Move to Jagran APP

काफी दिनों बाद Facebook पर प्रकट हुए तेजस्वी यादव, दिल की बात से साधा निशाना

काफी अरसे के बाद तेजस्वी यादव ने फेसबुक पोस्ट के जरिए दिल की बात की और केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार पर जमकर निशाना साधा। जानिए क्या लिखा...

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 04:21 PM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2019 11:35 PM (IST)
काफी दिनों बाद Facebook पर प्रकट हुए तेजस्वी यादव, दिल की बात से साधा निशाना
काफी दिनों बाद Facebook पर प्रकट हुए तेजस्वी यादव, दिल की बात से साधा निशाना

पटना, जेएनएन। काफी दिनों बाद गुरुवार को बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपने फेसबुक अकाउंट से दिल की बात की। अपने पोस्ट में तेजस्वी ने लिखा कि जिस देश या राज्य की आबादी का जितना प्रतिशत गरीबी और हाशिए के अंतिम पायदान पर खड़ा होता है, उस राज्य के लिए एक संवेदनशील सरकार का होना उतना ही आवश्यक होता है।

loksabha election banner

हर नीतिगत निर्णय, सरकार व प्रशासन की चपलता या शिथिलता का सीधा-सीधा कमजोर वर्गों और गरीबों की सुरक्षा, आय और जीवन स्तर पर पड़ता है। बिहार एक ऐसा ही राज्य है, जिसकी बहुसंख्यक आबादी की आय राष्ट्रीय औसत से कम है। और यह तब है, जब लगभग पिछले 14 वर्षों से ऐसी सरकार रही है जो अपने आप को सुशासन या डबल इंजन की सरकार कहने से नहीं अघाती।

उद्योग धंधे, पूंजी निवेश, रोजगार के अवसर तो नदारद रहे, फिर भी स्वघोषित सुशासन! शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं व निर्धन नागरिकों का जीवन स्तर सहारा अफ्रीका से भी बदतर। कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं, ऊपर से भ्रष्टाचार, भू माफिया और महंगाई की मार सहते विकल्पहीन नागरिक! सुशासन का अर्थ कोई गुणात्मक सुधार नहीं, बल्कि उसके पहले के यानि आज से 25-30 वर्ष पूर्व के कार्यकाल का हौआ खड़ा करने और अपनी हर नाकामी पर उसे कोसने की आदत भर है।

एक सरकार का बर्ताव नागरिकों के लिए उसी प्रकार का अपेक्षित है जैसा एक मां का अपनी संतानों के लिए होता है। सदैव उनका दर्द समझना और उनके भविष्य व हितों के प्रति पूरी संवेदना से सजग होना। बिहार में चमकी बुखार की भेंट में प्रतिवर्ष की भांति फिर 200 से अधिक बच्चे चढ़ गए और सारी व्यवस्था, सरकार और प्रशासन खानापूर्ति कर कुछ सुधार करने का नहीं, बल्कि प्रकृति को दोष देने का प्रयास करता रहा। 

चरमराती व्यवस्था, मदमस्त अफसर व सरकार और दोनों के बोझ तले कराहती जनता! इसी तरह लू की चपेट में भी आकर 200 से अधिक नागरिकों ने अपने प्राण गंवा दिए। सरकारी अस्पताल बेहतर इलाज देने तक की स्थिति में नहीं। हर साल राज्य में कुछ क्षेत्र सूखाग्रस्त रह जाते हैं और कुछ बाढ़ की चपेट में आकर आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देते हैं।

दोनों ही स्थिति में इसे राज्य का आम नागरिक और गरीब किसान अकेले झेलता है। इन प्राकृतिक आपदाओं से निबटने के लिए सरकार हर बार पूरी तरह से असमर्थ और उदासीन दिखती है। अगर प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से सरकार गरीबों को बचा ही नहीं सकती, तो सरकार चुनने का भला क्या उद्देश्य रह जाता है?

