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मिशन 2019: महागठबंधन में बड़े-छोटे ही नहीं, ये मंझले व छोटे भाई भी बड़े दावेदार

तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। महागठबंधन के घटक छोटे दलों में तीसरे मोर्चे के लिए कवायद भी जारी है।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 07:46 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 10:56 PM (IST)
मिशन 2019: महागठबंधन में बड़े-छोटे ही नहीं, ये मंझले व छोटे भाई भी बड़े दावेदार
मिशन 2019: महागठबंधन में बड़े-छोटे ही नहीं, ये मंझले व छोटे भाई भी बड़े दावेदार

पटना [अरुण अशेष]। राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में बड़े-छोटे का रिश्ता पहले से तय है। तीसरे फरीक को भी परेशानी नहीं है। हालांकि, विपक्षी महागठबंधन में कांग्रेस की ओर से नए सिरे से पदक्रम बनाने की मांग उठ रही है। बड़े तो नहीं, छोटे कद के कांग्रेसी जोश में आ गए हैं। उनकी मानें तो तीन राज्यों की जीत के बाद सबसे पुरानी पार्टी को बड़े भाई का ओहदा मिल ही जाना चाहिए। महागठबंधन में बड़े-छोटे का नहीं, मंझले और छोटू का भी मामला है। मंझले-छोटू मिलकर बड़े-भाई का दर्जा मांग सकते हैं।

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लेकिन, बड़ा मसला परिवार के नए मेहमानों का है। सब के सब छोटे भाई का दर्जा चाह रहे हैं। राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने अभी सीटों की मांग नहीं की है। फिर भी उसके छह नेता चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। ये हैं- उपेंद्र कुशवाहा, रामकुमार शर्मा, दसई चौधरी, भूदेव चौधरी, नागमणि और उनकी धर्मपत्नी सुचित्रा सिन्हा। पार्टी को उन कुछ सिटिंग सांसदों का भी इंतजार है, जो बेटिकट होने की आशंका में अर्जी डाले हुए हैं। इन्हीं के बल पर रालोसपा कह रही है कि उसके पास स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे का भी विकल्प खुला हुआ है। पार्टी के प्रधान महासचिव राम बिहारी सिंह दोहराते हैं कि पार्टी तीसरे मोर्चे की संभावना पर भी विचार कर रही है।

जाहिर है, यह तीसरा मोर्चा महागठबंधन में छोटे भाई की हैसियत मांगेगा। यह बना तो इसमें शरद यादव शामिल रहेंगे। पूर्व मुख्‍यमंत्री जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

शरद यादव की पार्टी के लिए एक सीट रखी गई है। इससे उनका काम नहीं चलेगा। खुद लडेंग़े। अर्जुन राय, उदय नारायण चौधरी और अली अनवर भी दावेदार हैं। अनवर को पुराने शाहाबाद की कोई सीट चाहिए। एक संघर्ष रालोसपा और लोकतांत्रिक जनता दल के बीच भी है। सीतामढ़ी रालोसपा की जीती हुई सीट है। अर्जुन राय वहां के पूर्व सांसद हैं। जमुई पर रालोसपा के भूदेव चौधरी के साथ लोजद के उदय नारायण चौधरी की भी नजर है। हिंदुस्‍मानी अवाम मोर्चा (हम) का काम भी एकाध सीट से नहीं चलेगा। मांझी लडेंग़े तो महाचंद्र प्रसाद सिंह और वृशिण पटेल भी ताली बजाने के लिए पार्टी में नहीं पड़े हुए हैं। दोनों को टिकट चाहिए।

कुल मिलाकर इन दलों की ओर से 15 सीटों का हिसाब बनाया जा रहा है। इनमें तीन कम्युनिस्ट दलों के दावे शामिल नहीं हैं। मोटे तौर पर भाकपा और भाकपा माले चार-चार तथा माकपा दो सीटों पर तैयारी कर रही हैं। एक-एक भी दिया गया तो तीन का हिसाब बैठता है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को दी गई सीटों को जोड़ दें तो छोटे भाइयों के दावे का आंकड़ा 30 पर पहुंच जाएगा।

दावे अपनी जगह, राजद की सोच स्‍पष्‍ट है। पार्टी के मुख्‍य प्रवक्‍ता भाई वीरेंद्र कहते हैं कि बिहार में राजद हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहेगा। सबसे बड़ा जनाधार राजद के पास है। यह हरेक चुनाव में साबित होता रहा है। जहां तक घटक दलों दावे का सवाल है, आमने-सामने की बैठक में मामला सुलझ जाएगा।


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