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लालू की कॉल और नीतीश के गुस्से ने बिहार की राजनीति को किया गरम, हार को नहीं पचा पा रहा महागठबंधन

सत्तारूढ़ की ताकत तौलने के लिए ही महागठबंधन ने 51 वर्ष तक चली परंपरा तोड़ डाली और अपना प्रत्याशी उतार दिया। जोड़तोड़ के प्रयास शुरू हुए। उसी में एक कॉल पीरपैंती से भाजपा विधायक ललन पासवान को आई कि अब्सेंट हो जाओ हमारा अध्यक्ष होगा तो देख लेंगे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 05:33 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 07:07 PM (IST)
लालू की कॉल और नीतीश के गुस्से ने बिहार की राजनीति को किया गरम, हार को नहीं पचा पा रहा महागठबंधन
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की फाइल फोटो

[आलोक मिश्र]। बिहार में चुनावी रण शांत होने के बाद भी राजनीतिक रण शांत नहीं हुआ है। विधायकों की शपथ से लेकर विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव और राज्यपाल का अभिभाषण तक हंगामे के बीच गुजरा। उस पर लालू की कथित कॉल ने माहौल को और गरमा दिया है। गर्मी बता रही है कि महागठबंधन को हार पच नहीं रही है। पांच दिनी सत्र समाप्त हो गया है, लेकिन मर्यादा ताक पर रख बोले गए शब्द अभी भी गूंज रहे हैं और बता रहे हैं कि आगे और कड़वाहट उगलेंगे। सदन में शुक्रवार को तेजस्वी के कड़वे बोल पर नीतीश का फट पड़ना इसकी बानगी है। भाजपा ने भी अपने विधायक को आई एक कॉल लालू की बता अपनी चोट कर दी है। इससे केली बंगले में सजा काट रहे लालू से न केवल वह छिना, बल्कि मुकदमा भी लद गया।

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इस समय चल रही सारी गतिविधियों के पीछे 122 का वह मैजिक फिगर है, जिससे महागठबंधन केवल सात सीट कम है, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी के पांच विधायक भी पाले में माने जा सकते हैं। विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में साथ देकर उन्होंने इसे साबित भी कर दिया है। इसलिए कभी साथ रहीं और अब एनडीए में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) तथा विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) की आठ सीटें महत्वपूर्ण हैं।

लालू की कॉल को राजद ने बताया मिमिक्री, भाजपा ने बनाया मुद्दा

सत्तारूढ़ की ताकत तौलने के लिए ही महागठबंधन ने 51 वर्ष तक चली परंपरा तोड़ डाली और अपना प्रत्याशी उतार दिया। जोड़तोड़ के प्रयास शुरू हुए। उसी में एक कॉल पीरपैंती से भाजपा विधायक ललन पासवान को आई कि अब्सेंट हो जाओ, हमारा अध्यक्ष होगा तो देख लेंगे। कॉल लालू की बताई गई और नंबर उनके सेवादार का। ऑडियो वायरल हुआ, आवाज को लालू की मानने से इन्कार कर राजद ने इसे मिमिक्री बताया, लेकिन भाजपा इसे मुद्दा बनाकर चढ़ गई है। विधायक ने निगरानी थाने में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और प्रलोभन देने का आरोप लगाया है। झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई कि लालू जेल से नीतीश सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रभाव यह हुआ कि कोरोना के कारण पांच अगस्त को मिले केली बंगले (रिम्स के निदेशक का बंगला) से लालू फिर पेइंग वार्ड आ गए।

सहनी बोले, उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का दिया गया प्रलोभन

भाजपा की इस चोट को विपक्ष के आरोप पर शिक्षा मंत्री मेवालाल के इस्तीफे का जवाब माना जा रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मेवालाल को मंत्री बनाए जाने पर तेजस्वी ने जबरदस्त विरोध किया था। मंत्री को हटाने पर सरकार की काफी किरकरी हुई थी। अब लालू का फोन भाजपा के हाथ में है। बहरहाल जब मामले ने तूल पकड़ा तो हम के जीतनराम मांझी और वीआइपी के मुकेश सहनी भी सामने आकर कह रहे हैं कि समर्थन के लिए हमारे पास भी फोन आया था। मुकेश सहनी के अनुसार उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का प्रलोभन दिया गया, लेकिन मल्लाह का बच्चा होने के कारण जाल में नहीं फंसे। राजद प्रवक्ता भाई वीरेंद्र इन्हें पाला बदलू बता, कहते हैं कि मंत्री पद लेने के बाद क्यों बता रहे? बताना तो तब चाहिए था, जब फोन आया था। अब हकीकत चाहे जो हो, लेकिन इनके आठ वोट इनके बयानों को मजबूत बनाते हैं। सत्ता की चाभी इन्हीं दोनों के पास है इसलिए एनडीए और महागठबंधन, दोनों के लिए ये महत्वपूर्ण हैं।

बिहार विधानसभा में हुआ खूब हंगामा

इस समय सदन के भीतर और बाहर दोनों ही जगह तेजस्वी बहुत मुखर हैं। विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव में संख्या बल में कम होने के बावजूद खूब हंगामा मचाया। गिनती में पिछड़ने के बाद गुप्त मतदान को लेकर भिड़े रहे। नीतीश और मंत्री अशोक चौधरी तथा मुकेश सहनी की सदन में मौजूदगी पर एतराज जताया। उनके विधायक वेल में भी आ गए, लेकिन 126 के मुकाबले 114 का आंकड़ा कितनी देर ठहरता। तेजस्वी को थोड़ी देर में हाथ पकड़ कर भाजपा के विजय सिन्हा को आसन पर बैठाना पड़ा। इसी तरह राज्यपाल के अभिभाषण के समय भी सरकार की उपलब्धियों पर विपक्ष हूट करता रहा। अंतिम दिन शुक्रवार को तेजस्वी ने जोश में नीतीश के लिए ऐसे शब्द बोल दिए जिससे नीतीश भी आपा खो बैठे। उन्होंने कहा कि यह मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है इसलिए मैं मौन रहता हूं। उन्होंने कार्रवाई की मांग तक कर डाली। अंतिम दिन इस तरह का समापन देख लगने लगा है कि बात अभी बहुत आगे बढ़ने वाली है। 

[लेखक बिहार के स्थानीय संपादक हैं] 


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