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Bihar Lockdown: बच्‍चों पर से उतर रहा कोटा का बुखार, पटना के कोचिंग संस्थान हो रहे तैयार

Bihar Lockdown लॉकडाउन की वजह से परेशान हुए कोटा रहकर पढऩे वाले छात्रों के अभिभावक अब पटना में ही विकल्प की तलाश कर रहे हैं। पटना के प्रमुख कोचिंग संस्थान भी इसके लिए तैयार हैं।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 09:24 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 08:45 AM (IST)
Bihar Lockdown: बच्‍चों पर से उतर रहा कोटा का बुखार, पटना के कोचिंग संस्थान हो रहे तैयार
Bihar Lockdown: बच्‍चों पर से उतर रहा कोटा का बुखार, पटना के कोचिंग संस्थान हो रहे तैयार

पटना, दीनानाथ साहनी। लॉकडाउन के दौरान कोटा में पढऩे वाले बिहार के बच्चे घर लौटने के लिए तरसते रहे। कुछ धरने पर बैठे। भावुक अपील की। ट्रेन पर चढ़े तो लगा कि एवरेस्ट फतह कर लिया है। अब फिर कोटा लौटेंगे क्या...? इस सवाल के जवाब में वह पटना में ही कोटा जैसे संस्थान की मांग करते हैं। तैयारियां चल भी रही हैं। पटना के प्रमुख कोचिंग संस्थानों के लिए यह बड़ा अवसर है। वह क्लास रूम, फैकल्टी और कोर्स कोटा की तरह ही करने की तैयारी में हैं। कैंपेन भी शुरू करने जा रहे। पटना में होगी कोटा जैसी पढ़ाई...। 

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प्रतिवर्ष 40 हजार से ज्यादा विद्यार्थी जाते हैं कोटा 

देश के प्रतिष्ठित और प्रमुख शिक्षण संस्थानों में पढऩे की उम्मीद में बिहार से प्रत्येक वर्ष डेढ़ से दो लाख विद्यार्थी अन्य राज्यों में जाते हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल, तकनीकी, प्रबंधन और कानून की पढ़ाई वाले संस्थानों में इनका नामांकन होता है। इसके अलावा मेडिकल और इंजीनियरिंग के प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले के लिए तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों में फाउंडेशन और टारगेट कोर्स करने के लिए बिहार के विभिन्न जिलों से प्रतिवर्ष 45-50 हजार विद्यार्थी राजस्थान के कोटा जाते हैं।

दो वर्ष वहीं रहते हैं 

मैट्रिक की परीक्षा के बाद वह दो वर्ष वहीं रहते हैं। कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने पर दो साल के 'फाउंडेशन कोर्स' पर प्रति छात्र ढाई से तीन लाख रुपये खर्च आता है, जबकि एक छात्र के भोजन एवं आवास पर 8 से 10 हजार रुपये प्रतिमाह अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं। कोटा में एक साल का 'टारगेट कोर्स' भी कराया जाता है, जिस प्रति छात्र 1 लाख से 1.50 लाख रुपये तक लिए जाते हैं। प्रति छात्र प्रति वर्ष दो लाख रुपये की दर से देखें तो 40 हजार विद्यार्थियों के अभिभावक लगभग 800 करोड़ रुपये कोटा भेजते हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद कोटा और बिहार के बीच के इस लेनदेन में निश्चित तौर पर कमी आएगी। बिहार के अभिभावक किसी कीमत पर अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का सपना तो देखते हैं, लेकिन 'जान और असुरक्षित माहौल का खतराÓ मोलकर वह शायद ही अब ऐसा सोचें। 

कोटा में 80 फीसद फैकल्टी बिहार के  

कोटा में पढऩे वाले दो-तिहाई बच्चे और 80 फीसद फैकल्टी बिहार के ही होते हैं। पटना साइंस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. राधाकांत प्रसाद कहते हैं कि कोचिंग सेंटर का जन्म पटना से ही हुआ है। कोटा को पछाडऩे की पूरी क्षमता पटना में है। इसके लिए शिक्षक, सरकार और समाज को अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन करना होगा। 

अब ब्रेक होगा कोटा ट्रेंड

पटना के एक प्रमुख कोचिंग संस्थान मेंटर्स एडुसर्व के निदेशक आनंद जायसवाल कहते हैं कि कोटा ट्रेंड अब ब्रेक होगा। क्वालिटी एजुकेशन में पटना के कोचिंग सेंटर दिल्ली, कोटा और हैदराबाद से कमतर नहीं हैं। यहीं के शिक्षक कोटा और हैदाराबाद में पढ़ाते हैं। समाज और सरकार का प्रोत्साहन मिला तो कोटा का स्थान लेने में पटना सक्षम है। यहां बच्चों को कम फीस में क्वालिटी एजुकेशन के साथ-साथ अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। 

शिक्षक तैयार, सरकार दे प्रोत्साहन 

गोल इंस्टीट्यूट के निदेशक विपिन कुमार सिंह कहते हैं, पटना के शिक्षक कोटा से बेहतर माहौल देने में सक्षम हैं। राज्य की बड़ी राशि कोटा जाने से बचे इसके लिए सरकार को भी स्थानीय कोचिंग सेंटर और शिक्षकों को प्रोत्साहित करना होगा। कोटा में पढऩे और पढ़ाने वाल दोनों बिहार के होते हैं। अब पटना में ढांचागत सुविधाएं भी पहले से बेहतर हो रही हैं। 

कोटा से आधी फीस पर बेहतर कोचिंग

आइआइटीयंस तपस्या के पंकज कपाडिय़ा कहते हैं, कोटा जाने वाले सभी बच्चे सफल नहीं हो जाते हैं। पटना में वहां से आधी फीस में बेहतर कोचिंग की व्यवस्था है। कुछ खामियां हैं, जिन्हें सभी को मिलकर दूर करना होगा। इससे राज्य को हर साल अरबों रुपये की बचत होगी। 

यह है बिहार का कोटा कनेक्शन

  • मेडिकल और इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए हर वर्ष 40 से 50 हजार विद्यार्थी जाते हैं कोटा 
  • कोटा में पढऩे वाले दो-तिहाई बच्चे और 80 फीसद फैकल्टी बिहार के ही होते हैं 
  • एक छात्र पर फीस और बोर्डिंग में प्रति वर्ष औसतन दो लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं अभिभावकों को 

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