस रणनीति की हुई थी, जिसके तहत उन्होंने अगड़ी जाति को टिकट से लगभग वंचित रखा था। राजद में अगड़ी जाति के वरिष्ठ नेताओं के कोटे में सिर्फ दो राजपूत और एक ब्राह्मïण को प्रत्याशी बनाया गया था।
तब विपक्षी महागठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर जदयू, राजद व कांग्रेस ने राजग के खिलाफ जबरदस्त मोर्चाबंदी की थी। जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी खुद कमान संभालनी पड़ी थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जुबानी जंग लोगों की जुबान पर चढ़ गई थी। आज राजनीति ने करवट बदली है। जदयू अब राजग में है तो तब राजग में शामिल जीतनराम मांझी महागठबंधन का हिस्सा हैं। राजनीतिक दलों की परिस्थितियां बदलीं, लेकिन वे प्रशांत किशोर की रणनीति के अनुसार ही चलते दिख रहे हैं।
माय समीकरण के सहारे राजद
काफी जद्दोजहद और इंतजार के बाद प्रदेश कांग्रेस की नई बनी टीम को राजद की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। संकेत है कि राजद इस बार लोकसभा में भी माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे ही आगे बढ़ेगा। कांग्रेस ने अपनी नई टीम को राजद की सियासी तासीर के हिसाब से गढ़ा है और वोट बैंक के लिहाज से प्रभावी बनाने की कोशिश की है। माय समीकरण के जरिए लालू प्रसाद अपने बुरे दौर में भी राजद प्रत्याशियों को करीब 30 फीसद वोट के लिए आश्वस्त करते आए हैं।
सवर्ण मतदाताओं पर कांग्रेस की नजर
कांग्रेस की कोशिश सवर्ण मतदाताओं को राजग खेमे में जाने से रोकने की होगी। बिहार में 90 के दशक तक इस वर्ग का समर्थन कांग्रेस को प्राप्त था, किंतु पिछले तीन दशकों की राजनीति के चलते सवर्ण की नई पीढ़ी कांग्र्रेस से कतराने लगी है। अब दोबारा भरोसा जीतने की कोशिश है।
तेजस्वी ने राजद को दुविधा से निकाला
आरक्षण के सवाल पर देश भर में आंदोलन, बंद और बवाल को देखते हुए राजद नेतृत्व का निष्कर्ष है कि इस मुद्दे ने केंद्र सरकार और भाजपा की खासी फजीहत कराई है। ऐसे में कभी उच्च जातियों के गरीबों के लिए 10 फीसद आरक्षण की आवाज बुलंद करने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक वारिस तेजस्वी यादव ने पिता के वादे को ठंडे बस्ते में डालकर आगे बढऩे का निर्णय लिया है।
यही कारण है कि पिछले हफ्ते पार्टी की बैठक में शीर्ष नेताओं को दुविधा से निकालते हुए तेजस्वी ने संविधान के प्रावधानों का सहारा लिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरक्षण के मुद्दे पर राजद संवैधानिक प्रावधानों से बाहर नहीं जाएगा। मतलब साफ कि लोकसभा चुनाव में राजद पिछड़ा कार्ड ही खेलेगा।
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