प्राकृतिक आपदाएं जो बर्बादी का मंजर सरकारी लापरवाही की देख-रेख में असहाय गरीबों पर थोपती है वो तो एक तरफ सरकारी भ्रष्टाचार, अफसरशाही, घोटालेबाज़ी जो अत्याचार कर रही है, उसकी बात ना ही की जाए तो बेहतर। पिछले कुछ वर्षों में 40 से अधिक घोटाले, बालिका गृहों में मासूम बच्चियों से सरकारी संरक्षण में हैवानियत, हर जिम्मेदारी से भागती और चारों खाने चित्त होती योजनाओं पर पीठ थपथपाती सरकार। 

ऐसे प्रदेश में नागरिक किस आधार पर आशावादी होकर भविष्य की ओर सकारात्मकता से देख सकते हैं? यह नागरिकों को खुद सोचना होगा। सृजन घोटाले या बालिका गृहकांड के अभियुक्तों पर आज तक बिहार पुलिस या CBI हाथ नहीं डाल पाई है, क्योंकि सत्तारूढ़ दलों के कई बड़े नाम इन कांडों में सम्मिलित है। यह सब बिहार की जनता आंख मूंदे सह रही है। 

आम जनता को भी चाहिए कि वो विज्ञापन के बदले एडिट की हुई खबरों के प्रोपगैंडा को सत्य ना मानकर अपने दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली अपनी मूल समस्याओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, विकास, समता, समभाव इत्यादि को ही ध्यान में रखकर सरकार का चयन करे। अगर हम चुनावों में हिंदू-मुसलमान और छद्म राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्राथमिकता देंगे तो कोई क्यों हमारी समस्याओं का निराकरण करने की जरूरत महसूस करेगा?

विगत 5 साल तक किसान कभी समर्थन मूल्य तो कभी खाद, बीज, उचित हर्जाने के लिए कभी मार्च, तो कभी आंदोलन करते रहे तो कभी सड़कों पर सरकारी उदासीनता से निराश दूध, अनाज, फल, सब्जियां फेंकते रहे लेकिन चुनावों के दिन किसानों के खातों में कुछ नाम मात्र यानि 17 रु प्रतिदिन के डालकर केंद्र सरकार ने प्रलोभन देने की चाल चली। 

अगले 5 साल में अगर कर्ज़ के तले आत्महत्या करने के लिए कई किसान मजबूर हुए तो उसका दोषी कौन होगा? जब तक देश को समझ आएगा कि रुपये 6000/वर्ष किसी पार्टी, सरकार या व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि उन्हीं का पैसा, अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं की जेब से निकाल कर उन्हें उपकार बता कर दिया जा रहा है तब तक उनके जीवन के 5 और वर्ष खत्म हो चुके होंगे।

सरकार की असली दरियादिली किसानों पर नहीं, बल्कि उन उद्योगपतियों पर फूटती है जिनके अरबों रुपये का कर्ज यह सरकार बिना एक पल भी सोचे माफ कर देती है। सरकार की प्राथमिकता गरीब नहीं, वे धन्ना सेठ हैं जिनके काले धन एर इलेक्ट्रोल बांड से ये चुनाव लड़ते हैं और उन्हीं को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे 5 साल नागरिकों का खून चूसते हैं।

तथाकथित सुशासन की संवेदनहीन सरकार नाकामियों और घोटालों की सरकार है, जो अपनी हर नाकामी के लिए अपने से पहले की सरकार को दोषी ठहराती है, उसी पर ठीकरा फोड़ती है। सुशासन मतलब कोई सकारात्मक बदलाव या कोई गुणात्मक सुधार नहीं, बल्कि तथाकथित जंगलराज का अनर्गल दोषारोपण है।

अगर आंकड़ों की बात करें तो आंकड़े साफ साफ दिखाते हैं कि कानून व्यवस्था पिछले 13-14 वर्षों में बद से बदतर होती चली गयी। अर्थव्यवस्था की बात हो तो 90 के दशक से लागू हुए उदारीकरण की नीति के कारण 2005 के बाद पूरे देश के सकल घरेलू उत्पाद और वृद्धि दर में भारी उछाल आने लगा केंद्र की आय, राज्यों की आय और राज्यों को केंद्र से मिलने वाली मदद में 90 के दशक के मुकाबले भारी उछाल आया और जिसका नतीजा पूरे देश ने देखा। 

अगर बिहार में सचमुच 2005 के बाद सुशासन का आगमन हुआ तो नीतीश जी बताएँ कि किस मानक में बिहार आज किस राज्य से आगे है? प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर, रोज़गार, पलायन- किसमें बिहार किस राज्य से आगे है? हर मानक में हर राज्य से पीछे, फिर भी सुशासन? 14 साल के तथाकथित सुशासन और डबल इंजन वाली सरकार के बाद अब तो और भी फिसड्डी राज्य हो गया है।

बिहार की 60 फीसदी आबादी युवा है। अब बिहार को रूढ़िवादी नहीं, बल्कि उनके सपनों और आकांक्षाओं से कदमताल करनेवाली नयी सरकार की जरूरत है।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.