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राजनीति की कठिन डगर पर लालू की विरासत, कल होगा सजा का एलान

तीन जनवरी को चारा घोटाला मामले में जेल में बंद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की सजा का एलान होगा। इसके साथ ही लालू के उत्तराधिकारियों की परेशानियां भी तय हो जाएंगी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 02 Jan 2018 01:49 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jan 2018 06:48 PM (IST)
राजनीति की कठिन डगर पर लालू की विरासत, कल होगा सजा का एलान
राजनीति की कठिन डगर पर लालू की विरासत, कल होगा सजा का एलान

पटना [अरविंद शर्मा]। चारा घोटाले में तीन जनवरी को लालू प्रसाद की सजा के एलान के साथ ही तय हो जाएगा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव किस तरह के झंझावात में फंसने जा रहे हैं।

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साथ ही, सजा का स्वरूप यह भी तय करेगा कि लालू के उत्तराधिकारियों की राह में क्या-क्या मुसीबतें आने वाली हैं और लालू के बिना तेजस्वी राजनीति में खुद को स्थापित करने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं। तेजस्वी की कोशिशों के प्रति राजद के अन्य नेताओं के समर्थन-समर्पण की भी परख होगी। 

लालू की अनुपस्थिति में पार्टी और परिवार का नेतृत्व अभी से उत्तराधिकारियों के हवाले है। ऐसे में तेजस्वी एवं तेज प्रताप की राह में संगठन, सड़क और संवैधानिक मोर्चे पर बाधाएं आ सकती हैं।

लालू के 10वीं बार राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद से संगठन के विस्तार का काम अभी रुका पड़ा है। रेलवे होटल टेंडर घोटाला और आय से अधिक संपत्ति मामले में परिवार पर जांच एजेंसियों की तलवार लटकी हुई है। 

ऐसे में लालू प्रसाद को अगर अदालत से राहत नहीं मिली और लंबे समय तक उन्हें जेल में रहना पड़ा तो तेजस्वी को अकेले ही इन सारी चुनौतियों से रूबरू होना पड़ेगा। इसी बीच, सीबीआइ अदालत की सजा से असहमत होने पर जनता में न्याय रथ लेकर जाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।

तेजस्वी ने एलान कर रखा है कि न्याय नहीं मिलने पर हाईकोर्ट में अपील और जनता से न्याय की फरियाद का अभियान दोनों साथ-साथ चलेगा।

मकर संक्रांति के बाद तेजस्वी के नेतृत्व में राजद का पूरा काफिला बिहार की सड़कों पर नजर आने वाला है। राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी को इसमें कुछ भी किंतु-परंतु नहीं दिखता। उन्हें तेजस्वी में लालू प्रसाद की छवि दिखती है और वे सारी सियासी आशंकाओं को खारिज करते हैं। 

हालांकि शिवानंद से इतर पार्टी में शीर्ष स्तर पर कुछ ऐसे भी वरिष्ठ नेता हैं जिन्हें तेजस्वी में अभी सिर्फ जोश नजर आता है। ऐसे नेताओं की अपेक्षा है कि नेता प्रतिपक्ष थोड़ा होश से भी काम लें तो लालू के बिना भी पार्टी की कमान बेहतर संभाल सकते हैं। 

लालू के आधार पर प्रहार 

बिहार में लालू प्रसाद ने तीन दशकों के प्रयास से जो आधार तैयार किया है, वह तेजस्वी के हाथों में कितना सुरक्षित रहेगा, इसके कयास अभी से लगाए जा रहे हैं। लालू की अनुपस्थिति में भाजपा और जदयू जैसे मजबूत सियासी दल राजद के आधार पर प्रहार करने को तैयार हैं।

ऐसा पहली बार नहीं होगा। विरोधियों को इसमें कामयाबी भी मिल चुकी है। वर्ष 2005 से लालू के चुनावी प्रदर्शन में आई गिरावट इसका प्रमाण है। 1995 में 167 सीटों पर अकेले जीत दर्ज करने वाला राजद 2010 में 22 सीटों पर सिमट गया था।

हालांकि राजद समर्थक इस बात से सुकून महसूस कर सकते हैं कि तब तेजस्वी और तेज प्रताप जैसे लालू के उत्तराधिकारी नहीं थे। 


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