कुर्सी पर कुशवाहा का दांव, नीतीश और उपेंद्र का-ये रिश्ता क्या कहलाता है...
उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि नीतीश कुमार का अब सत्ता से मोह भंग हो गया है और अब वो मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। कुशवाहा के इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं।
पटना [काजल]। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा आजकल अपने बयानों को लेकर बिहार की राजनीति के केंद्र बने हुए हैं। उनकी बातों का क्या मतलब निकाला जाए, ये किसी की समझ में नहीं आ रहा है। नीतीश कुमार और उनका रिश्ता सभी जानते हैं, लेकिन उनका यह बयान कि नीतीश कुमार अब सीएम नहीं बनना चाहते, उनकी महत्वाकांक्षा को भी दर्शाता है।
बुधवार को एक कार्यक्रम में कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार अब मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते, सत्ता से उनका मन तृप्त हो चुका है। इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। एक या तो उनकी खुद की सीएम बनने की इच्छा है या वो नीतीश कुमार के बढ़ते कद और भाजपा से उनकी सीटों को लेकर हुई डील से बौखलाहट में है। नीतीश कुमार ने कभी ये जाहिर नहीं किया है और जदयू ने कुशवाहा के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कुशवाहा ने नीतीश कुमार बताया बड़ा भाई, कहा- हैं सत्ता की ढलान पर
कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सत्ता की ढलान पर हैं। खुद नीतीश कुमार ने उन्हें कहा है कि 15 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अौर कितने दिन रहेंगे? नीतीश कुमार के मन की इच्छा पूरी हो गई है। सत्ता से उनका मन तृप्त हो चुका है और किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विपरीत कुर्सी पर नहीं रखा जा सकता।
रालोसपा अध्यक्ष ने कई बार ये जता दिया है कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं, उनमें क्षमता है। इसके लिए उन्होंने कहा कि जनता के बीच जाना पड़ता है, काम करना पड़ता है। अब नए लोगों को भी मौका मिलना चाहिए। उनका ये बयान कि नीतीश कुमार अब सेचुरेटेड हो गए हैं, कई मायने में अहम है।
कुशवाहा के इस शिगूफे का जदयू ने करारा जवाब देते हुए कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और रहेंगे। जिसे जो कहना हो कहता रहे। जदयू नेता माहेश्वर हजारी ने कहा कि नीतीश कुमार बिहार की जरूरत हैं और उनके काम के लिए जनता उन्हें जानती है।
नीतीश का कद है बड़ा, सुशासन की साफ-सुथरी छवि है पहचान
नीतीश कुमार अपने बेहतर काम और सुशासन के लिए जाने जाते हैं। उनकी साफ-सुथरी छवि उनकी पहचान है। शराबबंदी का एेतिहासिक फैसला लेकर उन्होंने देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है। सामाजिक सुधार के काम हों या बिहार में भ्रष्टाचार और अपराध के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति, वो अपने फैसले सोच-समझकर जनहित में लेते हैं। खासकर, नीतीश कुमार की सरकार की सरकार में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है। उनके इन कार्यों की वजह से ही बिहार की जनता अपना मुख्यमंत्री नीतीश को चुनती आई है।
एनडीए से मिली तीन सीटें, तीनों पर दर्ज की जीत
बिहार के काराकट से सांसद उपेंद्र कुशवाहा मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। कुशवाहा ने अपनी रालोसपा की स्थापना 3 मार्च 2013 में की और अपनी पार्टी के नाम और झंडे का अनावरण बड़े प्रभावशाली ढंग से गांधी मैदान में एक ऐतिहासिक रैली से किया था।
उसके बाद फरवरी 2014 को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी एनडीए में शामिल हो गई। इतने कम समय में बनी रालोसपा को 2014 के आम चुनाव में बिहार से तीन सीटें, सीतामढ़ी, काराकट और जहानाबाद मिलीं, जिसपर पार्टी ने चुनाव लड़ा और मोदी लहर पर सवार हो तीनों सीटों पर जीत हासिल की।
नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बनते-बिगड़ते संबंध
उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के करीबी सहयोगियों में से एक कहा जाता था। ऐसा माना जाता था कि नीतीश कुमार ने ही कुशवाहा के 2004 में बिहार विधान सभा का नेता प्रतिपक्ष बनने पर समर्थन दिया, लेकिन बाद में कुशवाहा और नीतीश के संबंधों में खटास आ गई।
इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा को जदयू और विशेष रूप से नीतीश कुमार के साथ समस्या होने लगी। तब पहली बार वे पार्टी से अलग हो कर नेशनल कांग्रेस पार्टी, राकांपा में शामिल हो गए। राकांपा के बिहार प्रमुख के तौर पर भी कुशवाहा का कार्यकाल सफल नहीं रहा और वे फिर जदयू में शामिल हुए।
उसके बाद कुशवाहा के राजनीतिक कॅरियर में जबरदस्त उछाल आया। जुलाई 2010 में वे राज्य सभा के सदस्य बनने के साथ ही अगस्त में कृषि समिति के सदस्य भी बने। इस बीच जदयू के साथ कुशवाहा अपने संबंधों को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाए और फिर से पार्टी छोड़ दी। कुशवाहा ने राज्य में अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों के समर्थन से अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली।
कभी कुशवाहा का सामान सरकारी आवास से बाहर फेंक दिया गया था
कुशवाहा को पहली बार नीतीश ने विधायक और फिर विधान सभा में विपक्ष का नेता बनवाया था। लेकिन 2005 में चुनाव हारने के बाद उपेंद्र कुशवाहा के तेवर बदलने लगे और उन्होंने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कहते हैं कि इसका खामियाजा यह हुआ कि उपेंद्र कुशवाहा के सामान सरकारी आवास से बाहर फेंक दिये गये।
कोईरी वोट बैंक पर है कुशवाहा की मजबूत पकड़
कुशवाहा की बिहार में कोईरी वोट बैंक पर वैसी ही पकड़ है जैसी कि लालू प्रसाद यादव की यादव वोट बैंक और नीतीश कुमार की कुर्मी वोट बैंक पर है। बिहार में तकरीबन आठ फीसद कोईरी मतदाता हैं। लोक सभा चुनाव से पहले सामाजिक समीकरणों को साधने में जुटी भाजपा को कुशवाहा की यही ताकत रास आई थी और एनडीए में उनका महत्व बढ़ गया था।
क्या उपेंद्र कुशवाहा की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा है...
अपनी मजबूत पकड़ की वजह से ही आज उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश कुमार का चेहरा मंजूर नहीं है। वो पहले भी इसे जाहिर कर चुके हैं। अब उसे राजनीति की चाशनी में लपेट कर बोल रहे हैं। कुशवाहा ने कहा कि मंच से नारा लगाने से कुछ नहीं होता। समय आने पर बिहार की जनता तय करेगी कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा। इसके लिए मेहनत करनी पड़ती है और जनता के सुख-दुख में शामिल होना पड़ता है।
कुशवाहा से पहले भी रालोसपा नेता गाहे-बगाहे कहते रहे हैं कि हम जदयू से ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहते हैं, क्योंकि पिछले चार वर्षों में बिहार में हमारा सपोर्ट बेस बढ़ा है। हमारे नेता उपेन्द्र कुशवाहा बिहार का भविष्य हैं। उनकी स्वीकार्यता हाल के दिनों में बढ़ी है। ये सही वक्त है कि उपेन्द्र कुशवाहा को एनडीए का चेहरा बनाया जाए।
सीट बंटवारे से कुशवाहा हैं नाखुश
बीते दिनों एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर जदयू-भाजपा ने बराबर-बराबर सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने तेजस्वी यादव से मुलाकात कर एनडीेए की परेशानी बढ़ा दी।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कुशवाहा को दिल्ली तलब किया, लेकिन उसे टालते हुए कुशवाहा ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी और उसके बाद दिल्ली जाकर बिहार के भाजपा प्रभारी भूपेंद्र यादव से मुलाकात कर सीटों पर बात की।
इस मुलाकात के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि वे एनडीए का ही हिस्सा हैं। मैंने तेजस्वी से खुद मुलाकात नहीं की, उन्होंने मुलाकात की थी। इसके साथ ही कहा कि सीटों का बंटवारा अभी फाइनल नहीं हुआ है। इसमें लाभ-हानि की हिस्सेदारी बराबर हो।
इससे पहले भी उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर हमला किया था। अपने संसदीय क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि उनकी पार्टी नीतीश की पार्टी जदयू से बड़ी है। लोकसभा में हमारे तीन सांसद हैं तो जदयू के केवल दो। ऐसे में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में रालोसपा को जदयू से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए।