कन्नौज का केवड़ा मनेर के लड्डू को बनाता है खास, मुगल बादशाह से जुड़े हैं तार, जानें Patna News
राजधानी में लड्डू का जिक्र हो और मनेर शरीफ की बात न हो एेसा कैसे मुमकिन है। पटना से 30 किलोमीटर दूर मनेरशरीफ में मिलने वाले इस लड्डू के बनने का क्या है इतिहास जानें।
By Edited By: Published: Sat, 31 Aug 2019 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 31 Aug 2019 08:16 AM (IST)
पटना, जेएनएन। राजधानी और आसपास के शहरों की कई मिठाइयां भी अपने स्वाद के लिए मशहूर हैं। ऐसी ही मिठाई है मनेरशरीफ का लड्डू। पटना से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मनेरशरीफ कस्बे का लड्डू स्थानीय लोगों की आवाजाही के साथ अपने देश में ही नहीं दुनिया के दूसरे शहरों में भी पहुंच बना चुका है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि मुगल बादशाह शाह आलम दोने (पत्तियों से बना थैला) में यहां से लड्डू लेकर दिल्ली गए थे। इसके बाद शाह आलम दिल्ली के मिठाई कारीगरों को लेकर मनेर आए थे। इन कारीगरों ने स्थानीय लोगों को लड्डू तैयार करना बताया था। बाद में यहां के कारीगर इतने निपुण हो गए कि यहां का लड्डू मनेर के लड्डू के नाम से मशहूर हो गया। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने भी लड्डू का भरपूर स्वाद लिया था।
तहजीब और विरासत को संभाल कर रखा है मनेर
तहजीब एवं विरासत के साथ मनेर एक और चीज को संभाल कर रखा है। वो है मिठास। मिठास का मतलब लड्डू। बुलाकी साव से शुरू हुए लड्डू का सफर अब दूर-दूर तक ख्याति बटोर चुका है। मनेर स्वीट्स का नाम इसके लिए मशहूर है। दुकान के मालिक मनोज गुप्ता की मानें तो चना को पीसकर बेसन तैयार किया जाता है और इसके बाद लड्डू के दाने बनाए जाते हैं। सुगंध के लिए कन्नौज का केवड़ा का प्रयोग किया जाता है। इसके निर्माण में काफी शुद्धता बरती जाती है।
शुद्धता के साथ निर्माण आज भी तीसरी पीढ़ी संभाल रही है। मनेर स्वीट्स के मालिक ने कहा कि मनेर के बुलाकी साह फकीरा साह ने लड्डू का निर्माण कार्य आरंभ किया था। उन लोगों के देहांत के बाद सुखदेव साह ने अपने हाथो से इसे बनाने का काम आरंभ किया। लड्डू देश के साथ विदेशों में भी सौगात के रूप में भेजा जाता है, जो लोग मनेरशरीफ दरगाह का दीदार करने आते हैं वो यहां का प्रसिद्ध मिठाई जरूर लेकर जाता है। सौगात के तौर पर मिट्टी के हांडी में इसे सुरक्षित ढंग से पैक कर लोगों को दिया जाता है।
अन्य शहरों में भी मनेर के लड्डू का ब्रांच खुला है। समय के साथ महंगाई को देखते हुए इसकी कीमत में वृद्धि होते रहती है। घी से बने लड्डू की कीमत 540 रुपये प्रति किलो और रिफाइन तेल में बने लड्डू की कीमत 340 रुपये प्रति किलो है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि मुगल बादशाह शाह आलम दोने (पत्तियों से बना थैला) में यहां से लड्डू लेकर दिल्ली गए थे। इसके बाद शाह आलम दिल्ली के मिठाई कारीगरों को लेकर मनेर आए थे। इन कारीगरों ने स्थानीय लोगों को लड्डू तैयार करना बताया था। बाद में यहां के कारीगर इतने निपुण हो गए कि यहां का लड्डू मनेर के लड्डू के नाम से मशहूर हो गया। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने भी लड्डू का भरपूर स्वाद लिया था।
तहजीब और विरासत को संभाल कर रखा है मनेर
तहजीब एवं विरासत के साथ मनेर एक और चीज को संभाल कर रखा है। वो है मिठास। मिठास का मतलब लड्डू। बुलाकी साव से शुरू हुए लड्डू का सफर अब दूर-दूर तक ख्याति बटोर चुका है। मनेर स्वीट्स का नाम इसके लिए मशहूर है। दुकान के मालिक मनोज गुप्ता की मानें तो चना को पीसकर बेसन तैयार किया जाता है और इसके बाद लड्डू के दाने बनाए जाते हैं। सुगंध के लिए कन्नौज का केवड़ा का प्रयोग किया जाता है। इसके निर्माण में काफी शुद्धता बरती जाती है।
शुद्धता के साथ निर्माण आज भी तीसरी पीढ़ी संभाल रही है। मनेर स्वीट्स के मालिक ने कहा कि मनेर के बुलाकी साह फकीरा साह ने लड्डू का निर्माण कार्य आरंभ किया था। उन लोगों के देहांत के बाद सुखदेव साह ने अपने हाथो से इसे बनाने का काम आरंभ किया। लड्डू देश के साथ विदेशों में भी सौगात के रूप में भेजा जाता है, जो लोग मनेरशरीफ दरगाह का दीदार करने आते हैं वो यहां का प्रसिद्ध मिठाई जरूर लेकर जाता है। सौगात के तौर पर मिट्टी के हांडी में इसे सुरक्षित ढंग से पैक कर लोगों को दिया जाता है।
अन्य शहरों में भी मनेर के लड्डू का ब्रांच खुला है। समय के साथ महंगाई को देखते हुए इसकी कीमत में वृद्धि होते रहती है। घी से बने लड्डू की कीमत 540 रुपये प्रति किलो और रिफाइन तेल में बने लड्डू की कीमत 340 रुपये प्रति किलो है।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें