Loksabha Election 2019 EXIT Poll: चुनाव नतीजे से बिहार में शुरू होंगे कई नए अध्याय
Loksabha Election 2019 EXIT Poll लोकसभा के चुनाव परिणाम का सभी राजनीतिक दल बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। बिहार में चुनाव परिणाम के बाद कई नए अध्याय शुरू हो सकते हैं। जानिए...
पटना [अरविंद शर्मा]। लोकसभा चुनाव के नतीजे से बिहार की सियासत में नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। सबसे गहरा असर महागठबंधन, लालू परिवार और राजद पर पड़ सकता है। चारा घोटाले में लालू के जेल जाने के बाद तेजस्वी यादव ने परिवार, पार्टी और गठबंधन के मोर्चे को अपने दम पर संभाल रखा है।
पिता के भाजपा विरोधी अभियान को आगे बढ़ाया है। जाहिर है, सफलता-असफलता का श्रेय उन्हीं के हिस्से में जाएगा। अपेक्षा से कम सीटें आने पर महागठबंधन में एकजुटता और सद्भावना बनाए रखने की चुनौती होगी। साथ ही, नए और छोटे सहयोगी दलों के अस्तित्व को बनाए-बचाए रखना भी कम मुश्किल काम नहीं होगा।
इसका दूसरा पक्ष भी है। परिणाम अगर अनुकूल आया तो महागठबंधन के लिए सारी चीजें सीधी और सहज हो जाएंगी। उल्टा होगा भाजपा-जदयू खेमे में, जो 2010 के बाद एक होकर पहला चुनाव लड़े हैं। बहरहाल, एग्जिट पोल के अनुमान से राजग अभी सुकून में है। विचलन है महागठबंधन में।
परिणाम जानने की बेसब्री बढ़ गई है। नतीजे से निराशा हुई तो 23 मई 2019 की तारीख को महागठबंधन के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है। मतगणना के रुझान आते ही उथल-पुथल प्रारंभ हो जाएगा। घटक दलों के सारे तीर तेजस्वी यादव की ओर होंगे। उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए जाएंगे।
चुनावों में जीत के बाद श्रेय लेने और हार के बाद ठीकरा फोड़ने की परंपरा रही है। जिन्हें पराजय मिलेगी, उनसे मौन रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। लालू की गैर-मौजूदगी का मलाल तो बड़ा होगा ही, वोट ट्रांसफर का सवाल भी छोटा नहीं होगा। क्षेत्रवार और जातिवार सहयोग-असहयोग की पोथी निकलेगी। किसने किसे ईमानदारी से साथ दिया। किसने चालें चलीं, सबका हिसाब शुरू हो जाएगा। इसके आगे जो भी होगा, उसकी अभी कल्पना ही की जा सकती है।
विरोधियों के तल्ख होंगे तेवर
महागठबंधन में सुकून का अंक न्यूनतम 15 माना जा रहा है। इससे कम सीटें आईं तो सिर्फ घटक दलों में ही नहीं, बल्कि राजद में भी आंतरिक तकरार के लिए खिड़की-दरवाजे खुले जाएंगे। आर्थिक आधार पर आरक्षण के मसले पर राजद में पहले से ही दो विचारधाराएं हैं।
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा के राज्यसभा में बयान को खारिज करते हुए वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह गरीब सवर्णों के आरक्षण की वकालत कर चुके हैं। परिणाम आने के बाद बोतल से जिन्न फिर बाहर निकल सकता है।
टिकट की प्रबल दावेदारी कर चुके अली अशरफ फातमी और पूर्व सांसद सीताराम यादव सरीखे नेता भी तेजस्वी की नीतियों-रणनीतियों के प्रखर आलोचक हो सकते हैं। शुरू तो वह भी हो सकते हैं जो अभी दल में बने हुए हैं, किंतु टिकट की दावेदारी कर रखी थी।
सफलता दिला सकती है सराहना
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा एग्जिट पोल के अनुमान को गलत बताकर खारिज कर चुके हैं। उन्होंने दावा किया है कि एग्जिट पोल के विपरीत परिणाम आ रहा है। मनोज का दावा अगर सही निकला और राजग की तुलना में महागठबंधन की ज्यादा सीटें आईं तो तेजस्वी की सराहना भी हो सकती है। ऐसे में तेजस्वी एवं उनके करीबी सलाहकारों का प्रभाव बढ़ सकता है।
करीब डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में राजद बेहद आक्रामक रणनीति अपना सकता है। महागठबंधन की संख्या अगर दो अंकों तक नहीं पहुंच पाई तो टीम तेजस्वी और उनकी कार्यप्रणाली से असंतुष्ट नेता पराजय को लालू प्रसाद से जोड़कर देख सकते हैं। उन्हें लगेगा कि लालू बाहर रहते तो ऐसी हार नहीं होती।
सबसे पहले मांझी होंगे मुखर
अनुमान के हिसाब से सीटें नहीं आने पर महागठबंधन के घटक दलों को संभालना संभव नहीं होगा। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी सबसे पहले मुखर हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें जानने वाले कहते हैं कि उनसे सब्र की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। रुझान आते ही शुरू हो सकते हैं।
रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का सब्र भी जवाब दे सकता है। विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी से भी सहनशीलता की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। ऐसे में राजद की विश्वसनीय सहयोगी कांग्रेस साबित हो सकती है, क्योंकि एग्जिट पोल के हिसाब से उसे दूसरे राज्यों में कोई खास सफलता मिलती नहीं दिख रही है। इसलिए राजद जैसे मजबूत-पुराने दोस्त को कांग्रेस बनाए रखना चाहेगी।
राजग का भी बिगड़ सकता है व्याकरण
एग्जिट पोल के अनुमान अगर गलत निकले तो बिहार में हार के लिए जिम्मेदार ठहराने का दौर शुरू हो जाएगा। सिर्फ विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष का सियासी व्याकरण भी बिगड़ सकता है। ऐसे हालात में भाजपा-जदयू-लोजपा के लिए वाणी-व्यवहार की परीक्षा की घड़ी होगी।
अनुमान अगर सही निकले तो राष्ट्रीय स्तर पर मिली सफलता से अभिभूत भाजपा बिहार में भी नई ऊर्जा महसूस कर सकती है। इसका असर दोनों दलों की स्वाभाविक दोस्ती पर भी पड़ना लाजिमी है, क्योंकि तब भाजपा की नजरों में जदयू का महत्व थोड़ा कम हो सकता है। भाजपा का एक धड़ा फ्रंटफुट पर खेलने के लिए मचल सकता है।
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