मिशन 2019: लेफ्ट-सेक्युलर एलायंस बनाएंगे वाम दल, कन्हैया होंगे स्टार प्रचारक!
बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज हाेती जा रहीं हैं। इसके लिए वाम दलों ने भी रणनीति तय कर ली है। उन्होंने गेंद महागठबंधन के पाले में डाल दी है। पूरा मामला जानिए इस खबर में।
पटना [दीनानाथ साहनी]। लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन की गंभीर पहल तेज हो गयी है। वाम दलों ने महागठबंधन के पाले में 'लेफ्ट-सेक्युलर एलायंस' बनाने की गेंद डाल दी है। साथ ही यह अहसास कराने का प्रयास भी हो रहा है कि यदि भाजपा को हराना है तो प्रदेश में 'लेफ्ट पॉवर' को इग्नोर नहीं किया जा सकता।
हालांकि, वाम दलों का यह भी कहना है कि यदि किसी कारण से भाजपा के विरुद्ध यह गठजोड़ नहीं बनता है तब हम एकजुट होकर से लोकसभा चुनाव में साझा उम्मीदवार उतारेंगे। खास बात यह भी है कि बिहार में वाम दलों को ताकत देने के लिए कन्हैया जैसा स्टार प्रचारक भी उपलब्ध है। विदित हो कि भाकपा ने कन्हैया को बेगूसराय सीट से प्रत्यशी बनाने की बात कही है।
धर्मनिरपेक्ष एकता की पहल
भाकपा के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा कि वाम दल लोकसभा सीटों की शिनाख्त कर चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। पहले की तुलना में थोड़ा उदार रूख अपनाने की जरूरत है। वाम दलों के नेता आपस में मिल बैठकर तय किये हैं कि भाजपा को हराने के लिए वाम-धर्मनिरपेक्ष एकता की पहल करेंगे।
भाकपा माले के सचिव कुणाल कहते हैं कि भाजपा का करारी शिकस्त देने के लिए प्रदेश में कोई गठनबंधन बनता है तो उसमें वाम दल की ताकत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। सीटों के बंटवारे में वाम दलों की मजबूत हिस्सेदारी भी मिले।
माकपा के सचिव अवधेश कुमार के अनुसार हमने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। वाम दलों के बीच सीट शेयङ्क्षरग कोई मुद्दा नहीं है। असल में भाजपा को हराने के लिए प्रदेश में एक मजबूत गठबंधन आवश्यक है। हमारा प्रयास है कि वाम-धर्मनिरपेक्ष एक मजबूत गठबंधन बने।
18 सीटों पर चुनाव लडऩे की कवायद
2014 के लोकसभा चुनाव में वाम दल बिखरे हुए थे और उन्होंने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। जाहिर है, नतीजा किसी वाम दल के हक में नहीं हुआ था। लेकिन इस बार वाम दलों ने अभी से 2019 का चुनाव एकसाथ लडऩे का निर्णय लिया है। साथ ही इनके द्वारा वाम-धर्मनिरपेक्ष गठजोड़ के लिए भी गंभीर पहल हो रही है।
अभी 18 सीटों पर वाम दल चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। हालांकि वाम एकता की सबसे बड़ी बाधा है चुनावी टकराव जो पिछले विधानसभा चुनाव में भी दिखा था। यह देखा गया कि वाम दल एकता की बात करते हैं लेकिन, ऐन चुनाव के वक्त एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े कर देते हैं। मगर इस कमजोरी की पहचान सभी वाम दलों ने कर ली है।
नब्बे के दशक में चुनावी राजनीति में था दबदबा
नब्बे के दशक के मध्य तक लोकसभा एवं बिहार विधानसभा में वामपंथी दलों की दमदार मौजूदगी थी। सदन से लेकर सड़क तक लाल झंडा दिखता था। 1995 में वाम दलों के 36 विधायक सदन में थे और कई सांसद भी थे। 1972 के विधानसभा चुनाव में भाकपा मुख्य विपक्षी दल बनी थी।
1962 से लेकर 1996 तक हर लोकसभा चुनाव में भाकपा 4 से 8 सीटों पर जीतती रही है। लेकिन, वाम दलों का आधार लगातार खिसकता चला गया और वर्तमान लोकसभा में बिहार से वाम दल के एक भी सांसद नहीं रह गये।
वाम दलों ने भूमि सुधार, बटाइदारों को हक, ग्रामीण गरीबों को हक और शोषण-अत्याचार के खिलाफ अथक संघर्ष के बल पर अपने लिए जो जमीन तैयार की थी, उस पर मंडलवाद की राजनीति से उभरे दलों व नेताओं ने फसल बोयी। इसके चलते परंपरागत वाम दल संसदीय राजनीति की सीमाओं में सिमटते गये।
इन सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में वाम दल
- भाकपा माले: पाटलीपुत्र, जहानाबाद, आरा, काराकट, सिवान, बाल्मीकिनगर, दरभंगा एवं पूर्वी चंपारण।
- भाकपा: बेगूसराय, मधुबनी, खगडिय़ा, बांका, मोतिहारी, गया एवं जमुई।
- माकपा: नवादा, उजियारपुर, बेतिया तथा भागलपुर।